भारतीय नौ सेना दिवस शं नो वरुणः

 शं नो वरुणः ध्येय वाक्य हमारी नौ सेना का है जो 413 वर्ष पुरानी गौरव शाली सेना है, इसकी स्थापना 1612 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने जहाजों की सुरक्षा के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी मैरिन के रूप में सेना गठित की थी, जिसे बाद में रॉयल इंडियन नौसेना नाम दिया गया। आज 4 दिसम्बर को नौ सेना दिवस मनाया जाता है क्योंकि आज के दिन 1971 की पाक लड़ाई मे हमारी सेना ने पाकिस्तान की दुरदंत पनडुब्बी खैबर को विशाखा पट्टनम के तट पर डुबो दिया था यह पनडुब्बी पाकिस्तान का गौरव थी और अजेय मानी जाती थी। इस विजय के उपलक्ष मे 4 दिसम्बर को नौ सेना दिवस मनाया जाता है |

उपरोक्त ध्येय वाक्य नौ सेना के पराक्रम को अक्षुण रखने हेतु जल के देवता वरुण से प्रार्थना है कि “ हे वरुण देव आप हमारे लिए कल्याण कारी हों “

यह ध्येय वाक्य तैत्तिरीय उपनिषद् के शिक्षावली के प्रथम अनुवाक की शांति प्रार्थना से लिया गया है |

पूर्ण श्लोक इस प्रकार है:

ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः । शं नो भवत्वर्यमा । शं नो इन्द्रो बृहस्पतिः । शं नो विष्णुरुरुक्रमः । नमो ब्रह्मणे । नमस्ते वायो । त्वमेव प्रत्यक्षं बह्मासि । त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि । ऋतं वदिष्यामि । सत्यं वदिष्यामि । तन्मामवतु । तद्वक्तारमवतु । अवतु माम । अवतु वक्तारम् ।

ॐ शान्तिः । शान्तिः । शान्तिः ।

इसका शाब्दिक अर्थ मेरी पुस्तक “वेद से वेदान्त तक” से लिया हूँ :

अर्थ – देवता ‘मित्र’ हमारे लिए कल्याणकारी हों, वरुण कल्याणकारी हों। ‘अर्यमा’हमारा कल्याण करें। हमारे लिए इन्द्र एवं बृहस्पति कल्याणप्रद हों। ‘उरुक्रम’ (विशाल डगों वाले) विष्णु हमारे प्रति कल्याणप्रद हों। ब्रह्म को नमन है। वायुदेव तुम्हें नमस्कार है। तुम ही प्रत्यक्ष ब्रह्म हो। अतः तुम्हें ही प्रत्यक्ष तौर पर ब्रह्म कहूंगा। ऋत बोलूंगा। सत्य बोलूंगा। वह ब्रह्म मेरी रक्षा करें। वह वक्ता आचार्य की रक्षा करें। रक्षा करें मेरी । रक्षा करें वक्ता आचार्य की। त्रिविध ताप की शांति हो ।

मैंने 11 प्रमुख उपनिषदों मे से 9 का पद्यतमक भावानुवाद किया है उस के अनुसार यह अर्थ मैंने लिखा है:

हे अधिष्ठाता।

मेरे हितकर हों सब देव आप,

इंद्र , मित्र, वरुण, वृहस्पति, अर्यमा।

प्रत्यक्ष ब्रह्म विराजते

वायु देव आपमें, नमन करूँ आपको,

प्रभो, ग्रहण, भाषण, आचरण, सदा सत्य ही रहे,

ऋतू के देव ऋतू रूप में हमें रक्षा करें।

शांति दें, शांति दें, शांति दें, प्रभो।।

मैं इस प्रार्थना में प्रयुक्त कई संबोधनों/शब्दों के अर्थ समझ नहीं पाया हूं । जैसा पहले कहा गया है, प्रकृति के विविध घटकों और प्राणियों की जैविक प्रक्रियाओं के साथ देवताओं को अधिष्ठाता के तौर पर जोड़ा गया है । ‘मित्र प्राणवायु एवं दिन का अधिष्ठाता देवता है, जब कि वरुण रात्रि एवं अपानवायु का अधिष्ठाता है। सामान्यतः मित्र के अर्थ सूर्य से लिया जाता है और वरुण को समुद्र तथा जल से जोड़ा जाता है। अर्यमा सूर्यमंडल का देवता है। शब्दकोष में सूर्य को अर्यमा भी कहा गया है। इंद्र वर्षा एवं बृहस्पति बुद्धि के देवता माने गये हैं।

वैदिक मंत्रों मे देव का अर्थ प्रकृति मे व्याप्त हमारे हितकारी आयाम ही हैं जैसे अग्नि, वायु, जल, इत्यादि अतः वेदों मे उनकी ही पूजा की है और उनके गुणों को विभिन्न सँग से उद्बोधित भी किया है जिसे कालांतर मे और विस्तार देने के लिए पौराणिक देवता का नाम दे दिया गया। जैसे विष्णु को पैरों का देवता, माने गति का देवता, माना गया है। उरुक्रम का शाब्दिक अर्थ है विशाल डगों वाला। कदाचित् इसी सम्बोधन से पुराणों की कथा वामन अवतार की यहीं से जन्मी हो।

ऋत सत्य का ही पर्याय है । यहां पर ऋत वचन उचित एवं निष्ठापरक कथन को व्यक्त करता है । वस्तुनिष्ठ स्तर पर कोई चीज जैसी हो वैसी कहना सत्य कहा गया है ।

इस शान्तिपाठ में शिष्य ब्रह्म से अपनी एवं अपने आचार्य यानी उपदेष्टा वक्ता की रक्षा की प्रार्थना करता है।

तीन बार ‘शान्तिः’ का उच्चारण त्रिविध तापों का कष्टों के शमन हेतु किया जाता है , ये ताप हैं: आधिभौतिक, आधिदैविक, एवं आध्यात्मिक।

नौ सेना दिवस का मेरा एक बहुत ही रोमांचक संस्मरण भी है जिसे मैंने अपनी आत्मकथा "संप्रेदन" में लिखा है उसके अंश दे रहा हूँ।

सम्प्रेदन:

जीवनी के कुछ अंश : छलांग लगाते हुए पहुंचता हूँ, ३/४ दिसम्बर १९७७ को |

उस समय मैं उषा मार्टिन में मेनेजर एकाउंट्स था, कंपनी के कार्य से मुंबई भेजा गया था, वहां एकाउंटिंग सिस्टम ठीक करने के लिए | मेरी छोटी बहन चंद्रलेखा मुंबई रहती थी बहनोई ऍफ़.सी.जैन उस समय इंडियन नेवी में लेफ्टिनेंट थे और उनकी पोस्टिंग आय.एन.एस. विक्रांत पर थी, उस समय करीब एक महीने मैं नेवी नगर में उनके पास रहा था, नेवी की कॉलोनी, मुंबई के अंतिम छोर पर कोलाबा में स्थित है, बिलकुल समुद्र के किनारे | उस समय मोरारजी देसाई प्रधान मंत्री थे, नौसेना दिवस ४ दिसम्बर को मनाया जा रहा था, पुरे कार्यक्रम को देखने प्रधान मंत्री आने वाले थे | यूँ तो नवल डे के कार्यक्रम में केवल पदाधिकारियों के निजी घर वाले ही शामिल हो सकते थे विक्रांत फ्लैग शिप थी, अतः मुझे ले जाने के लिए विशेष अनुमति ली गयी थी | ३ तारीख को सुबह ७ बजे हम निकले एक स्पीड बोट से लायन गेट से हमें बीच समुद्र में खड़े विक्रांत पर गए, नवल सैनिकों ने सहायता दे कर हमें जहाज पर चढ़ाया, टॉप डेक से देखने की व्यवस्था थी | विक्रांत चल कर ७०-८० किलोमीटर तक समुद्र में चला गया, उसके चारों तरफ भारतीय नौ सेना के सब जहाज गोल घेर कर चल रहे थे, सबकी गति एकदम बराबर थी, देखने से ऐसा लगता था कि पूरा बेडा खडा हो, एकदम स्थिर, दूर दूर तक केवल जल ही जल, न कोई पंछी न कोई जीव-जंतु, मात्र भारतीय नौ सेना के जहाज ही जहाज पचासों जहाज बीच में विक्रांत शहंशाह सा, चलते बेड़े में अजब गज़ब करतब दिखाए जा रहे थे, एक जहाज से दुसरे जहाज में कैसे आदमी को भेजा जाता है, युद्धपोतों से कैसे मिसाइल छोड़ी जाती है, जो जहाज गोला बारी छोड़ने के लिए थे वे गोला बारी करके दिखा रहे थे, चूँकि हम विक्रांत में थे वह बीच में था और सबसे ऊंचा भी उसपर मैं तो टॉप डेक पर भी ऊपर जहां झंडा लगा था वहाँ चढ़ कर बैठ गया था | सारी कार्यवाही स्पष्ट दिख रही थी, अंत में विक्रांत के करतब दिखाने की बारी आई, विक्रांत एक मात्र शिप था जहां से वायुयान उड़ा कर बोम्बिंग की जा सकती थी, जहाज से वायुयान कैसे उड़ाते हैं बहुत दिलचस्प था, जहाज पर बहुत बड़ा रनवे बना था, पर इतना भी नहीं की जहाज दौड़ कर स्पीड ले, अतः एक मजबूत स्टील की रस्सी जहाज के इस कोने से उस कोने में बंधी रहती है उस में एक हुक होता है, जिस पर वायुयान फंसा रहता है और वे वायुयान को गति देना प्रारंभ करते हैं जैसे ही वांछित गति प्राप्त हो जाती है वह हुक अपने आप टूट जाता है और वायुयान बन्दुक से छूटी गोली तरह निकल उड़ान भर लेता है, बोम्बिंग करके वैसे ही आता है और एक मजबूत स्टील की स्प्रिंग में यान का हुक फंस जाता है और वह स्प्रिंग की रस्सी यान की गति समाप्त कर देती है |

नेवल प्रदर्शन में जो मुख्य बात मैंने देखी वह थी अनुशासन की, बायलर पर जो व्यक्ति खड़ा था वह बिना हिले लगातार ४ घंटे खड़ा था, उस गर्मी में मानो, लोहे की मूर्ती खड़ी हो |

उस दिन कई तरीके के करतब दिखाए गए हर बात का हर करतब का अपना ही अलग अंदाज़ था, भारत की नौ सेना के हर करतब देख कर सीना चौड़ा हो जाता था, और ध्यान दे मैं यह बात लिख रहा हूँ आज से 46 वर्ष पूर्व की, इन करतबों में एक करतब था, की दो युद्धपोत समानंतर चलते हैं एकदम सटीक एक ही गति से और विक्रांत से उस युद्धपोत पर तीर से एक रस्सी फेंकी जाती है जिसे दुसरे युद्धपोत पर बाँध दिया जाता है और उस रस्सी के सहारे एक पोत से दुसरे पोत में सामग्री और सैनिक ट्रान्सफर किये जाते हैं रस्सी पर लटके हुक के सहारे, इसे देख कर ८१ वर्षीय प्रधान मंत्री मोरारजी भी अड़ गए की मैं भी उस पार जाऊँगा वह भी रस्सी पर लटक कर, अधिकारीयों ने बहुत समझाया पर वे न माने, तत्काल सुरक्षा हेतु निचे जाल फैलाया गया और हुक पर एक कुर्सी बाँधी गयी और उन्हें उस पर बैठा कर उस पार ले जाया गया, राम राम कर सकुशल यह पूर्ण हुआ तो सभी अधिकारीयों ने चैन की सांस ली, यह खबर उन दिनों सभी समाचारपत्रों में फ्रंट पेज पर मुख्य समाचार के रूप में छपी थी. 

ये कुछ हिस्से हैं उन लम्हों के जो जीवन में शायद कभी कभार ही आते हैं और जो आते हैं मानस पटल पर अमिट अंकित हो जाते हैं. विक्रांत में ७ या ९ डेक थे ( मुझे अच्छी तरह याद नहीं ) ४ पानी के नीचे बाकि ऊपर, सेलर और सैनिक नीचे के डेक में और ऑफिसर ऊपर के डेक में, ५ वे डेक में आलिशान क्लब भोजनालय थिएटर इत्यादि सब सुविधायें थी | जब विक्रांत समुद्र में रहता था तब महीनों लोग तट पर नहीं आते उनकी जिंदगी वही समुद्र रहता है | आकार में यह समुद्र में चलता एक पूरा क़स्बा ही दीखता है, इस कोने से दुसरे कोने तक करीब ३०० मीटर का  है, हवाई पट्टी के ठीक नीचे बड़े बड़े तहकाने बने हैं जहां हवाई जहाज रहते हैं और जब उड़ान भरनी हो तो ऊपर से ढक्कन खुलता है और लिफ्ट के जरिये जहाज उपरी सतह पर आते हैं | दोपहर को हम सब मेहमानों को लज़ीज़ भोजन खाने को दिया गया, हमने पूरा विक्रांत लोवेस्ट डेक से लेकर उपर डेक तक देखा, युवा था, लोहे की सीढ़ियों पर चढ़ने में कोई समस्या नहीं थी आज अगर कोई कहे तो  एक तल भी न चल सकूँ | कैसे राडार के संकेत से ऊपर उड़ते या देश में घुसने वाले शत्रुदेश के विमानों को स्वचालित बंदूकें मिसाइल दाग कर गिरा देती है | कैसे जल से जमीं पर वार किया जाता है, कैसे सैनिक मोर्चा बना धावा बोलते हैं | सब प्रक्रिया दिखाई गयी |

सब देख कर रोमांचित था और बस इतना ही कह सके "जय भारत"।।।

सुरेश चौधरी 

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