प्रवासी पंछी


     दूर-दूर देशों से उड़ कर पंछी जब-जब आते हैं,

     प्रेम संदेशा साथ लिये हमें राह नई दिखलाते है।


     मीलों-मीलों दूर उड़ें पर मंजिल अपनी‌ ये पाते हैं,

     हम राह कभी न भटकेंगे शिक्षा यह देके जाते हैं।


     अपना आँगन अपनी बोली भूल कभी न पाते हैं।

     पर देखो कैसे घुल मिलके ये गीत सुरीले गाते हैं।


     है प्रिय अनन्त आकाश उन्हें गंगा तीर सुहाते हैं।

     जो प्रवास हरनगरी करके अपने घर को जाते हैं।

         -अरुण कुमार पाठक


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