स्वयंसिद्धि

 

प्रेम प्यार की बात जो करते,

नफ़रत की सेज पर सोते हैं।

हैं सच की वंशी सदा बजाते,

पर सच सुनने से वे डरते हैं।‌


सदा सादगी में ही रहते जो,

पल - पल श्रृंगार बदलते हैं।

है ध्यान समाधी सदा लगाते,

पर वो सदा क्रोध में रहते हैं।


लालच से हैं जो दूर हमेशा,

हर-दम वे ललचाये रहते हैं।

अहम-वहम से दूर ही रहते,

पर  तू- तू - मैं - मैं करते हैं।


विश्व शांति के गीत हैं गाते,

पर ख़ुद अशांत ही रहते हैं।

फूलों‌ के ही उपवन में रहते,

पर, काँटों को बोते रहते हैं।


नित मतवाले स्वयंसिद्धि में,

पर-सुख  से जलते  रहते हैं,

है कथनी-करनी एक हमारी,

वह ताल ठोंक कर कहते है।

    -अरुण कुमार पाठक


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