देश की स्वतंत्रता और एकता में हिंदी का योगदान
डा ममता जैन, पुणे
हिंदी केवल एक भाषा नहीं, अपितु भारत की आत्मा, संस्कृति और सभ्यता की प्रतीक है। यह वह भाषा है जिसने न केवल देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में जनजागरण का काम किया, बल्कि आज भी राष्ट्रीय एकता की सशक्त नींव है। यह वह माध्यम बनी जिसने स्वतंत्र भारत की एकता को सूत्र में पिरोया।हिंदी वह सेतु बनी जिसने उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम — सभी भारतीयों को भावनात्मक और सांस्कृतिक स्तर पर जोडा।
अतः देश की स्वतंत्रता और एकता के संघर्ष में हिंदी का योगदान अद्वितीय, अमूल्य और गौरवपूर्ण रहा है।
स्वतंत्रता संग्राम में हिंदी की भूमिका
जन-जागरण का माध्यम – 19वीं और 20वीं शताब्दी में हिंदी साहित्य और पत्रकारिता ने जनमानस को अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
स्वतंत्रता संग्राम के मध्य जब अंग्रेजी शासकों ने भारतीयों की आवाज़ दबाने का प्रयास किया, तब हिंदी ने एक जनभाषा के रूप में उभरकर जनमानस को एकजुट किया। महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचंद्र बोस, चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह जैसे नेताओं ने अपने विचारों और आंदोलनों को जनता तक पहुँचाने के लिए हिंदी का प्रयोग किया।
गांधी जी ने हिंदी को जनभाषा कहकर उसे देश की आत्मा बताया। उनका मानना था कि यदि कोई भाषा करोड़ों भारतीयों के हृदय को छू सकती है, तो वह केवल हिंदी है।चंपारण सत्याग्रह में महात्मा गांधी ने हिंदी का प्रयोग कर किसानों से सीधा संवाद किया, जिससे आंदोलन को व्यापक जनसमर्थन मिला।
बाल गंगाधर तिलक का हिंदी नारा
“स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।” जन-जन का उद्घोष बन गया।
माखनलाल चतुर्वेदी की कविता “पुष्प की अभिलाषा” की ये पंक्तियां "चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं"स्वतंत्रता सेनानियों की प्रेरणास्रोत ही नहीं बनी अपितु कविता कक्षा से लेकर क्रांति मंच तक गूँजने लगी।काकोरी कांड के क्रांतिकारी अपने पर्चों और घोषणाओं को हिंदी में लिखते थे, ताकि वह हर आम आदमी तक पहुँचे।
रामप्रसाद बिस्मिल की “सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है” जैसे ओजपूर्ण गीत हिंदी में ही रचे गए और क्रांति की आग बन गए।
‘प्रताप’ (गणेश शंकर विद्यार्थी), ‘कर्मवीर’ (पं. माखनलाल), ‘सरस्वती’, ‘हिंदुस्तान’, ‘आज’ आदि ने आजादी की भावना को पृष्ठों से निकालकर जनमानस तक पहुँचाया।हिंदी के “भारत माता की जय”,“जय हिंद”,“अंग्रेजों भारत छोड़ो”,“इंकलाब जिंदाबाद”
ये नारे सिर्फ शब्द नहीं थे, स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारियाँ थीं।
हिंदी पत्र-पत्रिकाएँ जैसे हिंदुस्तान, अभ्युदय, प्रताप, सरस्वती, कर्मवीर आदि ने देशभक्ति की भावना को जगाने में महती भूमिका निभाई।
कवियों और लेखकों जैसे मैथिलीशरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद ,सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', रामधारी सिंह 'दिनकर', माखनलाल चतुर्वेदी आदि ने अपनी ओजस्वी कविताओं से जनता में नवचेतना का संचार किया।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भी देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने में हिंदी ने एक मजबूत सेतु का कार्य किया। भारत विविध भाषाओं, बोलियों और संस्कृतियों का देश है। ऐसे में एक साझा भाषा की आवश्यकता थी जो लोगों के बीच भावनात्मक और सांस्कृतिक एकता स्थापित कर सके। भारत के अलग-अलग प्रांतों के लोगों को जोड़ने के लिए हिंदी ने “लिंग्वा फ्रैंका” (संपर्क भाषा) का काम किया।देश की स्वतंत्रता और एकता के इतिहास में हिंदी का योगदान एक स्वर्णिम अध्याय है
संविधान सभा की चर्चाओं में हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने का निर्णय इस बात का प्रमाण है कि हिंदी को एकता के प्रतीक के रूप में देखा गया।
हिंदी को राजभाषा का दर्जा 14 सितंबर 1949 को दिया गया, जिससे यह प्रशासन, शिक्षा, साहित्य और संचार का माध्यम बनी।
हिंदी सिनेमा, समाचार पत्र, दूरदर्शन और रेडियो के माध्यम से हिंदी ने पूरे भारत में एकता का भाव जगाया।सांस्कृतिक आदान-प्रदान – हिंदी फिल्मों, गीतों, साहित्य और मंचीय प्रस्तुतियों ने उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम तक एक समान भावनात्मक जुड़ाव बनाया।मेरा जूता है जापानी...", "ऐ मेरे वतन के लोगों..." जैसे गीतों ने देशभक्ति और एकता का संदेश पूरे देश में फैलाया।
आज जब अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ रहा है, वैश्वीकरण के दौर में हिंदी को पीछे धकेलने की प्रवृत्तियाँ दिख रही हैं, तब यह और आवश्यक हो जाता है कि हम अपनी मातृभाषा को समान आदर और अवसर दें।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र, G20 जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी हिंदी में भाषण देकर इसे वैश्विक मान्यता दिलाई।
यूनेस्को ने भी कई बार हिंदी के साहित्यिक योगदान की सराहना की है।
प्रवासी भारतीय समुदाय भी हिंदी को सांस्कृतिक पहचान और भारतीय एकता का प्रतीक मानता है।
हिंदी ने स्वतंत्रता संग्राम में जन-जागरण का शंखनाद किया और आज़ादी के बाद राष्ट्रीय एकता के सूत्र को और मजबूत किया। यह भाषा न केवल इतिहास की साक्षी है, बल्कि भविष्य की राह भी दिखाती है। हमें हिंदी को केवल राजभाषा के रूप में नहीं, बल्कि “राष्ट्र के हृदय की भाषा” के रूप में अपनाना चाहिए। हम सबका कर्तव्य है कि हम हिंदी का सम्मान करें, उसे अपनाएँ और इसे विश्वपटल पर प्रतिष्ठित करें।
“हिंदी हैं हम, वतन है हिन्दुस्तान हमारा।”
जय हिंदी! जय भारत!
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