निर्माणों के पावन युग में, हम चरित्र निर्माण न भूलें

 


विप्लव बनर्जी सेवानिवृत्त होने के उपरांत मालदा में अपने पैतृक निवास शांति निकेतन,गाय घाट में, जो  उन्हें अपने पिता से मिला था, पत्नी के साथ ही आजकल रहते हैं. रेलवे में स्टेशन मास्टर के पद से सेवानिवृत्त हुए उन्हे  पांच साल हो गये. कुछ खेती पिता जी  से मिल गया था और कुछ नौकरी के दौरान विप्लव ने अपने पैसों से खरीदा था. आजकल नौकरों की सहायता से उसी में कुछ खेती करके अपना समय बिताते हैं. 

विप्लव के दो बेटा और एक बेटी है, सबों की शादी हो गयी है. बड़ा बेटा औरव अमेरिका में किसी साफ्टवेयर कम्पनी में काम करता है, दूसरा बेटा अमित बंगलौर में नौकरी करता है . बेटी अपर्णा अपने ससुराल वाराणसी में रहती है, दामाद का वहीं पर साड़ियों का व्यवसाय है. विप्लव, सपत्नी सब के यहाँ बीच - बीच में, हप्ता- पन्द्रह दिनों के लिए जाते रहते हैं. बच्चे भी मालदा आते रहते हैं और दुर्गा पूजा में दोनों बेटे, सपरिवार पूरे पन्द्रह दिनों के लिए मालदा, अपने घर आते हैं. 

विप्लव जी का जीवन सामान्य रूप से चल रहा था. इधर कुछ दिनों से पत्नी विशेष्वरी देवी का स्वास्थ ठीक नहीं रह रहा था. बंगलौर में अपोलो हास्पिटल में दिखाया था, डाक्टर ने कहा था कोई खास बात नहीं है, कुछ ब्लाकेज हैं, लेकिन बहुत ही थोड़ा है, दवा से ठीक हो जायेगा. तो वहीं की लिखी हुई दवा चल रही है, आराम है, लेकिन कभी- कभी विशेष्वरी देवी की तबियत अधिक बिगड़ जाती है. अमित ने कहा कि आप माँ को लेकर बंगलौर आ जाओ और यहीं हमारे साथ ही रहिये. लेकिन विप्लव और विशेष्वरी देवी का मन अपना घर छोड़कर जाने को नहीं मान रहा था. दोनों ने सोचा, छोड़ो जीवन कै अन्तिम समय क्यों अपना घर छोड़ें, जो होगा देखा जायेगा, कौन अमर हो कर आया है! 

एक दिन की बात है कि दोपहर को विशेष्वरी देवी को अधिक परेशानी होने लगी, स्थानीय डाक्टर को दिखाया, उसने कहा ऐसी कोई घबराने की बात नहीं है, दवा दे देता हूँ, ठीक हो जायेगा. दवा से विशेष्वरी देवी को फायदा तो हुआ, लेकिन बेटा अमित ने कहा कि आप बंगलौर आ जाओ, मैं फ्लाइट का टिकट भेज देता हूँ. विप्लव ने कहा कि ठीक है, दो दिन बाद सोमवार का टिकट भेज दो, यहाँ पर भी तो निकलने के पहले  घर की व्यवस्था करनी  पड़ेगी.   अमित ने कहा ठीक है. रात में विप्लव और विशेष्वरी देवी को उनके पड़ोसी मजूमदार ने खाने के लिए अपने घर बुलाया था. मजूमदार के यहाँ खाना खाने के बाद दोनों घर पर आये और रात की दवा खा कर विशेष्वरी देवी तो सोने चलीं गयीं, लेकिन विप्लव कुछ देर तक बंकिमचन्द्र जी का लिखा उपन्यास विषवृक्ष पढ़ते रहे. थोड़ी देर पढ़ने के बाद वे भी सो गए. 

सुबह जब नींद खुली तो विप्लव ने  देखा  कि विशेष्वरी देवी जी अभी तक सो रहीं हैं . सामान्यतः वो जल्दी उठ जाया करती थीं. विप्लव ने पहले तो आवाज दी, लेकिन कोई हरकत नहीं होने पर उन्होंने विशेष्वरी देवी की बांह पकड़ कर जगाने की कोशिश की, लेकिन वो नहीं उठी. विप्लव घबरा गए, नाक पर हथेली रखा, कोई हरकत नहीं हुई, नब्ज पर हाथ रखा, नब्ज एकदम शांत था. विप्लव का दिल धड़कने लगा. नौकरों को आवाज दी कि जल्दी डाक्टर घोष बाबू को फोन करो. डाक्टर घोष बगल में ही रहते थे, वे तुरन्त आ गए, उन्होंने भी स्टैथोस्कोफ से देखा, बोले विप्लव दा, भाभी नहीं रहीं. विप्लव को तो पहले ही संदेह हो गया था, खैर क्या बोलते! 

तुरन्त ही सभी बेटा- बेटी को मोबाइल से बताया गया और विशेष्वरी देवी के  शव को सुरक्षित रखने की व्यवस्था की गई, क्योंकि अमेरिका में रहने वाले बेटा औरव ने कहा कि जब तक मैं न आ जाऊँ, अन्तिम संस्कार मत करियेगा. मैं परसों सुबह कलकत्ता पहुँच रहा हूँ. विप्लव ने मन ही मन कहा कि जैसी ईश्वर की इच्छा! बेटी अपर्णा ने कहा कि मैं शाम तक अपनी कार  से घर पहुँच रही हूँ. अमित ने कहा कि पापा मैं शाम तक कलकत्ता पहुँच रहा हूँ, रात में किसी समय टैक्सी से घर आ जाऊंगा.

शाम तक अपर्णा और रात में अमित दोनों घर पहुँच गए और दो दिनों बाद, रात में अमेरिका से  औरव भी आ गया. दूसरे दिन विशेष्वरी देवी जी का गंगा जी के किनारे अन्तिम संस्कार कर दिया गया, मुखाग्नि विप्लव ने ही दिया. विप्लव ने सभी बच्चों से कहा कि सबको तो एक दिन जाना ही है, बस कोई आगे, कोई पीछे. तुम्हारी माँ ने अपना सम्पूर्ण जीवन सुखमय जिया, इसलिए उनकी मृत्यु पर शोक की जगह संतोष करना चाहिए. बच्चे कुछ बोले नहीं, वैसे भी बोलने के लिए बचा ही क्या था! 

दूसरे दिन अचानक विप्लव जी को  बगल के कमरे से बच्चों की बातें करने की आवाज सुनाई पड़ी. पहले तो उन्होंने ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब  आवाजें रुकना बन्द नहीं हुआ तो ध्यान दिया. उन्हें लगा कि बच्चे अपनी माँ के बरही ( बारह दिनों पर मृतक सम्बंधित पूजा) के विषय में बातें कर रहे  हैं. वे कमरे में चले गए और पूछा कि क्या बात है अपर्णा? अपर्णा ने कहा कि पापा कोई खास बात नहीं है, क्या है कि आजकल दाह संस्कार के तीन दिन के बाद ही  सारे कार्यक्रम करने की नयी परम्परा शुरू हो गई है, उसी सम्बन्ध में भईया बात कर रहे थे, क्यों न माॅं का सारे कार्यक्रम तीन दिनों के बाद कर दिया जाए? 

विप्लव जी यह सुन कर स्तब्ध रह गए, पहले तो समझ ही नहीं पाए, लेकिन कुछ ही पलों में सारी बातें उनके समझ में आ गयी. बोले बेटा यह तीन दिनों की  जो नयी परम्परा शुरू हुई है, वह क्या कोई नया धार्मिक  विधान है अथवा समय का अभाव के कारण सुविधाजनक व्यवस्था ?,  अथवा  किसी प्रकार से कुछ भी करके, निबटा दिया जाए, यह भाव है. अमित ने कहा कि पापा आर्य समाज में ऐसा ही  होता है. विप्लव बोले बेटा आर्य समाज ने पाखंड और फिजूल खर्ची को रोकने के लिए एक अभियान चलाया था और उसे काफी सराहा भी गया था. लेकिन मेरी बात सुन लो, हमारे परिवार में अभी तक  हमने हजारों वर्षों से चली आ रही धार्मिक विधि से ही मृत्यु के उपरांत सारे काम किये हैं. विशेष्वरी मेरी पत्नी थी, मैं उसके सारे कार्यक्रम धार्मिक विधि, पूरी निष्ठा और अपने पैसे से  ही करुंगा. यह करना, मेरा उसके प्रति कर्तव्य है. आप लोगों में से जिसको भी समय का अभाव हो या छुट्टी नहीं मिल रहा हो, वह वापस जा सकता है, मुझे कोई कष्ट नहीं होगा. लेकिन मैं विशेष्वरी के बरही सम्बंधित सारे कार्यक्रम परम्परागत धार्मिक विधि से ही करुंगा. हमारे पूर्वज मूर्ख नहीं थे, हर धार्मिक विधि- विधान के पीछे महत्वपूर्ण कारण है. कारण हम नहीं जानते, यह एक अलग बात है. परिवार का एक सदस्य, जिसके साथ चालीस- पचास सालों का सम्बन्ध रहा हो, जिसके साथ हमने अपने जीवन के सुख- दुख, एक साथ भोगें  हो, उसके साथ अचानक सम्बन्ध कैसे समाप्त हो जायेगा. मृत्यु एक अटल सत्य है, यह मैं भी जानता हूँ, कोई आगे , कोई पीछे, लेकिन एक दिन सबको जाना है, जन्म- मृत्यु की एक अनन्त ऋंखला है. लेकिन इस ऋंखला में एक लगाव है, निरन्तरता है और यह लगाव  भावनात्मक है , जो एक दिन में समाप्त नहीं होती. आप लोग वापस जाने के लिए स्वतंत्र हो. इतना कह कर विप्लव कमरे से बाहर चले गए.  

अचानक कमरे में सभी लोग स्तब्ध हो गये, उन्हें पापा से इस प्रकार की तीव्र प्रतिक्रिया की अपेक्षा नहीं थी. कुछ देर तक मौन छाया रहा. कुछ देर बाद औरव ने कहा कि पापा तो काफी भावुक हो गये. अपर्णा बोली अभी पापा से कुछ भी कहने की जरूरत नहीं है, वे अन्दर से पूरी तरह से टूट चुके हैं. हम सब लोग बरही के पहले, वापस नहीं जायेंगे. मैं अमर ( पति) को वाराणसी से आने के लिए कहती हूँ. अमित ने कहा कि ठीक है मैं भी परिवार बुलाने की व्यवस्था करता हूँ. औरव ने कहा  ठीक है मैं भी बात करता हूँ.

इस घटना के एक सप्ताह के भीतर, तीनों के परिवार मालदा आ गए और विशेष्वरी देवी जी का दसवाँ और बरही का कार्यक्रम पूरे धार्मिक विधि विधान से हुआ.

 -- ओमप्रकाश पाण्डेय


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