नई दिल्ली , 30 अक्टूबर 2025 श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली के जैनदर्शन विभाग द्वारा संचालित जैन विद्या डिप्लोमा पाठ्यक्रम के नवीन सत्र का शुभारंभ किया गया एवं पूर्व सत्र में उत्तीर्ण श्रेष्ठ अंक प्राप्त विद्यार्थियों को प्राकृत जैनागम परिषद द्वारा प्रवर्तित पंडित दौलतराम पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया गया । इस पुरस्कार को 5 श्रेष्ठ अंक प्राप्त विद्यार्थी दिनेश जैन , प्रीति जैन, पूजा जैन सुजय विश्वास एवं सुनय जैन ने गुरुजनों के करकमलों से प्राप्त किया । प्रोत्साहन राशि प्रो.वीरसागर जैन जी द्वारा प्रदान की गई ।
इस कार्यक्रम के अंतर्गत विशिष्ट व्याख्यान के रूप में विभागाध्यक्ष प्रो. वीरसागर जैन जी ने जैन धर्म की विशेषताएँ विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि एक समय था जब श्रमण संस्कृति भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त थी । इसका मूल कारण उसकी कुछ ऐसी मौलिक विशेषताएं हैं जो अन्यत्र नहीं हैं । उन्होंने 22 बिंदुओं के माध्यम से जैन दर्शन की अद्भुत विशेषताएँ बताते हुए उसका महात्म्य प्रगट किया ।
कार्यक्रम की शुरुआत मंगलाचरण से हुई जिसमें शोधछात्र पारस जैन ने प्राकृत एवं शोध छात्रा कीर्ति संसंवाल ने संस्कृत में मंगलाचरण किया ।कार्यक्रम के मुख्य संयोजक प्रो. अनेकान्त कुमार जैन जी ने संकाय प्रमुख ,विभागाध्यक्ष एवं मुख्य अतिथि का स्वागत करते हुए जैन विद्या डिप्लोमा कोर्स का परिचय एवं विभाग की गतिविधियों का परिचय दिया ।
मुख्य अतिथि श्री जिनेश जैन जी (CA) ने अगले सत्र से 10 विद्यार्थियों को प्रतिवर्ष डिप्लोमा कराने की जिम्मेदारी लेते हुए अत्यंत उत्साह से अपने विचार व्यक्त किये एवं पीठाध्यक्ष अरावमुदन जी ने प्रेरणावचन द्वारा सभी को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि अन्य लोग तो सिद्धांत को सिर्फ बताते हैं ,किंतु जैन लोग सिर्फ बताते ही नहीं बल्कि उसे करके भी दिखाते हैं । इस अवसर पर जैन दर्शन विभाग के छात्र अंकित जैन द्वारा प्रकाशित अहिंसा प्रभावना पत्रिका का विमोचन भी किया गया । अंत में सभी के जलपान की व्यवस्था अपने शोधकार्य सम्पन्न होने के उपलक्ष्य में शोधार्थी पारस एवं प्रशांत जैन ने की ।
कार्यक्रम के अंत में शोधार्थी श्रुति जैन ने सभी के विचारों की सराहना करते हुए सभी उपस्थित जनों का धन्यवाद ज्ञापन किया । कार्यक्रम में प्रो कुलदीप एवं विभाग के सभी शोधार्थी और विद्यार्थियों की बड़ी संख्या में उपस्थिति ने कार्यक्रम को सफल बनाया ।
प्रेषक - श्रुति जैन
शोधार्थी , जैनदर्शन विभाग

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