On FB*और अब "हिंदी ओलंपिक!! जी !!!ओलंपिक के नाम पर हम दशकों से गणित विज्ञान और सबसे ऊपर इंग्लिश ओलंपिक की गूंज सुनते आए हैं .लेकिन भोपाल के रविंद्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय के मार्गदर्शन में इस वर्ष हिंदी ओलंपिक की अभूतपूर्व शुरुआत हुई है. दुनिया भर के लगभग 2 लाख बच्चों ने इसमें भाग लिया और अब यह हर वर्ष होगी. तो देश के दूर दराज गांव में रहने वाले हिंदी भाषा माध्यम के बच्चे नौजवान तैयार हो जाओ ! आपकी प्रतिभा के लिए अब रास्ते खुल गए हैं!इस बार भी मुजफ्फरपुर से लेकर देश के कोने-कोने के बच्चों ने पुरस्कार पाए.नगद 21000! पहली क्लास से लेकर आगे तक !और विदेशी विजेताओं को 300 डॉलर !ये सभी बच्चे भोपाल में उपस्थित थे विश्व रंग के 27 से 30 नवंबर तक आयोजित भव्य कार्यक्रम में। इन्हें देश के पूर्व शिक्षा मंत्री और मॉरीशस के पूर्व राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कार दिए गए ।
*हिंदी के प्रयोग और सीखने की ऐसी अभिनव शुरुआत का श्रेय जाता है टैगोर ,सीवी रमन विश्व विद्यालय जैसे पांच विश्वविद्यालय के मुखिया कथाकार संतोष चौबे और उनके भाषा अभियान के कप्तान डॉक्टर जवाहर कर्णावत को । सिद्धार्थ चतुर्वेदी ,अदिति चतुर्वेदी के संबोधन से भी स्पष्ट था कि अपनी भाषा हिंदी उनके भी खून में बहती है। पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई! इस अभिनव शुरुआत के लिए!!
*हिंदी सीखने और उसे सहज उपलब्ध कराने के लिए टैगोर विश्वविद्यालय ने "हिंदी का अंतरराष्ट्रीय पाठ्यक्रम "भी बनाया है. पहली क्लास से लेकर स्नातक स्नातकोत्तर तक! उनका प्रेरणा वाक्य है "जब अंग्रेजी और दूसरी भाषाओ में अंग्रेजी सीखने के लिए ग्लोबल पाठ्यक्रम हो सकते हैं तो हिंदी में क्यों नहीं ?और केवल हिंदी ही नहीं वे चाहते हैं की सारी भारतीय भाषाओं में ऐसे पाठ्यक्रम बने उनके सभी विश्वविद्यालय जो भोपाल खंडवा बिलासपुर और छत्तीसगढ़ में है वे सब अंग्रेजी के साथ-साथ भारतीय भाषाओं के लिए भी उतने ही प्रतिबद्ध हैं ।जब देश के सबसे महंगे निजी स्कूल/ विश्वविद्यालय अंग्रेजी के नाम पर लूट रहे हो तब टैगोर के सपनों के अनुरूप कला संगीत खेल कंप्यूटर और इंजीनियरिंग और विज्ञान में अधुनातन ज्ञान को समाहित करते हुए कथाकार संतोष चौबे अलख जगा रहे हैं। ***चलते-चलते कुछ और बातें! मेरी स्नातक तक पढ़ाई विज्ञान की है और उसमें भी मुझे थोड़ा बहुत वही याद रहा है जो मैंने अपनी मातृभाषा हिंदी में सीखा .चाहे मेरे आदर्श वैज्ञानिक डार्विन हो या जोसेफ मेंडल (father of genetics) आइंस्टीन नील्स बोहर से लेकर zeener (small pox).. अलेक्जेंडर फ्लेमिंग...मैंने महसूस किया है कि अंग्रेजी के बीच आईसेक्ट ने ज्ञान विज्ञान के सभी क्षेत्रों में हिंदी में अछी पुस्तक उपलब्ध कराई है ।सबसे बड़ी सफलता तो 30 वर्ष पहले मिली जब संतोष चौबे की किताब कंप्यूटर हिंदी में आई जो लाखों बिक चुकी है. और सचमुच ऐसी किताबें के लाखों लाख पाठक है. हिंदी में लोकप्रिय विज्ञान भारतीय वैज्ञानिको के ऊपर भी एक से एक अच्छी विक्रम साराभाई, मेघनाथ साहा, सीवी रमन,.... पर निकाली है. "विश्व रंग के प्रांगण में लगी पुस्तक मेले में एक अनूठी योजना पर भी नजर गई ।100 किताबें हरेक सिर्फ ₹10 की । बिजली ,रेडियो की कहानी है,पोलियो , हैजा .. मशहूर वैज्ञानिकों की जीवनिया, प्रेमचंद की पूस की रात ,...हरिशंकर परसाई जय शंकर प्रसाद की मशहूर ...अगर हमें हिंदी को बचाना है तो हमें बच्चों के बस्ते में इन किताबों को भरना होगा। मैं वर्षों से ऐसी ही किताबों की तलाश में रहा हूं और वह कुछ-कुछ भारत ज्ञान विज्ञान से लेकर एकलव्य भोपाल, ने भी उपलब्ध कराई और अब आईसेक्ट पूरी ताकत से जूटा है ऐसी किताबें को सामने लाने में ।यही रास्ता है जब हम अपनी भारतीय भाषाओं को अंग्रेजी के मुकाबले खड़ा कर सकते हैं। और साथ ही साथ वैज्ञानिक चेतना को आगे बढ़ाने में! धर्म और जाति के जहर को भी ऐसी ही किताबें का इंजेक्शन काम करेगा ,हवाई बातें नहीं! दिल्ली में बैठे कुछ लेखकों की तरह रोने से भी काम नहीं चलेगा कि "हिंदी का कोई भविष्य नहीं है "देश के गांव और दूसरे हिस्सों में जाएंगे तो अंग्रेजी की किताबों को ये गरीब बच्चे सूंघकर वैसे ही दूर हो जाते हैं जैसे कुत्ता शहद की हंडिया से दूर। संतोष चौबे भी जाने-माने कथाकार और लेखक हैं लेकिन उन्हें यह एहसास भी है कि यदि नई पीढ़ी ने हिंदी नहीं पढ़ी तो इस लिखने का कोई अर्थ नहीं है । रवींद्रनाथ टैगोर ने यही काम किया और यही काम कन्नड़भाषी karanth ने .बच्चों के लिए भी किताबें लिखी इन सब ने और बड़ों के लिए भी और भाषा को बढ़ाने के लिए व्याकरण भी तैयार की. और मत भूलिए रामचंद्र शुक्ल ने भी ऐसे ही कामों में अपनी आहुति दी है।दिल्ली जैसे महानगरों में बैठे और हिंदी की खाने वाले लेखकों के लिए भी कुछ सीखने की जरूरत है कि सिर्फ पुरस्कार पाना और प्रोफेसर बन जाना ही या किसी अकादमी में जोड़-तोड़ करके कुछ सुविधा जुटा लेना ही लेखन का उद्देश्य नहीं होता ।हिंदी अगली पीढ़ी बचपन से पड़ेगी ,तभी तुम्हारे पोथनों "तक जाएगी.. वरना जंगल पेड़ खत्म करने का कुछ शाप आपको भी मिलेगा...
*शिक्षा साहित्य कला विज्ञान रंग मंच संगीत फिल्म इन सभी क्षेत्रों में अनूठी पहल के लिए टैगोर विश्वविद्यालय और उनसे जुड़ी सभी संस्थाओं को अनंत शुभकामनाएं! 🌹🌹
*प्रेमपाल शर्मा /दिल्ली
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