जैन जो कहते हैं वो करके भी दिखते हैं - प्रो.अरावमुदन



नई दिल्ली , 30 अक्टूबर 2025     श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली के जैनदर्शन विभाग द्वारा संचालित जैन विद्या डिप्लोमा पाठ्यक्रम के नवीन सत्र का शुभारंभ किया गया एवं पूर्व सत्र में उत्तीर्ण श्रेष्ठ अंक प्राप्त विद्यार्थियों को प्राकृत जैनागम परिषद द्वारा प्रवर्तित पंडित दौलतराम पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया गया । इस पुरस्कार को 5 श्रेष्ठ अंक प्राप्त विद्यार्थी दिनेश जैन , प्रीति जैन, पूजा जैन  सुजय विश्वास एवं सुनय जैन ने गुरुजनों के करकमलों से प्राप्त किया । प्रोत्साहन राशि प्रो.वीरसागर जैन जी द्वारा प्रदान की गई । 

इस कार्यक्रम के अंतर्गत विशिष्ट व्याख्यान के रूप में विभागाध्यक्ष प्रो. वीरसागर जैन जी ने जैन धर्म की विशेषताएँ विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि एक समय था जब श्रमण संस्कृति भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त थी । इसका मूल कारण उसकी कुछ ऐसी मौलिक विशेषताएं हैं जो अन्यत्र नहीं हैं । उन्होंने 22 बिंदुओं के माध्यम से जैन दर्शन की अद्भुत विशेषताएँ बताते हुए उसका महात्म्य प्रगट किया । 

कार्यक्रम की शुरुआत मंगलाचरण से हुई जिसमें शोधछात्र पारस जैन ने प्राकृत एवं शोध छात्रा कीर्ति संसंवाल ने संस्कृत में मंगलाचरण किया ।कार्यक्रम के मुख्य संयोजक  प्रो. अनेकान्त कुमार जैन जी ने संकाय प्रमुख ,विभागाध्यक्ष एवं मुख्य अतिथि का स्वागत करते हुए जैन विद्या डिप्लोमा कोर्स का परिचय एवं विभाग की गतिविधियों का परिचय दिया  ।  

 


मुख्य अतिथि श्री जिनेश जैन जी (CA) ने अगले सत्र से 10 विद्यार्थियों को प्रतिवर्ष डिप्लोमा कराने की जिम्मेदारी लेते हुए अत्यंत उत्साह से अपने विचार व्यक्त किये  एवं पीठाध्यक्ष अरावमुदन जी ने प्रेरणावचन द्वारा सभी को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि अन्य लोग तो सिद्धांत को सिर्फ बताते हैं ,किंतु जैन लोग सिर्फ बताते ही नहीं बल्कि उसे करके भी दिखाते हैं । इस अवसर पर जैन दर्शन विभाग के छात्र अंकित जैन द्वारा प्रकाशित अहिंसा प्रभावना पत्रिका का विमोचन भी किया गया । अंत में सभी के जलपान की व्यवस्था अपने शोधकार्य सम्पन्न होने के उपलक्ष्य में शोधार्थी पारस एवं प्रशांत जैन ने की ।

कार्यक्रम के अंत में शोधार्थी श्रुति जैन ने सभी के विचारों की सराहना करते हुए सभी उपस्थित जनों का धन्यवाद ज्ञापन किया । कार्यक्रम में प्रो कुलदीप एवं विभाग के सभी शोधार्थी और विद्यार्थियों की बड़ी संख्या में उपस्थिति ने कार्यक्रम को सफल बनाया ।


प्रेषक - श्रुति जैन

शोधार्थी , जैनदर्शन विभाग


सेल्फी



अनिता रश्मि


वे नामी पशु प्रेमी! अनेक पुरस्कारों से सज्जित, अनेक संस्थाओं से सम्मानित! घर में सम्मान पत्रों से दीवारें अटीं पड़ीं। समाचार पत्रों की कतरनों से कबर्ड भरा-पूरा। 

     उस दिन रास्ते में कई लोग मिलकर एक व्यक्ति की मरम्मत कर रहे थे। वह चिल्ला रहा था। रिरियाहट, गिड़गिड़ाहट उसकी आवाज़ में 

 "छोड़ दो।...हमको छोड़ दो। अब ऐसा नहीं करेंगे।...मेरा बच्चा भूखा था, इसलिए ब्रेड लिया था। मत मारो। हम बहुत दूर से भूखे-पियासे पैदल चलकर आ रहे हैं।" 

सामने ब्रेड कुचला पड़ा था। और भी कुचलनेवाले पाँव उस पर पड़ रहे थे। उन्होंने देखा, आगे बढ़ गए। 


बढ़ते गए, आवाजों को अनसुना कर। थोड़ी ही दूर पर बिल्ली का एक बच्चा नाली में गिरा नजर आया। कुछेक क्षणों बाद उसे नाली से बाहर निकालते हुए वे सेल्फी पर सेल्फी ले रहे थे। 

अनिता रश्मि




विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित 'श्रीमती अनीता प्रभाकर स्मृति कहानी प्रतियोगिता'- तृतीय (2025-26))


श्रीमती अनीता प्रभाकर विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान की पूर्व न्यासी रहीं। वे प्रसिद्ध साहित्यकार श्री विष्णु प्रभाकर की ज्येष्ठ पुत्री थीं। हिंदी में स्नातकोत्तर शिक्षा ग्रहण करने के बाद वे हिंदी की प्राध्यापिका रहीं। उन्होंने  अनेक कहानियों, कविताओं आदि की रचना करते हुए हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। 


उक्त कहानी प्रतियोगिता के प्रमुख नियम निम्न प्रकार होंगे—

1- इस प्रतियोगिता में सभी आयु वर्ग के कथाकार भाग ले सकेंगे।

2- कहानी मूलतः हिंदी में लिखी होनी चाहिए न कि किसी अन्य भाषा से अनूदित की गई हो।

3- कहानी बोलचाल की हिंदी में लिखी गयी हो तथा यह ध्यान रखा गया हो कि उसमें अन्य भाषा के शब्दों का धाराप्रवाह प्रयोग न हो।

4- रचनाकार की मौलिक और अप्रकाशित कहानी ही प्रतियोगिता के लिए मान्य होगी।

5- प्रतियोगिता हेतु प्रेषित कहानी के किसी व्यक्ति, समूह अथवा क्षेत्र विशेष से सम्बन्धित न होने, मौलिक होने, मूलतः देवनागरी हिंदी में लिखे जाने तथा प्रतियोगिता का परिणाम घोषित किए जाने की तिथि तक किसी भी माध्यम में प्रकाशित/प्रसारित न किए/कराने का शपथ-पत्र लेखक को कहानी के साथ अलग से देना होगा ।

6- कहानी का विषय मानव एवं राष्ट्रीय जीवन मूल्यों के अन्तर्गत हो। मूल्यहीनता की बात करने वाले एवं उसको बढ़ावा देने वाले विषय स्वीकार नहीं किए जाएँगे।

7-- कहानी न्यूनतम लगभग 2000 व अधिकतम लगभग 5000 शब्दों की हो। 

8-  कहानी यूनिकोड मंगल फोंट में अथवा कृतिदेव 10 फोंट में वर्ड की फाइल / Pdf  में 14 फोंट साइज में लाइन स्पेस 1.5 में टाइप की गयी हो। 

9- प्रतियोगिता हेतु भेजने से पहले कहानी की वर्तनी, व्याकरण चिह्न आदि को ठीक प्रकार से जाँच लें। किसी भी प्रकार की अशुद्धि को कहानी के प्रस्तुतीकरण की कमजोरी ही माना जाएगा।

10- कहानी की फाइल में कहीं भी लेखक अपना नाम, पता, मोबाइल अथवा फोन नम्बर तथा ई-मेल या कोई पहचान चिह्न नहीं लिखेंगे। ये सब सूचनाएँ कहानी का शीर्षक बताते हुए ई-मेल के बोर्ड पर पेस्ट करनी होंगी।

11- कहानी भेजने की अन्तिम तिथि -'31 दिसम्बर 2025'  है। इसके बाद प्राप्त कहानियों को प्रतियोगिता में शामिल नहीं किया जाएगा।

12- कहानी प्रतियोगिता का परिणाम मार्च 2026 में फेसबुक व वाट्सएप समूहों के माध्यम से घोषित किया जाएगा।

13- प्राप्त कहानियों को प्रतियोगिता में तीन चरणों से गुजारा जाएगा—

(अ)   एक, कोडिंग—ई-मेल से प्राप्त समस्त कहानियों को एक निश्चित कोड नम्बर दिया जाना। 

(आ) दो, प्रथम पाठ—समस्त कहानियों का प्रथम पाठ संस्था के सक्षम सदस्यों द्वारा करके उपयुक्त कहानियों को ही निर्णायकों तक पहुँचाना।

(इ)   तीन, निर्णायक पाठ—निर्णायक के रूप में आमंत्रित कहानी विशेषज्ञों को कहानियाँ भेजना तथा उनके माध्यम से कथ्य की प्रकृति, उसका समसामयिक अथवा ऐतिहासिक महत्व, भाषा-शैली, संवाद योजना आदि की दृष्टि से प्रत्येक कहानी पर अंक प्राप्त करना।

(ई) अन्तिम अंक तालिका—प्राप्त अंकों के आधार पर प्रत्येक कहानी का स्तर निर्धारित किया जायेगा। 

14- विजेता कथाकारों को सम्मान स्वरूप निम्न उपहार दिये जाएँगे—

(अ)   प्रथम पुरस्कार—रुपये 11,100/-

(आ)   द्वितीय पुरस्कार— रुपये 7,500/-

(इ)     तृतीय पुरस्कार— रुपये 5,100/-

(ई)     पाँच सांत्वना पुरस्कार— रुपये 3,100/- प्रत्येक

15- पुरस्कार योग्य अधिक कहानियों का चयन होने की दशा में सम्बन्धित वर्ग की पुरस्कार राशि को विजेता कहानीकारों के बीच बराबर-बराबर बाँट दिया जाएगा।

16- चयनित कहानियों के बारे में संस्था द्वारा नियोजित निर्णायकों का निर्णय अन्तिम माना जाएगा जो कि सभी प्रतिभागियों को मानना होगा।

17- पुरस्कृत घोषित सभी कहानीकारों को दिल्ली में आयोजन कर सम्मानित करने की योजना रहेगी तथापि इस पर निर्णय समय के अनुकूल बाद में ही लिया जा सकेगा। 

18- यदि सम्मान समारोह किसी कारण-विशेष की वजह से आयोजित नहीं किया जा सका तो सम्मान पत्र एवं सम्मान राशि का प्रेषण विजेताओं को सीधे कर दिया जाएगा।

19- इस आयोजन से संबंधित सभी निर्णय लेने का अधिकार विष्णु प्रभाकर  प्रतिष्ठान न्यास को होगा, अन्य किसी को नहीं।

20- सभी पुरस्कृत कहानियों का एक साझा संकलन  प्रकाशित किया जाएगा ।

21- प्रतियोगी अपनी कहानियाँ प्रतिष्ठान के ई-मेल  --

vishnuprabhakarpratishthan@gmail.com

अथवा कार्यालय के पते पर स्पीड पोस्ट द्वारा भेजें । प्रतिष्ठान का पता ..

विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान 

ए - 249, सेक्टर  - 46,

नोएडा - 201303

निवेदक

अतुल कुमार (मंत्री) 

 नवीन कुमार गोयल (अध्यक्ष)                                

विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान


नौकरशाही



भ्रष्ट नौकरशाही से पूरा साम्राज्य हिला हुआ है

पूरे सिस्टम को इस बिमारी ने मजबूती से जकड़ा हुआ है


निर्णय कितने भी मजबूत हो परिणाम उसका शुन्य ही होगा

क्रियान्वयन पर भ्रष्टाचार का बेखौफ़ राज क्योंकि हावी होगा


सरकारी ऑफ़िस घूसखोरी का मजबूत अड्डा बन चुका है

आम आदमी से इन घूसखोरों का सिर्फ पैसा कमाने का अच्छा खासा रिश्ता बन चुका है


इन भ्रष्ट नौकरशाहों को काम कुछ भी नही आता

पैसा कैसे निकालना है ये हुनर ही इनको खूब आता


नौकरशाही आज देश की तरक्की मे एक बड़ी बाधा है

योग्य इमानदारों से अयोग्य बैइमानों की संख्या कई ज्यादा है


एक सौ चालीस करोड़ आबादी वाला देश आज पिछड़ों की क्ष्रेणी मे अव्वल है

नौकरशाही का आलम है कि क्यों करे काम आज अभी पड़ा भी कल है


इमानदारी अब इनके बस से बाहर हो गई

दुनियादारी भाड़ मे गई पैसा ही अब ईमान हो गई


भूख पैसे की इस कदर हावी है कि अपनो को ही लूटने आमादा है

देश समाज परिवार अब सरेराह कौड़ियों के भाव बिकने वादा है


देश की नौकरशाही भ्रष्ट और बैईमान हो तो ईश्वर ही देश का पालनहार है

इंसानी हुकुमत फैल है देश का और कोई नही तारणहार है

संदीप सक्सेना 

जबलपुर म प्र


लेखक गांव में जुटेंगे 60 देशों के साहित्य, संस्कृति एवं कला जगत की विभूतियां


लेखक गांव में जुटेंगे 60 देशों के साहित्य, संस्कृति एवं कला जगत...


देवभूमि उत्तराखंड की पावन वादियों में स्थित भारत का प्रथम “लेखक गाँव” आगामी 3 से 5 नवम्बर, 2025 तक एक ऐतिहासिक अंतरराष्ट्रीय आयोजन का केंद्र बनने जा रहा है। इस अवधि में यहाँ भारतीय साहित्य, संस्कृति, कला और हिंदी भाषा के वैश्विक प्रसार को समर्पित स्पर्श हिमालय महोत्सव-20225 का आयोजन होगा।

यह तीन दिवसीय महोत्सव का आयोजन डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के संरक्षण/मार्गदर्शन एवं स्पर्श हिमालय फाउंडेशन के तत्वावधान में लेखक गांव में संपन्न होगा। इसमें 60 से अधिक देशों के साहित्यकार, कलाकार, शिक्षाविद, पर्यावरणविद् और युवा रचनाकार भाग लेंगे, जो भारतीयता और सृजनशीलता के संदेश को विश्व के कोने-कोने तक पहुँचाएंगे।

3 नवम्बर, 2025 को महोत्सव का भव्य उद्घाटन कर्नाटक के राज्यपाल श्री थावरचंद गहलोत द्वारा किया जाएगा। उद्घाटन सत्र का विषय रहेगा “भारतीय साहित्य, संस्कृति और कला का वैश्विक विस्तार”। इस अवसर पर देश-विदेश से आए साहित्यकार और विद्वान भारतीय संस्कृति की समृद्ध परंपरा पर अपने विचार साझा करेंगे। सुप्रसिद्व गायक पद्मश्री कैलाश खेर सहित अनेक विभूतियां कार्यक्रम में प्रस्तुति देंगे। इसी शाम नैनीताल स्थित आर्यभट्ट प्रेक्षण एवं अनुसंधान विज्ञान संस्थान  द्वारा विशेष  आयोजन होगा, जहाँ प्रतिभागी हिमालय की गोद में खुले आकाश तले तारामंडल के अद्भुत नजारों का आनंद लेंगे। यह कार्यक्रम विज्ञान, संस्कृति और प्रकृति के अनोखे संगम का अनुभव कराएगा।

4 नवम्बर, 2025 को महोत्सव में मॉरीशस के पूर्व राष्ट्रपति महामहिम श्री पृथ्वीराज सिंह रूपन  केंद्रीय संसदीय कार्य एवं संस्कृति मंत्री श्री अर्जुन राम मेघवाल तथा केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह की गरिमामयी उपस्थिति रहेगी। इस दिन का केंद्र “हिंदी को विश्वभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने का संकल्प”, “भारतीयता का सांस्कृतिक दर्शन” और “नवोदित लेखकों की नई दृष्टि” पर केन्द्रित रहेगा। युवा रचनाकारों को अपनी प्रतिभा प्रस्तुत करने के लिए विशेष मंच प्रदान किया जाएगा। शाम को दून सांस्कृतिक स्कूल, झाझरा (देहरादून) के आदिवासी छात्र-छात्राएँ अपने लोकनृत्य और पारंपरिक गीतों की मनमोहक प्रस्तुतियों से दर्शकों को भारतीय लोक संस्कृति की गहराई और सौंदर्य से परिचित कराएँगे। इसी क्रम में स्पर्श हिमालय विश्वविद्यालय, देहरादून के नाट्य विभाग द्वारा एक उत्कृष्ट नाट्य प्रस्तुति दी जाएगी, जो कला, संवेदना और सृजन की अद्भुत अभिव्यक्ति बनकर दर्शकों के मन को स्पर्श करेगी।

5 नवम्बर, 2025 को महोत्सव का समापन उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी तथा उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से.नि.) की गरिमामयी उपस्थिति में होगा। इस अवसर पर साहित्य, संस्कृति, शिक्षा, पर्यावरण और कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वाली विभूतियों को सम्मानित किया जाएगा। समापन दिवस पर आयोजित कला सत्र में पद्मभूषण सुप्रसिद्ध चित्रकार श्री जतीन दास, जिनकी कला भारतीय भावविश्व, रंग-संवेदना और मानवता की गहराई से संवाद करती है, की विशिष्ट उपस्थिति रहेगी। उनके साथ ख्यात छायाकार श्री त्रिलोक कपूर और बहुआयामी कलाकार श्री आदित्य नारायण भी अपनी सृजनात्मक दृष्टि से इस सत्र को समृद्ध करेंगे। यह सत्र कला, रंग और संवेदना के अद्भुत संगम के रूप में स्मरणीय रहेगा।

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री, भारत सरकार में पूर्व शिक्षा मंत्री एवं लेखक गांव के संरक्षक डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने कहा कि “स्पर्श हिमालय महोत्सव केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि यह भारत की आत्मा, संस्कृति और सृजन का वैश्विक उत्सव है। हमारा उद्देश्य है कि भारतीय साहित्य, संस्कृति और कला की यह दिव्य ज्योति विश्व के कोने-कोने तक पहुँचे, हिंदी विश्व पटल पर प्रतिष्ठित हो, और नवोदित लेखकों को सृजन का सशक्त मंच मिले।”

हिमालय, देहरादून स्थित “लेखक गाँव” आज श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी के उस स्वप्न का साकार रूप है, जिसे डॉ. निशंक ने अपने दृष्टिकोण, समर्पण और कर्म से मूर्त किया। यहाँ नालंदा पुस्तकालय, शोध केंद्र, सृजन कुटीरें और सांस्कृतिक सभागार भारतीय परंपरा और आधुनिक चिंतन का अद्भुत संगम प्रस्तुत करते हैं।

स्पर्श हिमालय महोत्सव 2025 न केवल भारतीय संस्कृति की गौरवगाथा को विश्व पटल पर स्थापित करेगा, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए सृजनशीलता, भारतीयता और आत्मगौरव की नई प्रेरणा भी प्रदान करेगा।



निर्माणों के पावन युग में, हम चरित्र निर्माण न भूलें

 


विप्लव बनर्जी सेवानिवृत्त होने के उपरांत मालदा में अपने पैतृक निवास शांति निकेतन,गाय घाट में, जो  उन्हें अपने पिता से मिला था, पत्नी के साथ ही आजकल रहते हैं. रेलवे में स्टेशन मास्टर के पद से सेवानिवृत्त हुए उन्हे  पांच साल हो गये. कुछ खेती पिता जी  से मिल गया था और कुछ नौकरी के दौरान विप्लव ने अपने पैसों से खरीदा था. आजकल नौकरों की सहायता से उसी में कुछ खेती करके अपना समय बिताते हैं. 

विप्लव के दो बेटा और एक बेटी है, सबों की शादी हो गयी है. बड़ा बेटा औरव अमेरिका में किसी साफ्टवेयर कम्पनी में काम करता है, दूसरा बेटा अमित बंगलौर में नौकरी करता है . बेटी अपर्णा अपने ससुराल वाराणसी में रहती है, दामाद का वहीं पर साड़ियों का व्यवसाय है. विप्लव, सपत्नी सब के यहाँ बीच - बीच में, हप्ता- पन्द्रह दिनों के लिए जाते रहते हैं. बच्चे भी मालदा आते रहते हैं और दुर्गा पूजा में दोनों बेटे, सपरिवार पूरे पन्द्रह दिनों के लिए मालदा, अपने घर आते हैं. 

विप्लव जी का जीवन सामान्य रूप से चल रहा था. इधर कुछ दिनों से पत्नी विशेष्वरी देवी का स्वास्थ ठीक नहीं रह रहा था. बंगलौर में अपोलो हास्पिटल में दिखाया था, डाक्टर ने कहा था कोई खास बात नहीं है, कुछ ब्लाकेज हैं, लेकिन बहुत ही थोड़ा है, दवा से ठीक हो जायेगा. तो वहीं की लिखी हुई दवा चल रही है, आराम है, लेकिन कभी- कभी विशेष्वरी देवी की तबियत अधिक बिगड़ जाती है. अमित ने कहा कि आप माँ को लेकर बंगलौर आ जाओ और यहीं हमारे साथ ही रहिये. लेकिन विप्लव और विशेष्वरी देवी का मन अपना घर छोड़कर जाने को नहीं मान रहा था. दोनों ने सोचा, छोड़ो जीवन कै अन्तिम समय क्यों अपना घर छोड़ें, जो होगा देखा जायेगा, कौन अमर हो कर आया है! 

एक दिन की बात है कि दोपहर को विशेष्वरी देवी को अधिक परेशानी होने लगी, स्थानीय डाक्टर को दिखाया, उसने कहा ऐसी कोई घबराने की बात नहीं है, दवा दे देता हूँ, ठीक हो जायेगा. दवा से विशेष्वरी देवी को फायदा तो हुआ, लेकिन बेटा अमित ने कहा कि आप बंगलौर आ जाओ, मैं फ्लाइट का टिकट भेज देता हूँ. विप्लव ने कहा कि ठीक है, दो दिन बाद सोमवार का टिकट भेज दो, यहाँ पर भी तो निकलने के पहले  घर की व्यवस्था करनी  पड़ेगी.   अमित ने कहा ठीक है. रात में विप्लव और विशेष्वरी देवी को उनके पड़ोसी मजूमदार ने खाने के लिए अपने घर बुलाया था. मजूमदार के यहाँ खाना खाने के बाद दोनों घर पर आये और रात की दवा खा कर विशेष्वरी देवी तो सोने चलीं गयीं, लेकिन विप्लव कुछ देर तक बंकिमचन्द्र जी का लिखा उपन्यास विषवृक्ष पढ़ते रहे. थोड़ी देर पढ़ने के बाद वे भी सो गए. 

सुबह जब नींद खुली तो विप्लव ने  देखा  कि विशेष्वरी देवी जी अभी तक सो रहीं हैं . सामान्यतः वो जल्दी उठ जाया करती थीं. विप्लव ने पहले तो आवाज दी, लेकिन कोई हरकत नहीं होने पर उन्होंने विशेष्वरी देवी की बांह पकड़ कर जगाने की कोशिश की, लेकिन वो नहीं उठी. विप्लव घबरा गए, नाक पर हथेली रखा, कोई हरकत नहीं हुई, नब्ज पर हाथ रखा, नब्ज एकदम शांत था. विप्लव का दिल धड़कने लगा. नौकरों को आवाज दी कि जल्दी डाक्टर घोष बाबू को फोन करो. डाक्टर घोष बगल में ही रहते थे, वे तुरन्त आ गए, उन्होंने भी स्टैथोस्कोफ से देखा, बोले विप्लव दा, भाभी नहीं रहीं. विप्लव को तो पहले ही संदेह हो गया था, खैर क्या बोलते! 

तुरन्त ही सभी बेटा- बेटी को मोबाइल से बताया गया और विशेष्वरी देवी के  शव को सुरक्षित रखने की व्यवस्था की गई, क्योंकि अमेरिका में रहने वाले बेटा औरव ने कहा कि जब तक मैं न आ जाऊँ, अन्तिम संस्कार मत करियेगा. मैं परसों सुबह कलकत्ता पहुँच रहा हूँ. विप्लव ने मन ही मन कहा कि जैसी ईश्वर की इच्छा! बेटी अपर्णा ने कहा कि मैं शाम तक अपनी कार  से घर पहुँच रही हूँ. अमित ने कहा कि पापा मैं शाम तक कलकत्ता पहुँच रहा हूँ, रात में किसी समय टैक्सी से घर आ जाऊंगा.

शाम तक अपर्णा और रात में अमित दोनों घर पहुँच गए और दो दिनों बाद, रात में अमेरिका से  औरव भी आ गया. दूसरे दिन विशेष्वरी देवी जी का गंगा जी के किनारे अन्तिम संस्कार कर दिया गया, मुखाग्नि विप्लव ने ही दिया. विप्लव ने सभी बच्चों से कहा कि सबको तो एक दिन जाना ही है, बस कोई आगे, कोई पीछे. तुम्हारी माँ ने अपना सम्पूर्ण जीवन सुखमय जिया, इसलिए उनकी मृत्यु पर शोक की जगह संतोष करना चाहिए. बच्चे कुछ बोले नहीं, वैसे भी बोलने के लिए बचा ही क्या था! 

दूसरे दिन अचानक विप्लव जी को  बगल के कमरे से बच्चों की बातें करने की आवाज सुनाई पड़ी. पहले तो उन्होंने ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब  आवाजें रुकना बन्द नहीं हुआ तो ध्यान दिया. उन्हें लगा कि बच्चे अपनी माँ के बरही ( बारह दिनों पर मृतक सम्बंधित पूजा) के विषय में बातें कर रहे  हैं. वे कमरे में चले गए और पूछा कि क्या बात है अपर्णा? अपर्णा ने कहा कि पापा कोई खास बात नहीं है, क्या है कि आजकल दाह संस्कार के तीन दिन के बाद ही  सारे कार्यक्रम करने की नयी परम्परा शुरू हो गई है, उसी सम्बन्ध में भईया बात कर रहे थे, क्यों न माॅं का सारे कार्यक्रम तीन दिनों के बाद कर दिया जाए? 

विप्लव जी यह सुन कर स्तब्ध रह गए, पहले तो समझ ही नहीं पाए, लेकिन कुछ ही पलों में सारी बातें उनके समझ में आ गयी. बोले बेटा यह तीन दिनों की  जो नयी परम्परा शुरू हुई है, वह क्या कोई नया धार्मिक  विधान है अथवा समय का अभाव के कारण सुविधाजनक व्यवस्था ?,  अथवा  किसी प्रकार से कुछ भी करके, निबटा दिया जाए, यह भाव है. अमित ने कहा कि पापा आर्य समाज में ऐसा ही  होता है. विप्लव बोले बेटा आर्य समाज ने पाखंड और फिजूल खर्ची को रोकने के लिए एक अभियान चलाया था और उसे काफी सराहा भी गया था. लेकिन मेरी बात सुन लो, हमारे परिवार में अभी तक  हमने हजारों वर्षों से चली आ रही धार्मिक विधि से ही मृत्यु के उपरांत सारे काम किये हैं. विशेष्वरी मेरी पत्नी थी, मैं उसके सारे कार्यक्रम धार्मिक विधि, पूरी निष्ठा और अपने पैसे से  ही करुंगा. यह करना, मेरा उसके प्रति कर्तव्य है. आप लोगों में से जिसको भी समय का अभाव हो या छुट्टी नहीं मिल रहा हो, वह वापस जा सकता है, मुझे कोई कष्ट नहीं होगा. लेकिन मैं विशेष्वरी के बरही सम्बंधित सारे कार्यक्रम परम्परागत धार्मिक विधि से ही करुंगा. हमारे पूर्वज मूर्ख नहीं थे, हर धार्मिक विधि- विधान के पीछे महत्वपूर्ण कारण है. कारण हम नहीं जानते, यह एक अलग बात है. परिवार का एक सदस्य, जिसके साथ चालीस- पचास सालों का सम्बन्ध रहा हो, जिसके साथ हमने अपने जीवन के सुख- दुख, एक साथ भोगें  हो, उसके साथ अचानक सम्बन्ध कैसे समाप्त हो जायेगा. मृत्यु एक अटल सत्य है, यह मैं भी जानता हूँ, कोई आगे , कोई पीछे, लेकिन एक दिन सबको जाना है, जन्म- मृत्यु की एक अनन्त ऋंखला है. लेकिन इस ऋंखला में एक लगाव है, निरन्तरता है और यह लगाव  भावनात्मक है , जो एक दिन में समाप्त नहीं होती. आप लोग वापस जाने के लिए स्वतंत्र हो. इतना कह कर विप्लव कमरे से बाहर चले गए.  

अचानक कमरे में सभी लोग स्तब्ध हो गये, उन्हें पापा से इस प्रकार की तीव्र प्रतिक्रिया की अपेक्षा नहीं थी. कुछ देर तक मौन छाया रहा. कुछ देर बाद औरव ने कहा कि पापा तो काफी भावुक हो गये. अपर्णा बोली अभी पापा से कुछ भी कहने की जरूरत नहीं है, वे अन्दर से पूरी तरह से टूट चुके हैं. हम सब लोग बरही के पहले, वापस नहीं जायेंगे. मैं अमर ( पति) को वाराणसी से आने के लिए कहती हूँ. अमित ने कहा कि ठीक है मैं भी परिवार बुलाने की व्यवस्था करता हूँ. औरव ने कहा  ठीक है मैं भी बात करता हूँ.

इस घटना के एक सप्ताह के भीतर, तीनों के परिवार मालदा आ गए और विशेष्वरी देवी जी का दसवाँ और बरही का कार्यक्रम पूरे धार्मिक विधि विधान से हुआ.

 -- ओमप्रकाश पाण्डेय


ग़ज़ल

 


बहुत बिगड़ा हुआ है हाल अब तो इस सदी का

नहीं देता यहां पे साथ कोई भी किसी का


करें कैसे यकीं नफ़रत भरा है अब हरिक दिल 

भरोसा ही उठा इक दूसरे से अब सभी का


उदासी से घिरा चेहरा मिला सबका यहां पे

बहुत खोजा नहीं मिलता पता कुछ भी खुशी का


बहुत मजबूत है वो जो भुला देता गमों को

रहा भी तो वही तन्हा चला सिक्का उसी का


अकेला हो गया कितना सुधा ये आदमी अब

नहीं विश्वास करता आदमी क्यों आदमी का


डा सुनीता सिंह सुधा 

वाराणसी,


शून्य



यात्रा में संचित

होते जाते हैं शून्य,

कभी छोटे, कभी विशाल, 

कभी स्मित, कभी विकराल..,

विकल्प लागू होते हैं

सिक्के के दो पहलू होते हैं-

सारे शून्य मिलकर 

ब्लैकहोल हो जाएँ

और गड़प जाएँ अस्तित्व

या मथे जा सकें 

सभी निर्वात एकसाथ,

पाएँ गर्भाधान नव कल्पित,

स्मरण रहे-

शून्य मथने से ही

उमगा था ब्रह्मांड

और सिरजा था

ब्रह्मा का अस्तित्व,

आदि या इति,

स्रष्टा या सृष्टि,

अपना निर्णय, अपने हाथ

अपना अस्तित्व, अपने साथ,

...समझ रहे हो न मनुज!


संजय भारद्वाज


पति पत्नि


शुक्र मनाओ प्रेम से

जीवन कट जाये साथ

आज जमाना और है

बांटो पत्नी का हाथ।


बर्तन और कपड़े धोना

है मामूली सी बात

झाड़ू और पोंछा भी मारो 

है सात जन्म का साथ।


जरा सोचो, सोचो, सोचो 

पर न नोचो अपने बाल 

गलती से भी न पंगा लेना 

वरना मचेगा बड़ा बवाल।


आज बदल रहीं परंपराएं 

आ रहे जीवन में भूचाल

ड्रम वाला ड्रामा न करना 

अपने को रखिए संभाल।


आजकल के रिश्ते बेढव 

और बेढव हैं तौर तरीके

गिरगिट जैसे बदल रहे हैं

उनके रंग हो रहे फीके।


-शन्नो अग्रवाल


काव्यरथी सत्य का अभिजागर


हिय हिलोर मृदुल मधुर,

श्रृंगार अनूप नित यथार्थ ।

संवाद अनुपम मोहक प्रभा,

साधन साध्य ध्येय परमार्थ ।

अथाह नैतिक तेजस्वी छवि,

चाह परस्पर अपनत्व आदर ।

काव्यरथी सत्य का अभिजागर ।।


भव्य नवाचार अवबोधन ,

नवल धवल पथ प्रशस्त ।

निशि दिन सवित मार्गदर्शन,

बाधा समाधानिक शिकस्त।

नैराश्य तिमिर मूल पटाक्षेप,

उत्साह उमंग खुशियां सागर ।

काव्यरथी सत्य का अभिजागर ।।


कर्म धर्म आस्था विश्वास,

सविनय सहृदय अभिनंदन ।

अर्थ पर्याय अमृत सुधा,

सर्वत्र सरित आनंद वंदन ।

दैनिक जीवन शिष्टता अभिषेक,

क्षमा याचना समर्पण गागर ।

काव्यरथी सत्य का अभिजागर ।।


सहज सजग पुनीत दृष्टि ,

चाह स्वच्छ स्वस्थ परिवेश ।

नित्य प्रहरी स्नेह प्रेम बंधुत्व,

परिवार समाज संस्कृति देश  ।

शंखनाद सेतु सकारात्मक सोच,

मर्यादा संस्कार महत्ता उजागर ।

काव्यरथी सत्य का अभिजागर ।।


कुमार महेंद्र



पत्रकार अहिंसा के दूत एवं शांति के प्रचारक बने : आचार्य प्रज्ञसागर


दिल्ली, 28 अक्टूबर 2025
अखिल भारतीय जैन संपादक संघ की दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी दिल्ली के बाहुबली इनक्लेव में आचार्य श्री प्रज्ञसागरजी महाराज के पावन सान्निध्य में सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई। इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार, चिंतक एवं स्तंभकार श्री ललित गर्ग को संगठन का राष्ट्रीय प्रवक्ता घोषित किया गया। यह घोषणा संघ के महामंत्री डा. अखिल बंसल ने की। साथ ही संघ का महिला प्रकोष्ठ गठित करने की भी महत्वपूर्ण घोषणा की गई।
संगोष्ठी का शुभारंभ पुरानी दिल्ली के लाल मंदिर से हुआ, जहां तीर्थक्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष श्री जम्बू प्रसादजी, 125वें वर्ष समारोह के अध्यक्ष श्री जवाहरलालजी और अनेक गणमान्य उपस्थित थे। मुख्य सत्रों में विद्वत परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. वीर सागरजी, उप-महारजिस्ट्रार श्री धीरज जैन एवं शिक्षा मंत्रालय के उप सचिव श्री संदीप जैन जैसे विशिष्ट अतिथि उपस्थित रहे। द्वितीय सत्र में वरिष्ठ पत्रकार ललित गर्ग ने अपने विचार रखते हुए कहा कि “पत्रकारिता तभी सार्थक है जब वह समाज में चेतना, सद्भाव और अहिंसा की अलख जगाए। कलम केवल खबरें न लिखे, वह संस्कार लिखे।”
संगोष्ठी के समापन अवसर पर आचार्य श्री प्रज्ञसागरजी महाराज ने अपने प्रेरक प्रवचन में कहा- “पत्रकारिता केवल सूचना का माध्यम नहीं, यह आत्मा की अभिव्यक्ति है। कलम के पीछे जब आस्था, आत्मा और अहिंसा की शक्ति जुड़ जाती है, तब वह राष्ट्र और समाज दोनों को दिशा देती है। पत्रकारों को चाहिए कि वे सत्य को साधना बनाएं और अपनी लेखनी को संयम, करुणा और जागरण का माध्यम बनाएं।” आचार्य श्री प्रज्ञसागरजी ने श्री ललित गर्ग को राष्ट्रीय प्रवक्ता घोषित किए जाने पर उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा कि “आपकी लेखनी संघ की वाणी बनेगी- संयम और सत्य की।”
इस अवसर पर संगठन के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता के रूप में डा. जयेन्द्रकीर्ति की भी घोषणा की गई। साथ ही महिला प्रकोष्ठ की संरचना भी की गई, जिसकी अध्यक्ष डा. प्रगति जैन (इंदौर) और कार्याध्यक्ष श्रीमती मीनू जैन (गाजियाबाद) को बनाया गया।
कार्यक्रम के संचालन का दायित्व डा. अखिल बंसल ने कुशलता से निभाया। संगोष्ठी के दौरान आचार्य श्री विद्यानंदजी स्मृति ग्रंथ के प्रकाशन की भी घोषणा की गई, जिसका संपादन डा. अखिल बंसल द्वारा और मार्गदर्शन आचार्य श्री प्रज्ञसागरजी द्वारा किया जाएगा। संगोष्ठी में 42 प्रतिनिधियों की उपस्थिति रही, जिनमें चेयरपर्सन श्री अनूपचंद एडवोकेट, श्री शैलेन्द्र एडवोकेट एवं अध्यक्ष श्री जगदीश प्रसाद जैन सहित देशभर से आए पत्रकार सम्मिलित हुए।
विदित हो कि श्री गर्ग पिछले चार दशक से राष्ट्रीय स्तर पर लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवाएं प्रदत्त करते हुए महावीरायतन फाउंडेशन, अणुव्रत आंदोलन, जैन समाज और आदिवासी जनजीवन के साथ सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं। विदित हो वर्तमान में श्री गर्ग सुखी परिवार फाउंडेशन के अध्यक्ष, सूर्यनगर एज्यूकेशनल सोसायटी के कार्यकारी अध्यक्ष एवं अनेक पत्र-पत्रिकाओं के संपादक हैं। श्री गर्ग राजधानी दिल्ली की विभिन्न सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संस्थाओं के साथ सक्रिय रूप से जुड़े हैं। श्री गर्ग पिछले चार दशक से राष्ट्रीय स्तर पर लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवाएं प्रदत्त करते हुए हिन्दी की उल्लेखनीय सेवाएं कर रहे हैं एवं पूर्व में गृह मंत्रालय भारत सरकार की राष्ट्रभाषा समिति के सदस्य रहे हैं। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मीडिया प्रकोष्ठ एवं विद्या भारती संगठन के साथ जुड़े हैं।

प्रेषकः

(ललित गर्ग)
ए-56/ए, प्रथम तल, लाजपत नगर-2
नई दिल्ली-110024,

पीयूष गोयल ने हाथ से दर्पण छवि में लिखी 19 पुस्तकें

दुनिया में एक से एक कलाकार मौजूद है जिनकी प्रतिभा देखकर लोग चमत्कार समझने लगते है। ऐसे ही एक कलाकार ने पांच तरह की पुस्तकों को लिखकर चौका दिया है। लेखक पीयूष गोयल ने उल्टे अक्षरों में गीता, सुई से मधुशाला, मेंहंदी से गीतांजलि, कार्बन पेपर से पंचतंत्र के साथ ही कील से पीयूष वाणी लिख डाली। पीयूष की इन किताबों को देखकर हर कोई हतप्रभ है।कला और दक्षता की कोई सीमा नहीं होती,रोज नई उपलब्‍धियां प्रकाश में आती रहती हैं, ऐसा ही दिलचस्‍प कारनामा किया है श्रीमती रविकांता एवं डॉ. दवेंद्र कुमार गोयल के बेटे पीयूष गोयल ने। उसने पंच प्रचलित पुस्‍तकें पंच तरीके से लिख डाली हैं। 

इनमें अध्‍यात्‍म दर्शन और कर्मफल संस्‍कृति को व्‍यापक और सहजता के साथ जनग्राही बनाने वाली भागवत गीता भी शामिल है।57 वर्षीय पीयूष गोयल अपने धुन में रमकर कुछ अलग करने में जुटे कि शब्दों को उल्टा लिखने में लग गए। इस धुन में ऐसे रमे कि कई अलग-अलग सामग्री से कई पुस्तकें लिख दीं।डिप्लोमा इन मैकेनिकल इंजीनियरिंग का पढ़ाई करने वाले पीयूष गोयल का 2000 में एक्सीडेंट हो गया था। उन्हें इस हादसे से उबरने में करीब नौ माह लग गए। इस दौरान उन्होंने श्रीमद्भभगवद गीता को अपने जीवन में उतार लिया। जब वे ठीक हुए तो कुछ अलग करने की जिजीविषा पाले वे शब्दों को उल्टा (मिरर शैली) लिखने का प्रयास करने लगे। फिर अभ्यास ऐसा बना कि उन्होंने कई किताबें लिख दीं। गोयल की लिखीं पुस्तकें पढ़ने के लिए आपको दर्पण का सहारा लेना पड़ेगा। उल्टे लिखे अक्षर दर्पण में सीधे दिखाई देंगे और आप आसानी से उसे पढ़ लेंगे।पीयूष गोयल बताते हैं कि कुछ लोगों ने कहा कि आपकी लिखी किताबें पढ़ने के लिए शीशे की जरूरत होगी। कुछ ऐसा करें कि दर्पण की जरूरत न पड़े। इस पर पीयूष गोयल ने सुई से मधुशाला लिख दी। हरिवंश राय बच्चन की पुस्तक ‘मधुशाला’ को सुई से मिरर इमेज में लिखने में करीब ढाई माह का समय लगा। गोयल की मानें तो यह सुई से लिखी ‘मधुशाला’ दुनिया की अब तक की पहली ऐसी पुस्तक है जो मिरर इमेज व सुई से लिखी गई है।

उल्‍टे अक्षरों से लिख गई भागवत गीता ( Bhagwat Gita )

उल्‍टे अक्षरों से लिख गई भागवत गीता ( Bhagwat Gita )

आप इस भाषा को देखेंगे तो एकबारगी भौचक्के रह जायेंगे। आपको समझ में नहीं आयेगा कि यह किताब किस भाषा शैली में लिखी हुई है। पर आप जैसे ही दर्पण ( शीशे‌ ) के सामने पहुंचेंगे तो यह किताब खुद-ब-खुद बोलने लगेगी। सारे अक्षर सीधे नजर आयेंगे। इस मिरर इमेज किताब को पीयूष गोयल ने लिखा है। मिलनसार पीयूष गोयल मिरर इमेज की भाषा शैली में कई किताबें लिख चुके हैं।

सुई से लिखी मधुशाला( Madhu shala)

सुई से लिखी मधुशाला( Madhu shala)
पीयूष गोयल ने एक ऐसा कारनामा कर दिखाया है कि देखने वालों आँखें खुली रह जाएगी और न देखने वालों के लिए एक स्पर्श मात्र ही बहुत है। पीयूष गोयल ने पूछने पर बताया कि सुई से पुस्तक लिखने का विचार क्यों आया ? अक्सर मुझ से ये पूछा जाता था कि आपकी पुस्तकों को पढ़ने के लिए शीशे की जरूरत पड़ती है। पढ़ना उसके साथ शीशा, आखिर बहुत सोच समझने के बाद एक विचार दिमाग में आया क्यों न सूई से कुछ लिखा जाये सो मैंने सूई से स्वर्गीय श्री हरिवंशराय बच्चन जी की विश्व प्रसिद्ध पुस्तक 'मधुशाला' को करीब 2 से ढाई महीने में पूरा किया। यह पुस्तक भी मिरर इमेज में लिखी गयी है और इसको पढ़ने लिए शीशे की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि रिवर्स में पेज पर शब्दों के इतने प्यारे मोतियों जैसे पृष्ठों को गुंथा गया है, जिसको पढ़ने में आसानी रहती हैं और यह सूई से लिखी 'मधुशाला' दुनिया की अब तक की पहली ऐसी पुस्तक है जो मिरर इमेज व सूई से लिखी गई है।

मेंहदी कोन से लिखी गई गीतांजलि ( Gitanjali )

मेंहदी कोन से लिखी गई गीतांजलि ( Gitanjali )

पीयूष गोयल ने एक और नया कारनामा कर दिखाया है उन्होंने 1913 के साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता रविन्द्रनाथ टैगोर की विश्व प्रसिद्ध कृति 'गीतांजलि' को 'मेंहदी के कोन' से लिखा है। उन्होंने 8 जुलाई 2012 को मेंहदी से गीतांजलि लिखनी शुरू की और सभी 103 अध्याय 5 अगस्त 2012 को पूरे कर दिए।इसको लिखने में 17 कोन तथा दो नोट बुक प्रयोग में आई हैं। पीयूष ने श्री दुर्गा सप्त शती, अवधी में सुन्दरकांड, आरती संग्रह, हिंदी व अंग्रेजी दोनों भाषाओं में श्री साईं सत्चरित्र भी लिख चुके हैं। 'रामचरितमानस' ( दोहे, सोरठा और चौपाई ) को भी लिख चुके हैं।

कील से लिखी 'पीयूष वाणी'

कील से लिखी 'पीयूष वाणी'

अब पीयूष गोयल ने अपनी ही लिखी पुस्तक 'पीयूष वाणी' को कील से ए-फोर साइज की एल्युमिनियम शीट पर लिखा है। पीयूष ने पूछने पर बताया कि कील से क्यों लिखा है ? तो उन्होंने बताया कि वे इससे पहले दुनिया की पहली सुई से स्वर्गीय श्री हरिवंशराय बच्चन जी की विश्व प्रसिद्ध पुस्तक 'मधुशाला' को लिख चुके हैं। तो उन्हें विचार आया कि क्यों न कील से भी प्रयास किया जाये सो उन्होंने ए-फोर साइज के एल्युमिनियम शीट पर भी लिख डाला।

कार्बन पेपर की मदद से लिखी 'पंचतंत्र' ( Carbon paper written 'Panchatantra' )

कार्बन पेपर की मदद से लिखी 'पंचतंत्र' ( Carbon paper written 'Panchatantra' )

गहन अध्ययन के बाद पीयूष ने कार्बन पेपर की सहायता से आचार्य विष्णुशर्मा द्वारा लिखी 'पंचतंत्र' के सभी ( पाँच तंत्र, 41 कथा ) को लिखा है। पीयूष गोयल ने कार्बन पेपर को (जिस पर लिखना है) के नीचे उल्टा करके लिखा जिससे पेपर के दूसरी और शब्द सीधे दिखाई देंगे यानी पेज के एक तरफ शब्द मिरर इमेज में और दूसरी तरफ सीधे।

जीवन परिचय

पीयूष गोयल का जन्म 10 फ़रवरी 1967 को माता रविकांता एवं डॉ. दवेंद्र कुमार गोयल के घर हुआ। पीयूष 2003 से कुछ न कुछ लिखते आ रहे हैं 

श्रीमदभगवदगीता (हिन्दी व अंग्रेज़ी), श्री दुर्गा सप्त सत्ती (संस्कृत), श्रीसांई सतचरित्र (हिन्दी व अंग्रेज़ी), श्री सुंदरकांड, चालीसा संग्रह, सुईं से मधुशाला, मेहंदी से गीतांजलि (रबींद्रनाथ टैगोर कृत), कील से "पीयूष वाणी" एवं कार्बन पेपर से "पंचतंत्र" (विष्णु शर्मा कृत)।
नर न निराश करो मन को
नर न निराश करो मन को 
कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रहकर कुछ नाम करो
इन लाइनों से प्रेरणा लेकर पले बढे है पीयूष गोयल पेशे से डिप्लोमा यांत्रिक इंजिनियर है और एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में कार्यरत हैं। इन सबके अलावा पीयूष गोयल दुनिया की पहली मिरर इमेज पुस्तक श्रीमदभागवत गीता के रचनाकार हैं। पीयूष गोयल ने सभी 18 अध्याय 700 श्लोक अनुवाद सहित हिंदी व अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में लिखा है। पीयूष गोयल ने इसके अलावा दुनिया की पहली सुई से मधुशाला भी लिखी है। पीयूष गोयल की 9 पुस्तकें प्रकशित हो चुकी हैं। पीयूष गोयल संग्रह के भी शौक़ीन हैं, उनके पास प्रथम दिवश आवरण, पेन संग्रह, विश्व प्रसिद्ध लोगो के ऑटोग्राफ़ संग्रह भी हैं। इस के आलावा संस्कृत में श्री दुर्गा सत्सती, अवधीमें सुन्दरकाण्ड, हिंदी व अंग्रेज़ी में श्रीसाईं चरित्र भी लिख चुके हैं

अधूरी मुलाक़ात....

 अधूरी मुलाक़ात....


हर बार की तरह, अक्टूबर को इंतज़ार 

था गुलाबी हल्की हल्की ठंड का।

हवा के झोंकों पर सवार 

धीरे-धीरे वो आ ही गई और

 अक्टूबर का हाथ थामे जैसे कह रही हो- " चलो चलें? एक नये सफ़र पर..."


कुछ कदम चले ही थे कि

बारिश की मौजूदगी ने उन्हें चौंका दिया।

बरसती बूँदें जैसे कह रही हो-

"नाम तो सदियों से सुनती आई हूँ तुम्हारा,

बस तुमसे मिलने की ख़्वाहिश थी,

 सो रूक गई कुछ रोज़...."


अक्टूबर क्या कहता...

उसने भी बारिश को पहली दफ़ा यूँ देखा था।

मन में भावनाओं का तूफ़ान उठ रहा था।

 मानो 

बारिश से अधूरी मुलाक़ात उसे भी अच्छी न लग रही हो।


 मुस्कुराकर उसने बारिश की ओर देखकर कहा,

" काश....मै तुम्हें रूकने के लिए कह पाता,

पर मुझे आगे बढ़ना होगा

 और

तुम्हें भी लौटकर जाना होगा...

 यही प्रकृति का नियम है।"


कविता राजपूत 🌷🌷


'विवाह समारोहों में बढ़ती फिजूलखर्ची और प्रदर्शन की होड़'




'विवाह समारोहों में बढ़ती फिजूलखर्ची और प्रदर्शन की होड़'

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 हमारे देश में प्रचलित 16 संस्कारों में से विवाह एक महत्वपूर्ण संस्कार है। कुछ  समय पहले तक शादियां पूर्ण पारम्परिक तरीके से और अपने गृह नगर और अपने ही निवास स्थान में होती थीं, लेकिन आजकल शादियों का स्वरूप पूरी तरह से बदल गया है। आज़ शादी भी एक व्यवसाय बन गया है और उसकी व्यवस्था इवेंट मैनेजमेंट कंपनियों द्वारा की जाने लगी है। इस कारण शादी-ब्याह पारिवारिक उत्सव न होकर स्टेटस सिंबल और प्रदर्शन का विषय बन गया है। आजकल विवाह समारोहों में प्रदर्शन इस हद तक बढ़ गया है, जिसे देखकर लगता है कि यह विवाह समारोह न होकर के कोई फैशन शो या फिल्मी इवेंट है।

विवाह समारोहों में बढ़ती फिजूलखर्ची न केवल चिन्ता का विषय है अपितु उसमें सुधार की अत्यन्त आवश्यकता है। अगर दिन-प्रतिदिन बढ़ती फिजूलखर्ची को नहीं रोका गया तो यह अन्धानुकरण हमें पतन के गर्त में धकेल देगा। आइए, कुछ मुख्य बिन्दुओं पर नजर डालते हैं-

प्री वेडिंग शूट

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हमारे भारतीय समाज में विवाह से पूर्व इस तरह के फोटो शूट और लड़के-लड़कियों का खुलेआम प्रेम प्रदर्शन बिल्कुल भी मान्य नहीं कहा जा सकता लेकिन पश्चिमी सभ्यता का अंधानुकरण करके युवा पीढ़ी अपने आपको माॅडर्न कहलाने का कोई मौका खोना नहीं चाहती। अगर एक अविवाहित जोड़े ने हिल स्टेशन पर प्री वेडिंग शूट करवाया है तो दूसरा बिकनी में नजर आ रहा है। और तो और उसे बड़ी बेशर्मी से विवाह के समय बड़े पर्दे पर बड़े-बुजुर्गों और बच्चों के सामने प्रदर्शित करके नैतिकता की सारी सीमाओं को लांघा जा रहा है।

डेस्टिनेशन वेडिंग 

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 आजकल विवाह पारिवारिक उत्सव न होकर महज़ दिखावा बन गया है। घरेलू शादियों की जगह अब डेस्टिनेशन वेडिंग ने ले ली है और यह एक फैशन बनता जा रहा है। अपनी मनपसंद जगह पर जाकर शादी करना, वहां पर करोड़ों रुपए खर्च करके होटल या रिसाॅर्ट बुक करना और अपने बराबर की हैसियत वाले गिने-चुने रिश्तेदारों को ही आमंत्रित करना अपनी शान समझा जाता है। अमीर लोगों के लिए तो ऐसा करना कोई मुश्किल काम नहीं लेकिन आजकल मध्यम वर्गीय परिवार भी उनकी देखा-देखी में अपने ख़ून पसीने की कमाई को बर्बाद कर रहे हैं, जो  सिवाय फिजूलखर्ची के और कुछ नहीं है। इस देखा-देखी में कितने परिवार ज़िन्दगी भर के लिए क़र्ज़ के बोझ तले दब जाते हैं, जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।

डेकोरेशन यानि साज-सज्जा 

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अब विवाह समारोहों में हर रस्म के लिए अलग-अलग जगह का चुनाव और थीम का चुनाव एक शगल बन गया है। शगुन के काम अब दिखावे के लिए होने लगे हैं। हल्दी, मेंहदी, मायरा और वरमाला से लेकर शादी के मंडप तक सजावट के लिए करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाए जाते हैं। 

पोशाकों और ज्वेलरी पर खर्च

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आजकल विवाह समारोहों में प्रत्येक थीम के लिए अलग-अलग रंगों की पोशाक रखी जाती है। अगर आपके पास साड़ियों या ड्रेसेज का खज़ाना है भी तो वह बेकार है। क्योंकि थीम के अनुसार आपको नये वस्त्र खरीदने ही पड़ेंगे, नहीं तो आप आउट डेटेड कहलायेंगे। फिर सोशल मीडिया पर शादी की फोटोज़ पोस्ट भी करनी रहती है। एक बार जो ड्रेस पोस्ट कर दी, वह दुबारा पहनना तो शान के खिलाफ समझा जाता है। मिसेज खन्ना ने एक लाख की ड्रेस बनवाई है तो हम क्यों पीछे रहें? मिसेज वर्मा तो हमेशा ही ड्रेस की मैचिंग ज्वेलरी पहनती हैं। तो फिर फैशनेबल ज्वेलरी, स्मार्टवॉच, मेकअप का सामान और  मैचिंग सैंडिल भी तो होने चाहिए।

और तो और आजकल पुरुषों में भी ड्रेसिंग सेंस को लेकर होड़ लगने लगी है। पहले उनके लिए सिर्फ सीमित विकल्प थे लेकिन आजकल तो पति-पत्नी अलग-अलग इवेंट में एक ही रंग की ड्रेस पहनने लगे हैं। पहले पुरुषों के लिए पैंट-शर्ट और सूट ही पोशाक के रूप में प्रचलित थे लेकिन अब तो विभिन्न प्रकार के रेडीमेड कुर्ते-पायजामे, धोती-कुर्ता और शेरवानी सभी बाजार में उपलब्ध हैं। तथा उनकी मैचिंग के जूते और मोजड़ी वगैरह भी बाजार में मिलते हैं। एक शादी में भागीदारी के लिए खरीददारी करने में अच्छी खासी जेब हल्की हो जाती है।

मेंहदी डिजाइनर और पार्लर खर्च 

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पहले के  विवाह समारोहों में परिवार की महिलाएं ही एक-दूसरे को मेंहदी लगाती थी लेकिन आजकल उसके लिए मेंहदी लगाने वालों को किराए पर बुलाया जाता है और उन्हें मुंहमांगी रकम दी जाती है। उसके अलावा परिवार की महिलाओं और दुल्हन के साज-शृंगार हेतु ब्यूटी पार्लर की सेवाएं लेना अनिवार्य हो गया है। आजकल पुरुषों में भी धीरे-धीरे यह संक्रामक बीमारी फैलने लगी है। निश्चित रूप से ये सब आपके बजट को बढ़ाने वाले कारक हैं। 

भोजन की बर्बादी

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विवाह समारोहों में बढ़ती फिजूलखर्ची से जुड़ा हुआ एक और महत्वपूर्ण कारक है- व्यंजनों की असीमित संख्या और भोजन के दौरान होने वाली अन्न की बर्बादी। पहले जहाँ केवल भारतीय व्यंजन ही हमारी थाली की शोभा बढ़ाते थे, अब उनकी जगह कांटिनेंटल डिशेज ने ले ली है। अब अगर भारतीय शादी-ब्याह में चाइनीज, मेक्सिकन, इटालियन और थाई व्यंजन न हो तो वह शादी मामूली मानी जाती है। जिसने जितना ज्यादा खर्च किया और जितने ज्यादा व्यञ्जन खाने में परोसे, उसे उतनी ही वाहवाही मिलती है।

मेन कोर्स से पहले चाट के नाम पर उत्तर भारतीय, दक्षिण भारतीय व्यंजनों के साथ तमाम महाद्वीपीय व्यंजनों की लाइन लगी रहती है। अब पेट तो बेचारा एक ही है लेकिन जीभ सभी व्यंजनों का स्वाद चखने को लालायित रहती है और इसी कारण प्रत्येक काउंटर पर लम्बी लाइन देखी जा सकती है। ऐसा लगता है कि वहां पर खड़ा प्रत्येक व्यक्ति जन्मों से भूखा हो और एक-दूसरे से पहले प्लेट में डिश झपटने के लिए चील-कौए जैसी छीना झपटी पर उतारू। अब पेट तो पेट है, एक ही समय में बेचारा कितना ठूंसेगा? लिहाज़ा दो कौर लेने के बाद प्लेट डस्टबिन के हवाले कर दी जाती है।

नतीजा यह होता है कि जहां पर जूठी प्लेटें रखी जाती हैं, वहां पर आधे जूठे खाने का ढेर लग जाता है और वह किसी के काम नहीं आता है। आज़ जहां पूरे विश्व में आबादी का एक बड़ा भाग भुखमरी और कुपोषण से पीड़ित है, वहां पर हम लोग कितने अन्न की बर्बादी करते हैं। अगर वही अन्न किसी भूखे के पेट में जाता है तो उसकी आत्मा उस भोजन से तृप्त होगी। इसलिए अपनी प्लेट में जूठा छोड़ने से पहले एक बार इस बारे में अवश्य सोचें और अन्न  की बर्बादी न करें। साथ ही साथ केवल दिखावे के लिए शादियों में की जाने वाली फिजूलखर्ची से बचें।


© सरिता सुराणा

हिन्दी साहित्यकार एवं स्वतंत्र पत्रकार

हैदराबाद 



सावधान ! डिजिटल युग की नई ठगी

 सावधान  ! डिजिटल युग की नई ठगी 

3 अक्टूबर 2025 को सायं लगभग 4:30 बजे मेरे मोबाइल पर “Hi” लिखकर एक अनजान व्हाट्सऐप संदेश आया। मैंने कोई उत्तर नहीं दिया। कुछ ही क्षण बाद “कुरियर कम्पनी” के नाम से एक कॉल आई, जिसे मैंने मौनव्रत के कारण रिसीव नहीं किया। बार-बार कॉल आने पर मैंने अपने एक कर्मचारी से बात करने को कहा। कॉल करने वाले ने कहा  “आपको एक पार्सल डिलीवर करना है, कृपया लोकेशन भेजिए।”

कर्मचारी ने अनजाने में लोकेशन साझा कर दी। बस यही गलती भारी पड़ गई! उस व्यक्ति ने हमारी कॉल को रीडायरेक्ट कर लिया और मेरा व्हाट्सऐप हैक हो गया। फिर मेरे नंबर से मेरे संपर्कों को यह संदेश भेजा गया –“मुझे दो घंटे के लिए कुछ पैसों की जरूरत है, मेरा UPI और Google अकाउंट काम नहीं कर रहा, कृपया तुरंत भेजें।”

मेरे नाम और नंबर से आए संदेश पर विश्वास कर, कुछ शुभचिंतकों ने पैसे भेज दिए और ठगी का शिकार बन गए। एक घंटे बाद जब उन्होंने फोन किया, तब तक देर हो चुकी थी। सच ही कहा गया है — अब पछताये होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गई खेत। 

अब सवाल यह है — हम इस तरह की डिजिटल ठगी से कैसे बचें?

यह समय “स्मार्टफोन” का है, लेकिन ज़रूरत है “स्मार्ट सोच” की।

सिर्फ तकनीक नहीं, सावधानी ही सबसे बड़ा सुरक्षा कवच है।

सतर्कता एवं बचाव के उपाय 

1. अनजान कॉल या मैसेज का उत्तर न दें।

“Hi”, “Hello”, “Courier”, “KYC”, “Verification” जैसे संदेशों से दूर रहें।

2. कॉल करने वाले से कंपनी का नाम, पता और पार्सल भेजने वाले का नंबर पूछें।इससे उसकी असलियत का अंदाजा लग जाता है।

3. कभी भी लोकेशन, OTP या QR कोड साझा न करें।ये जानकारी आपके खाते तक पहुंचने का रास्ता खोल देती है।

4. यदि किसी परिचित के नाम से पैसे मांगने का संदेश आए, तो तुरंत उसे फोन करें।कॉल नहीं लगे तो उसके नजदीकी परिचित से संपर्क करें, पर बिना पुष्टि के पैसा न भेजें।

5. व्हाट्सऐप पर “Two-Step Verification” अवश्य सक्रिय करें।इससे अकाउंट सुरक्षित रहेगा।

 संदेश का सार 

सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी।

डिजिटल युग में जागरूकता ही सुरक्षा है। भगवान महावीर ने कहा है —

“जाग्रत होकर विवेकपूर्ण निर्णय ही सही कर्म है।” आइए, हम स्वयं सतर्क रहें, अपने परिवार और समाज को भी जागरूक करें। रोकथाम हमेशा उपचार से बेहतर होती है।

सुगालचन्द जैन, चेन्नई


देश की स्वतंत्रता और एकता में हिंदी का योगदान

 


देश की स्वतंत्रता और एकता में हिंदी का योगदान

डा ममता जैन, पुणे 


हिंदी केवल एक भाषा नहीं, अपितु भारत की आत्मा, संस्कृति और सभ्यता की प्रतीक है। यह वह भाषा है जिसने न केवल देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में जनजागरण का काम किया, बल्कि आज भी राष्ट्रीय एकता की सशक्त नींव है। यह वह माध्यम बनी जिसने स्वतंत्र भारत की एकता को सूत्र में पिरोया।हिंदी वह सेतु बनी जिसने उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम — सभी भारतीयों को भावनात्मक और सांस्कृतिक स्तर पर जोडा।

 अतः देश की स्वतंत्रता और एकता के संघर्ष में हिंदी का योगदान अद्वितीय, अमूल्य और गौरवपूर्ण रहा है।

स्वतंत्रता संग्राम में हिंदी की भूमिका

जन-जागरण का माध्यम – 19वीं और 20वीं शताब्दी में हिंदी साहित्य और पत्रकारिता ने जनमानस को अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

स्वतंत्रता संग्राम के मध्य जब अंग्रेजी शासकों ने भारतीयों की आवाज़ दबाने का प्रयास किया, तब हिंदी ने एक जनभाषा के रूप में उभरकर जनमानस को एकजुट किया। महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचंद्र बोस, चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह जैसे नेताओं ने अपने विचारों और आंदोलनों को जनता तक पहुँचाने के लिए हिंदी का प्रयोग किया।

    गांधी जी ने हिंदी को जनभाषा कहकर उसे देश की आत्मा बताया। उनका मानना था कि यदि कोई भाषा करोड़ों भारतीयों के हृदय को छू सकती है, तो वह केवल हिंदी है।चंपारण सत्याग्रह में महात्मा गांधी ने हिंदी का प्रयोग कर किसानों से सीधा संवाद किया, जिससे आंदोलन को व्यापक जनसमर्थन मिला।

बाल गंगाधर तिलक का हिंदी नारा 

“स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।”  जन-जन का उद्घोष बन गया।

  माखनलाल चतुर्वेदी की कविता “पुष्प की अभिलाषा”  की ये पंक्तियां "चाह नहीं मैं सुरबाला  के गहनों में गूंथा जाऊं"स्वतंत्रता सेनानियों की प्रेरणास्रोत ही  नहीं बनी अपितु कविता कक्षा से लेकर क्रांति मंच तक गूँजने लगी।काकोरी कांड के क्रांतिकारी अपने पर्चों और घोषणाओं को हिंदी में लिखते थे, ताकि वह हर आम आदमी तक पहुँचे।

 रामप्रसाद बिस्मिल की “सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है” जैसे ओजपूर्ण गीत हिंदी में ही रचे गए और क्रांति की आग बन गए।

 ‘प्रताप’ (गणेश शंकर विद्यार्थी), ‘कर्मवीर’ (पं. माखनलाल), ‘सरस्वती’, ‘हिंदुस्तान’, ‘आज’ आदि ने आजादी की भावना को पृष्ठों से निकालकर जनमानस तक पहुँचाया।हिंदी के “भारत माता की जय”,“जय हिंद”,“अंग्रेजों भारत छोड़ो”,“इंकलाब जिंदाबाद”

ये नारे सिर्फ शब्द नहीं थे, स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारियाँ थीं।

हिंदी पत्र-पत्रिकाएँ जैसे हिंदुस्तान, अभ्युदय, प्रताप, सरस्वती, कर्मवीर आदि ने देशभक्ति की भावना को जगाने में महती भूमिका निभाई।

कवियों और लेखकों जैसे मैथिलीशरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद ,सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', रामधारी सिंह 'दिनकर', माखनलाल चतुर्वेदी आदि ने अपनी ओजस्वी कविताओं से जनता में नवचेतना का संचार किया।

  स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भी देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने में हिंदी ने एक मजबूत सेतु का कार्य किया। भारत विविध भाषाओं, बोलियों और संस्कृतियों का देश है। ऐसे में एक साझा भाषा की आवश्यकता थी जो लोगों के बीच भावनात्मक और सांस्कृतिक एकता स्थापित कर सके। भारत के अलग-अलग प्रांतों के लोगों को जोड़ने के लिए हिंदी ने “लिंग्वा फ्रैंका” (संपर्क भाषा) का काम किया।देश की स्वतंत्रता और एकता के इतिहास में हिंदी का योगदान एक स्वर्णिम अध्याय है

 संविधान सभा की चर्चाओं में हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने का निर्णय इस बात का प्रमाण है कि हिंदी को एकता के प्रतीक के रूप में देखा गया।

हिंदी को राजभाषा का दर्जा 14 सितंबर 1949 को दिया गया, जिससे यह प्रशासन, शिक्षा, साहित्य और संचार का माध्यम बनी।

हिंदी सिनेमा, समाचार पत्र, दूरदर्शन और रेडियो के माध्यम से हिंदी ने पूरे भारत में एकता का भाव जगाया।सांस्कृतिक आदान-प्रदान – हिंदी फिल्मों, गीतों, साहित्य और मंचीय प्रस्तुतियों ने उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम तक एक समान भावनात्मक जुड़ाव बनाया।मेरा जूता है जापानी...", "ऐ मेरे वतन के लोगों..." जैसे गीतों ने देशभक्ति और एकता का संदेश पूरे देश में फैलाया।

आज जब अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ रहा है, वैश्वीकरण के दौर में हिंदी को पीछे धकेलने की प्रवृत्तियाँ दिख रही हैं, तब यह और आवश्यक हो जाता है कि हम अपनी मातृभाषा को समान आदर और अवसर दें।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र, G20 जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी हिंदी में भाषण देकर इसे वैश्विक मान्यता दिलाई।

यूनेस्को ने भी कई बार हिंदी के साहित्यिक योगदान की सराहना की है।

प्रवासी भारतीय समुदाय भी हिंदी को सांस्कृतिक पहचान और भारतीय एकता का प्रतीक मानता है।

हिंदी ने स्वतंत्रता संग्राम में जन-जागरण का शंखनाद किया और आज़ादी के बाद राष्ट्रीय एकता के सूत्र को और मजबूत किया। यह भाषा न केवल इतिहास की साक्षी है, बल्कि भविष्य की राह भी दिखाती है। हमें हिंदी को केवल राजभाषा के रूप में नहीं, बल्कि “राष्ट्र के हृदय की भाषा” के रूप में अपनाना चाहिए। हम सबका कर्तव्य है कि हम हिंदी का सम्मान करें, उसे अपनाएँ और इसे विश्वपटल पर प्रतिष्ठित करें।

“हिंदी हैं हम, वतन है हिन्दुस्तान हमारा।”

जय हिंदी! जय भारत!

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मेरा चरित्र और रेतीली गठरियाँ

 मेरा चरित्र और रेतीली गठरियाँ

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


मै अपने साथ एक झोला रखता हूँ,

जिसमे रेत की कुछ गठरियाँ हैँ।

मेरा चरित्र भुरभुरा है;

क्योँकि वह रेतीला है।

इधर, चरित्र गिरता है;

उधर, रेत की गठरियाँ–

सक्रिय हो उठती हैँ;

एक नया चरित्र उकेरने के लिए।

मेरा चरित्र–

बार-बार फिसलता है;

मुट्ठी मे भरे बालू की तरह।

दूसरी गठरी सक्रिय होने लगती है।

बेशक, मै सौ प्रतिशत चरित्रहीन हूँ;

मगर साथ चलती गठरियाँ–

थाम लेती हैँ–

मेरी बीभत्स चरित्रहीनता को;

क्योँकि उन्हेँ मालूम है–

हम दोनो क्षणजीवी हैँ;

एक-दूसरे के पूरक भी।

 

अनाथाश्रम में मनाई दीपावली

 पुणे।शुभचिंतक फाउंडेशन ट्रस्ट पुणे द्वारा वाघोली के आनंदअनाथ आश्रम में 300 बच्चों के साथ हर्षोल्लासपूर्वक दीपावली मनाई गई। इस अवसर पर दीप प्रज्वलन कर वातावरण को मंगलमय बनाया गया तथा सभी बच्चों को विशेष रूप से तैयार की गई भोजन थालियाँ, मिठाइयाँ, नमकीन और बिस्किट आदि वितरित किए गए।


फाउंडेशन की अध्यक्षा डॉ. नीलम जैन ने कहा कि “दीपावली का सच्चा आनंद तभी है जब हम अपने आसपास के वंचित बच्चों के चेहरों पर मुस्कान ला सकेंउनके दिलों के अंधेरे मिटाए।” उन्होंने इस सेवा अवसर को अपने जीवन का अत्यंत सुखद क्षण बताया।


इस अवसर पर ट्रस्ट के सभी सदस्य — श्री यू.के. जैन, अक्षय जैन, डॉ. ममता जैन, स्मिता, पुष्पा काले, गुणमाला, नेहा, टीना, प्रीति, मेखला, रेखा, हीरा, सारिका,अर्पिता राखी, रूपाली, अभिलाषा आदि उपस्थित रहे और उन्होंने बच्चों के साथ दीपावली की खुशियाँ साझा कीं।


कार्यक्रम के अंत में अनाथ आश्रम के अध्यापक, कर्मचारी और कार्यकर्ताओं ने शुभचिंतक फाउंडेशन ट्रस्ट के सभी सदस्यों का हृदय से धन्यवाद व्यक्त किया तथा ट्रस्ट की ओर से उन्हें भी उपहार दिए गए उन्होंने कहा कि इस प्रकार के आयोजन बच्चों में नई उमंग और आत्मविश्वास का संचार करते हैं। ऐसी समाज सेवी संस्थाएं ही साधनहीन बच्चों को मुख्य धारा से जोड़ती है और उनके जीवन का विकास करती है


दीयों की जगमगाहट और बच्चों की मुस्कान ने आश्रम परिसर को रोशन कर दिया और दीपावली को सच्चे अर्थों में ‘प्रकाश पर्व’ बना दिया।



राष्ट्रीय पत्रकार सम्मेलन सम्पन्न



भारतवर्षीय तीर्थ क्षेत्र कमेटी द्वारा आयोजित दो दिवसीय पत्र संपादक  सम्मेलन   दिल्ली में  अपार सफलता के साथ सम्पन्न हुआ ।  तीर्थक्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष श्री जम्बू प्रसाद जी,125 वें वर्ष समारोह के अध्यक्ष श्री जवाहर लाल जी की उपस्थिति में आचार्य श्री प्रज्ञ सागर जी ससंघ के पावन सान्निध्य में प्रथम दिवस 25 अक्टूबर को पुरानी दिल्ली के लाल मंदिर व द्वारका स्थित जिनालय सहित 9 भव्य जिनालयों के दर्शन किए गए । श्री अतुल जी ने सभी मंदिरों की ऐतिहासिक जानकारी देकर सभी का मन मोह लिया। लाल मंदिर के पदाधिकारियों द्वारा सभी का भव्य स्वागत, स्वल्पाहार व समुचित भोजन व्यवस्था के लिए आभार। द्वारका जी जिनालय के अध्यक्ष श्री शरद कासलीवाल का सहयोग भी पूरे समय देखने को मिला। 

ग्रीन पार्क  जिनालय के दर्शन लाभ के साथ अर्हम् योग प्रणेता पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी जी के दर्शन व उनके उद्बोधन का लाभ मिला। उनका मंगल आशीर्वाद सभी को प्रेरणादायी रहा। तीनों सत्रों का  संचालन महामंत्री  अखिल बंसल जी ने किया  । सम्मेलन  में गृहमंत्रालय में जनगणना कार्यालय के उप महारजिस्ट्रार श्री धीरज जैन, शिक्षा मंत्रालय के उप सचिव श्री संदीप जैन के आतिथ्य में सम्पन्न प्रथम सत्र के मुख्य वक्ता विद्वत् परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा.वीर सागर जी के सम्बोधन ने चार चांद लगा दिए।  द्वितीय सत्र को प्रख्यात पत्रकार श्री ललित गर्ग का आतिथ्य व संबोधन के साथ पत्र संपादक संघ के वक्ताओं ने अपने विचार रखे। सभी वक्ताओं के विचारों पर अचार्य श्री प्रज्ञ सागर जी की सटीक टिप्पणी से सभी आगन्तुक लाभान्वित हुए। तृतीय सत्र डा. अनेकांत जी के आतिथ्य में सम्पन्न हुआ जिसमें शेष रहे वक्ताओं ने अपने विचार रखे। समय अधिक होने से कुछ वक्ताओं को निराश भी होना पड़ा। अंत में सभी आगन्तुक पत्रकार विद्वानों को भारतवर्षीय तीर्थक्षेत्र कमेटी दिल्ली प्रदेश की ओर से उपहार  तथा भावभीना सम्मान किया गया । इस अवसर पर डा.जयेन्द्रकीर्ति जी ने शीघ्र ही संपादक संघ का समारोह नेपाल में किये जाने की घोषणा की जिसका उपस्थित समुदाय ने करतल ध्वनि से स्वागत किया तथा डा.जयेन्द्र कीर्ति जी को पत्र संपादक संघ का अन्तर्राष्ट्रीय प्रवक्ता तथा वरिष्ठ पत्रकार श्री ललित गर्ग को राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाने की घोषणा संगठन के महामंत्री डा.अखिल बंसल ने की ; दोनों ने आचार्य श्री से आशीर्वाद ग्रहण किया। एक और महत्वपूर्ण घोषणा महामंत्री द्वारा की गई जिसके अनुसार पत्र संपादक संघ का महिला प्रकोष्ठ भी अब संगठन के कदम से कदम मिलाकर कार्य करेगा। इस महिला प्रकोष्ठ का अध्यक्ष श्रीमती डा.प्रगति जैन-इन्दौर,कार्याध्यक्ष- श्रीमती मीनू जैन-गाजियाबाद ,उपाध्यक्ष- डा.ज्योति जैन - खतौली (उत्तरप्रदेश प्रभार) , महामंत्री - डा.ममता जैन-पुणे व कोषाध्यक्ष - डा.मीना जैन- उदयपुर (राजस्थान प्रभार) को बनाया गया। मध्यप्रदेश का प्रभारी श्रीमती रुचि चौविश्या-इन्दौर,

प.बंगाल व उडीसा का प्रभारी श्रीमती अनुपमा जैन-हावडा, महाराष्ट्र का प्रभारी- डा.अल्पना जैन-मालेगांव व दिल्ली का प्रभारी श्रीमती पारुल जैन को बनाया गया।

महिला प्रकोष्ठ की कार्याध्यक्ष श्रीमती मीनू जैन ने भी श्रीफल भेंटकर आचार्य श्री से आशीर्वाद ग्रहण किया। आगामी नैमित्तिक अधिवेशन आ.श्री विमल सागर जी की पुण्यतिथि पर 15-16 दिसम्बर को उनकी जन्मभूमि कोसमा में आ. श्री चैत्सागर जी ससंघ के पावन सान्निध्य में होगा जिसमें महत्वपूर्ण निर्णयों के साथ शेष कार्यकारिणी व महिला प्रकोष्ठ के पदाधिकारियों का शपथग्रहण होगा। एक महत्वपूर्ण निर्णय आचार्य श्री विद्यानंद जी स्मृति ग्रंथ के प्रकाशन का लिया गया । इस ग्रंथ का प्रकाशन आचार्य श्री प्रज्ञसागर जी के मार्गदर्शन में डा.अखिल बंसल के संपादकत्व में किया जाएगा। आगामी 22 अप्रैल को आ.श्री विद्यानंद जी के 101 वें जन्मदिवस पर ग्रंथ का विमोचन समारोह पूर्वक आ.श्री प्रज्ञ सागर जी के सान्निध्य में किया जाएगा।

     इस संगोष्ठी में संपादक संघ के चेयर पर्सन श्री अनूपचंद एडवोकेट व श्री शैलेन्द्र जी एडवोकेट,अध्यक्ष श्री जगदीश प्रसाद जैन के अतिरिक्त अनेक पदाधिकारियों सहित 42 सदस्यों की सार्थक उपस्थिति रही।

डा 0 ममता जैन 

    


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