" देख भाई ! वो क्या करते हैं और क्या नहीं , मुझे इससे कुछ भी लेना - देना नहीं है । "
" तू क्या इस देश का नागरिक नहीं है ? "
" क्यों नहीं हूं , बिल्कुल हूं , जन्म से हूं ।"
" तेरे देश में इतने लोगों की राह चलते हत्या हो जाय और तुझे उससे कोई मतलब ही न रहे ? देश का कैसा नागरिक है तू ? "
" जैसा तू है , वैसा ही मैं भी हूं ।"
" नहीं ! मैं तो इस जेहादी दरिंदगी के विरुद्ध हूं और इन हत्याओं से आहत भी हूं ।"
" होता रह । यह काम सरकार का है कि वह उन लोगों का पता लगाए, जिन्होंने यह कुकृत्य किया है । उन्हें सजा दे या न दे , यह भी सरकार ही जाने । "
" देश का नागरिक है तू । इस विषय में तेरी भी तो कुछ राय होनी चाहिए।"
" मैं सर्वधर्म समभाव में यकीन करता हूं । मैं तो यही जानता हूं कि जो जैसा करेगा , वैसा भरेगा भी ...।"
वो अभी अपनी बात पूरी कर ही रहा था कि एक पत्थर आया और उसके चेहरे को उसके ही लहू से लहू - लूहान कर गया ।
चोट के साथ दर्द इतना दर्दनाक था कि वह कुछ भी कहने - सुनने की हालत में नहीं बचा ।
सुरेंद्र कुमार अरोड़ा , साहिबाबाद ।
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