कॉलेज की छात्राओं को लेकर दार्जीलिंग जा रही थी।जमशेदपुर से हावड़ा ट्रेन में 70 छात्राएं चार डिब्बे में बिखरी हुई थीं। सबों का अटेंडेंस मैं ले रही थी और गिनती कर रही थी कि सभी अपनी अपनी जगह पर बैठी या नहीं? जनरल कंपार्टमेंट में अन्य यात्रियों के साथ भी हमारी छात्राओं की सीट थी इसलिए थोड़ी चिंता अधिक हो रही थी। जब मैं गिनती करती हुई जा रही थी तभी अचानक एक सज्जन ने मुझे टोक कर कहा 'प्रणाम मैम' आपने मुझे पहचाना ? मैं अपने छात्र-छात्राओं की गिनती पूरी करने की धुन में थी...मैंने उसे फटकार लगाई कैसे पहचानूंगी, कॉलेज आते नहीं हो और दार्जीलिंग घूमने चले हो, बैठो चुपचाप से.... बेचारा चुप से बैठ गया...... मैं फिर अगले कोच में अपनी गिनती पूरी करने के लिए निकल यात्रियों को हटाते हुए आगे चल पड़ी।
जब सभी छात्रों की गिनती पूरी हो गई तो वापस मैं अपने कोच की तरफ लौट रही थी और उसी व्यक्ति ने मुझे पुनः टोका "मैम आपने मुझे पहचाना नहीं इस बार मैंने रुक कर कहा कि आपकी शक्ल कुछ जानी पहचानी लग रही है लेकिन नाम नहीं याद आ रहा ......तब उसने अपना परिचय दिया कि मैं आपका छात्र था 2005 में, और अब मैं सरकारी स्कूल में प्रिन्सिपल हूँ.....झुक कर दो यात्रियों के बीच से अपना सर आगे बढ़ाते हुए उसने मुझसे मेरा आशीर्वाद माँगा। फिर बातचीत के सिलसिले में पता चला वह किसी ट्रेनिंग में चाकुलिया जा रहा है ।अगले स्टेशन पर उतरने से पहले उसने मेरे साथ एक तस्वीर खिंचवाई और जैसे ही वह अपने गंतव्य स्थल पर पहुंचा और जब तक मैं अपनी सीट पर पहुंची तब तक प्राचार्य बने मेरे छात्र ने अपने मोबाइल स्टेटस को अपडेट कर दिया था।
डा० जूही समर्पिता
,जमशेदपुर,झारखण्ड।
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