विश्व रंग विश्व में हिंदी भाषा और साहित्य के बढ़ते महत्व, वर्चस्व और उसके वैश्विक योगदान को स्थापित करने वाला अनूठा और अकेला मंच. पिछले लगभग 35-40 सालों में हिंदी भाषा, साहित्य, कला और संस्कृति का इतना बड़ा कोई उत्सव हुआ हो, मुझे तो याद नहीं आता. और, इसमें न सिर्फ साहित्य, भाषा, भाषा प्रौद्योगिकी, बल्कि विज्ञान, कला, संगीत, प्रदर्शनकारी कलाएं, तकनीक, पत्रकारिता, चित्रकला, सिनेमा, हिंदी ओलंपियाड और न जाने कितने अन्य विषयों का समावेश हुआ है.
मित्रों विश्व रंग के सात आयोजन हो चुके हैं और हर बार विश्व रंग अपने आयोजन में नए-नए आयाम जोड़ता जाता है. और इस बार तो विश्व रंग अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के साथ उपस्थित हुआ है. न सिर्फ पारंपरिक मीडिया बल्कि सोशल मीडिया, न्यू मीडिया आदि पर भी विश्व रंग ने नए परचम लहराए हैं. मुझे नहीं लगता कि आने वाले कुछ सालों में इतनी बड़ी लकीर कोई पार कर पाएगा, और अगर कोई पार कर भी गया तो विश्व रंग का ही कोई अगला आयोजन होगा.
साथियों, इस ज्ञान कुंभ और अभिनव आयोजन का जो स्वप्न आदरणीय श्री संतोष चौबे जी ने देखा था, उसके लिए शब्द कम पड़ जाते हैं, क्योंकि उन्होंने जो स्वप्न देखा उसे साकार भी किया. उनके साथ विश्व रंग के जो कर्म योद्धा जुड़े हैं, उनकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है. इसी के साथ समूचे हिंदी विश्व को विश्व रंग से जोड़कर इस आयोजन को पूरा करने में श्री जवाहर कर्णावट जी का भी अभिनव योगदान है. प्रवासी तथा देशी, विदेशी विद्वानों, छात्र-छात्राओं तथा साहित्यकारों को विश्व रंग के मंच पर उनकी क्षमतानुसार साहित्यिक सत्रों में व्यवस्थापित करना, कर्नावट जी की योग्यता और प्रतिबद्धता को स्थापित करता है. उन्होंने न सिर्फ सबके लिए व्यक्तिगत व्यवस्थाएं भी देखीं और उनके सत्रों का सुचारू रूप से समयबद्ध आयोजन, संचालन भी करवाया.
विश्व रंग 2025 के आयोजन में विश्व रंग की कर्म योद्धाओं की पूरी टीम इसी तरह अपने-अपने काम को करबद्ध होकर प्रतिबद्ध रूप से संपूर्ण करती दिखाई दी, इसीलिए आज हम प्रसन्न होकर इस आयोजन को एक अभिनव आयोजन के रूप में देख पा रहे हैं.
अब कुछ बातें इसके आयोजन के संबंध में, जो मुझे महत्व पूर्ण लगती हैं -
1) सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इतने बड़े आयोजन के लिए जो आर्थिक संसाधन हैं, उन्हें हिंदी भाषा साहित्य और कलाओं के लिए जुटाना बहुत बड़े परिश्रम का कार्य है.
2) इसके पश्चात इतने बड़े आयोजन करने का साहस दिखाना और प्रतिबद्ध होकर सोचे हुए को पूर्ण करना बहुत ही कठिन और चुनौती पूर्ण है.
3) तीसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि विश्व रंग सचमुच में इसीलिए विश्व रंग है क्योंकि इसमें विश्व भर के प्रतिभागी आते हैं और उनकी समस्त व्यवस्थाएं देखना, उनकी छोटी से छोटी सुविधा का ध्यान रखना और एकेडमिक तथा प्रदर्शनकारी सत्र में उनकी प्रतिभा का लाभ लेना, उनका प्रदर्शन इत्यादि भी अत्यंत आवश्यक मुद्दे हैं जिनका पूरा-पूरा ध्यान इसमें रखा गया. इतनी बड़ी व्यवस्थाएं करना भी अत्यंत दुष्कर है.
4) चौथी बात यह है कि समस्त व्यवस्थाएं एक तरफ और विश्व रंग के आयोजनों को समय के अनुसार गरिमा पूर्ण ढंग से आयोजित करवाना और संपन्न करवाना विश्व रंग की विशेषता है.
5) विश्व रंग में इस बार हिंदी ओलंपियाड जैसा महत्वपूर्ण अभियान भी शामिल हुआ, जिसके लिए पिछले एक वर्ष से प्रचार प्रसार एवं उसकी व्यवस्था जारी थी. मुंबई, महाराष्ट्र और इंडोनेशिया, बाली आदि जगह पर हम लोगों ने भी हिंदी ओलंपियाड के पोस्टर जारी किए थे. और, सभी हिंदी प्रेमियों ने जिस तरह से हिंदी ओलंपियाड का समर्थन किया, वह अप्रतिम है. एक लाख से अधिक प्रतिभागिता होना भी किसी कार्यक्रम की अभूतपूर्व सफलता है.
रबीन्द्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय तथा उसके सहयोगी अन्य विश्वविद्यालयों के प्रकाशनों का भी बड़ा महत्व है. ज्ञान विज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए निरंतर स्तरीय और श्रेष्ठ पुस्तकों तथा पत्रिकाओं का शुद्ध प्रकाशन और वह भी समय के बंधन में रहते हुए, यह भी बड़ा महत्वपूर्ण कार्य है जो हो रहा है.
मित्रों ऐसा भूतपूर्व कार्यक्रम आयोजित करना अत्यंत असंभव सा प्रतीत होता है, परंतु अब जब यह संभव हो चुका है तो हमें इसके पीछे के कर्म योद्धा दिखाई देते हैं. विश्व रंग का प्रत्येक कर्म योद्धा मुस्कुराते हुए अतिथियों और अभ्यागतों का स्वागत करते हुए अपने-अपने कार्य में निरंतर व्यस्त रहा और किसी की कोई आवश्यकता की पूर्ति न हो, ऐसा कभी नहीं हुआ. यह संस्कार विश्व रंग में कार्य करने वाले हर कर्म योद्धा में दिखाई दिया - चाहे वह श्रीलंका का आयोजन हो या मुंबई का अथवा भोपाल का. हर आयोजन में विश्व रंग के कर्म योद्धा शुरू से अंत तक मुस्कुराते हुए हमारे सामने खड़े थे.
अंत में मैं अपने हृदय तल से विश्व रंग के स्वप्न दृष्टा श्री संतोष चौबे जी और उसे कार्यान्वित करने वाले डॉक्टर जवाहर कर्णावट जी को कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं- अपने लिए भी और विश्व रंग समुदाय से मुझे जोड़ने के लिए भी. इसी के साथ मैं विश्व रंग की पूरी टीम को भी हार्दिक धन्यवाद देता हूं जिन्होंने पूरी तन्मयता, कृतज्ञता, प्रतिबद्धता और जुझारूपन के साथ इस विशाल आयोजन को सफल बनाया है, जिनमें शामिल हैं- श्री लीलाधर मंडलोई, श्री मुकेश वर्मा, श्री बलराम गुमास्ता, डॉ. विनीता चौबे, डॉ. सिद्धार्थ चतुर्वेदी., डॉ. पल्लवी चतुर्वेदी, डॉ. अदिति चतुर्वेदी, डॉ नितिन वत्स, श्री अरविंद चतुर्वेदी, डॉ विजय सिंह, डॉ पुष्पा असिवाल, प्रो. अमिताभ सक्सेना, डॉ. संगीता जौहरी, डॉ. सीतेश कुमार सिंह, श्री विनय उपाध्याय, सुश्री नीलेश रघुवंशी, श्री कुणाल सिंह, श्री अशोक भौमिक, श्री ज्योति रघुवंशी, श्री मोहन सगोरिया, श्री संजय सिंह राठौड़, श्री विकास अवस्थी, श्री प्रशांत सोनी और विश्व रंग के समस्त कार्यकर्ता, जो इस आयोजन को कर्तव्य मानकर अपने-अपने कार्य में डटे रहे.
मित्रों, मेरे लिए विश्व रंग से जुड़ना विश्व के हिंदी समुदाय से जुड़ना है और विश्व रंग ने मेरे क्षितिज का विस्तार किया है, जो मेरे जीवन की अभूतपूर्व उपलब्धि भी है. इस तरह के विराट वैश्विक आयोजन के लिए एक बार पुनः आदरणीय डॉ. संतोष चौबे जी, डॉ. जवाहर कर्णावट जी तथा उनकी पूरी कर्म योद्धाओं की टीम को हार्दिक धन्यवाद और शुभकामनाएं.
विश्व रंग जिंदाबाद!!
- रवीन्द्र कात्यायन,
अध्यक्ष हिंदी विभाग, राजस्थान मणिबेन नानावटी महिला महाविद्यालय, मुंबई.
9324389238.
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