अधूरी मुलाक़ात....

 अधूरी मुलाक़ात....


हर बार की तरह, अक्टूबर को इंतज़ार 

था गुलाबी हल्की हल्की ठंड का।

हवा के झोंकों पर सवार 

धीरे-धीरे वो आ ही गई और

 अक्टूबर का हाथ थामे जैसे कह रही हो- " चलो चलें? एक नये सफ़र पर..."


कुछ कदम चले ही थे कि

बारिश की मौजूदगी ने उन्हें चौंका दिया।

बरसती बूँदें जैसे कह रही हो-

"नाम तो सदियों से सुनती आई हूँ तुम्हारा,

बस तुमसे मिलने की ख़्वाहिश थी,

 सो रूक गई कुछ रोज़...."


अक्टूबर क्या कहता...

उसने भी बारिश को पहली दफ़ा यूँ देखा था।

मन में भावनाओं का तूफ़ान उठ रहा था।

 मानो 

बारिश से अधूरी मुलाक़ात उसे भी अच्छी न लग रही हो।


 मुस्कुराकर उसने बारिश की ओर देखकर कहा,

" काश....मै तुम्हें रूकने के लिए कह पाता,

पर मुझे आगे बढ़ना होगा

 और

तुम्हें भी लौटकर जाना होगा...

 यही प्रकृति का नियम है।"


कविता राजपूत 🌷🌷


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