गरम कोट कहने लगें, ठंडी बड़ी प्रचंड ।
बोली फटी कमीज है, दो मुट्ठी भर ठंड ।
दो मुट्ठी भर ठंड, देखिए काँख दबाए ।
लकड़ी लाए बीन, द्वारे अलाव जलाए।
सोते डाल पुआल, ठंडी भी है बेशरम ।
उनसे रहती दूर, रहते जो कमरे गरम ॥
डॉ. पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'
सहायक आचार्य, हिन्दी विभाग
जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय, चित्रकूट (उत्तर प्रदेश)
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