नेहरू निर्विवाद रूप से स्वतंत्रता बाद भारत के सर्वोच्च नेता थे भारत का ही सोचा, उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता भी कहा जाता है। चीन के धोखे के कारण उन्हें जोरदार हृदयाघात लगा जनवरी 1964 में भुबनेश्वर में आये धक्के से तो किसी प्रकार बच गए पर 27 मई 1964 को प्रातः 6 बजे आये झटके से न बच सके 2 बजे उन्हें मृत घोषित किया गया। मैं 12 वर्ष का बालक था रेडियो पर यह समाचार जब प्रसारित हुआ तो पूरा भारत सन्नाटे में था कि अब क्या होगा देश कैसे चलेगा एक बड़ा शून्य हो भारत के नेतृत्व में आ गया था।
आईये जानते हैं नेहरू के बारे में उनके जन्म दिवस पर।
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर, 1889 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। इनके माता जी का नाम स्वरूपरानी नेहरु और पिताजी का नाम मोतीलाल नेहरु था। पंडित मोतीलाल पेशे से बैरिस्टर थे। वहीं, पंडित नेहरू की धर्मपत्नी का नाम कमला नेहरु था। इनकी एक बेटी इंदिरा गांधी थी। नेहरू जी धनी संपन्न परिवार से तालुक्क रखते थे। साथ ही नेहरू जी तीन बहनों के अकेले भाई थे। इसके चलते नेहरू जी की परवरिश में कभी कोई कमी नहीं आई। इन्होंने प्रारंभिक शिक्षा इलाहाबाद में प्राप्त की। वहीं, उच्च शिक्षा इंग्लैंड में पूरी की। लंदन से इन्होंने लॉ की पढ़ाई पूरी की। इस दौरान नेहरू जी ने समाजवाद की जानकारी भी इकठ्ठा की। उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद नेहरू जी साल 1912 में स्वदेश वापस लौट आए और स्वतंतत्रा संग्राम में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
नेहरू जी ने साल 1916 में कमला जी से शादी कर ली। इसके एक साल बाद 1917 में होम रुल लीग से जुड़े और देश की स्वतंत्रता में अहम भूमिका निभाई। वहीं, साल 1919 में नेहरू जी पहली बार गांधी जी के संपर्क आए। यहीं से नेहरू जी की राजनीति जीवन की शुरुआत हुई। इसके बाद गांधी जी के साथ मिलकर नेहरू जी ने भारत की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
इतिहासकारों की मानें तो लाहौर अधिवेशन के अंतर्गत पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पहली बार 31 दिसंबर, 1929 ई. को रावी नदी के तट पर तिरंगे को 12 बजे रात में फहराया था।
लालबहादुर शास्त्री जी के प्रेस सचिव रहे कुलदीप नैयर ने भारतीय राजनीति पर दो पुस्तकें लिखी हैं "इंडिया द क्रिटिकल इयर्स और बिटवीन द लाइन्स"
उन्होंने स्पस्ट लिखा है कि नेहरू की आंतरिक कामना थी कि उनके बाद इंदिरा ही उनकी उत्तराधिकारी बने , कामराज प्लान कैसे तैयार किया गया उसका ब्यौरा भी दिया है परंतु उनकी मृत्यु पर मोरारजी के अड़ जाने पर शास्त्री जी का चयन किया गया क्योंकि वे ही एक निर्विवाद चेहरे थे।
"प्रसिद्ध पत्रकार श्री दुर्गादास की बहू चर्चित पुस्तक "इंडिया कर्जन टू नेहरू एंड आफ्टर दैट" के कुछ अंश।
१९४६ :इस बरस भारत में एक अंतरिम सरकार बनाने का फैसला लिया गया।
माँउंटबेटन के मातहत कार्यरत डिप्टी को वायसराय के जाने के बाद सत्ता सौंप दी जायेगी यह सुनिश्चित कर लिया गया था। उन दिनों भारत पंद्रह प्रांतों में विभक्त था हरेक के लिए एक प्रदेश कांग्रेस कमिटी थी जिसे PCC (Provincial Congress Committee )कहा जाता था। फैसला किया गया प्रत्येक राज्य नंबर दो की पोज़िशन के लिए एक एक नाम बंद लिफ़ाफ़े में केंद्रीय कार्यकारी समिति CWC को भेजेगा ।
जब इन लिफाफों को खोला गया तब सरदार पटेल के हक़ में बारह ,आचार्य जे. बी. कृपलानी के हक़ में दो तथा एक राज्य ने श्री पट्टाभि सीतारमैया के नाम का प्रस्ताव माउंबेटन के डिप्टी के लिए बंद लिफाफों में भेजा जिन्हें कांग्रेस कार्यकारी समिति (CWC) ने सभी सदस्यों की मौजूदगी में खोला था।
उस वक्त नेहरू गांधी जी के एक पार्श्व में बैठे थे सरदार वल्लभ भाई पटेल दूसरे में। अब गांधी जी ने जैसा कि इस किताब में लिखा है कृपलानी जी की ओर जो बापू के सामने बैठे थे अर्थपूर्ण दृष्टिपात किया। कृपलानी हाथ जोड़े खड़े हुए और कहा बापू सभी जानते हैं आप इस पोज़िशन के लिए पंडित जी के हक़ में हैं इसलिए मैं अपने दो मत पंडित जी को देते हुए इनका नाम डिप्टी के लिए प्रस्तावित करता हूँ। ऐसा कह के आचार्य कृपलानी ने अर्थगर्भित नेत्रों से पटेल की ओर देखा जो मन ही मन हो सकता है सोच रहें हों कि नेहरू जी कहेंगें नहीं-नहीं मैं जनभावनाओं का सम्मान करता हूँ लेकिन नेहरू खामोश रहे और चिरंजीवी आत्मीय सरदार वल्लभभाई पटेल ने प्लेटिनम के थाल में रखके अपने बारह मत भी नेहरू के पक्ष में भेंट कर दिए।
नेहरू का प्रधानमन्त्री बनना पक्का हो गया। अब माननीय दुर्गा दास जी ने एक ज़िम्मेवार पत्रकार होने के नाते बापू को लिखा -बापू बहुमत सरदार के पक्ष में हैं डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी भी उनके पक्ष में हैं फिर आप क्यों जवाहर लाल ,जवाहर लाल की रट लगाए हैं ?
"जवाहर बढ़िया अंग्रेज़ी बोलता है "-ज़वाब मिला
यह पत्राचार किताब में मौजूद है।"
कई लोग अफवाह उड़ाते हैं की वे गयासुद्दीन गाजी के परिवार से हैं इत्यादि इत्यादि जबकि मैंने उनकी पीढ़ी जानने का प्रयत्न किया मुझे जो जानकारी मिली उसके अनुसार उनकी 5 पीढियां इस प्रकार हैं।
1687 से पीढ़ी
राजनारायण कौल
मोसराम कौल
लक्ष्मी नारायण कौल नेहरू
गंगाधर कौल नेहरू
मोतिल लाल नेहरू
जवाहर लाल नेहरू
नेहरू की शिक्षा विलायत में हुई थी अतः उनकी सोच पर अंग्रेजों की गहरी छाप थी वही उनकी लिखी पुस्तकों में भी मिलती है जैसे डिस्कवरी ऑफ इंडिया में आर्यों का भारत पर आक्रमण कर बाहर से आना, भारत का सांप संपेरों का देश इत्यादि।
मेरा अपना एक संस्मरण नेहरू जी के साथ है जिसे साझा करने से अपने को नहीं रोक पा रहा हूँ:
"आज भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु का जन्म दिन है, उनकी इस जन्मतिथि को बाल दिवस के रूप में भी मनाया जाता है, क्यूँ बाल दिवस ? एक व्यक्तिगत संस्मरण से शायद यह स्पष्ट हो सके|
आज कोलकाता में जो सड़क खिदिरपुर से हेस्टिंग्स होते हुए प्रिंसप घाट जाती है और इधर रेसकोर्स उस पुरे क्षेत्र में पहले एक खुबसूरत मैदान हुआ करता था, आज तो बस वहाँ दुसरे हुगली ब्रिज के लिए जाने वाले फ्लाईओवर का जाल बिछा है| उस समय हर संध्या बच्चे खेलने के लिए जमा होते थे जैसे की अभी मैदान क्षेत्र में, विक्टोरिया के सामने होते हैं| उस मैदान के ठीक सामने वाली सड़क क्लाईड रो कहलाती है, उसमें १/१ नंबर में मेरे नाना जी का मकान है जिसे अभी झुंझनु प्रगति संघ हेतु दे दिया गया है. हर छुट्टियों में हम यहाँ आते थे और संध्या शाम को मैदान में खेलने जाते थे, यह बात 1960 के आसपास की होगी समय और वर्ष मात्र याद से लिख रहा हूँ, 8/9 वर्ष का रहा होऊंगा| हम बच्चे खेल रहे थे तभी मैदान को चारों तरफ से पुलिस ने आकर घेर लिया और अफरातफरी मच गयी की हेलीकाप्टर से नेहरु जी आ रहे हैं और सामने मिलट्री हेड क्वार्टर जायेंगे| मैं था, मेरी माता जी थी और मेरा छोटा भाई महेश भी था, देखते ही देखते पुरे मैदान में लोगों की भीड़ जमा हो गयी और लोग एक रास्ता बना कर उसके दोनों तरफ खड़े हो गए| कुछ ही देर में हेलीकाप्टर से नेहरु जी दल बदल आये, और उस रास्ते से सामने सड़क पर खड़े वाहन की तरफ जाने लगे, जैसे ही हमारे सामने से गुजरे उन्होंने मेरे सर पर हाथ रखा और मेरे छोटे भाई को जो उस समय 3 वर्ष का रहा होगा गोद में लिया और चूमा, फिर थोड़ी दूर ले जाकर उतार दिया, हम सब अचंभित से देख रहे थे |
यह था उनका बाल प्रेम जिसके चलते उन्हें चाचा कहते थे, और बालकों के प्रेमी, यही वजह है की आज के दिन को बालदिवस के रूप में मनाया जाता है|
आज राजनैतिक वजहों से कितनी भी आलोचना हो, पर अपने समय में निर्विविद रूप से वे सर्वप्रिय नेता थे, गलतियाँ होना मानव स्वभाव में है पर मैं कभी नहीं मान सकता की देशहित से परे उन्होंने कभी कुछ सोचा हो|
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