क्या लिखूं

 क्या लिखूं 

कैसे लिखूं 

क्यों लिखूं 

क्यों कर लिखूं

सूर्य की अद्भुत किरण पर ,

शब्दों का साभार दूं। 

ज्ञान का अदभुत्व सागर, 

कूट-कूट कर मोती भरे, 

मेरी वह औकात क्या ,,

जो सूर्य सम दीपक धरे। 

एक अनुपम सी प्रभा

रोप्य धवल सी  दमकती थी आभा,,,,,,,,,,,,,,,।।।। 

जिस रूप के दीदार को, ,,,

तरसती थी लाखों की सभा,, 

सब कुछ दिया सबको दिया

देते रहे तुम उम्र भर तुष् मात्र 

न तुमने लिया,,,,, 

सम्यक दिया दर्शन दिया और ज्ञान का अद्भुत दिया, ,,,, 

अब न जग में आएगा...... 

 विद्यासागर सा अद्भुत दिया

निज को न किंचित चाह थी

संसार के धन माल की,,

 हर जीव जग में हो सुखी

 बस यही एक परवाह थी,,,

   नेमीचंद विद्यार्थी


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