शून्य



यात्रा में संचित

होते जाते हैं शून्य,

कभी छोटे, कभी विशाल, 

कभी स्मित, कभी विकराल..,

विकल्प लागू होते हैं

सिक्के के दो पहलू होते हैं-

सारे शून्य मिलकर 

ब्लैकहोल हो जाएँ

और गड़प जाएँ अस्तित्व

या मथे जा सकें 

सभी निर्वात एकसाथ,

पाएँ गर्भाधान नव कल्पित,

स्मरण रहे-

शून्य मथने से ही

उमगा था ब्रह्मांड

और सिरजा था

ब्रह्मा का अस्तित्व,

आदि या इति,

स्रष्टा या सृष्टि,

अपना निर्णय, अपने हाथ

अपना अस्तित्व, अपने साथ,

...समझ रहे हो न मनुज!


संजय भारद्वाज


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