ग़ज़ल

 


बहुत बिगड़ा हुआ है हाल अब तो इस सदी का

नहीं देता यहां पे साथ कोई भी किसी का


करें कैसे यकीं नफ़रत भरा है अब हरिक दिल 

भरोसा ही उठा इक दूसरे से अब सभी का


उदासी से घिरा चेहरा मिला सबका यहां पे

बहुत खोजा नहीं मिलता पता कुछ भी खुशी का


बहुत मजबूत है वो जो भुला देता गमों को

रहा भी तो वही तन्हा चला सिक्का उसी का


अकेला हो गया कितना सुधा ये आदमी अब

नहीं विश्वास करता आदमी क्यों आदमी का


डा सुनीता सिंह सुधा 

वाराणसी,


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