"प्रीत की ग़ज़ल



कभी पीपल, घना बरगद ,कभी तुलसी है मेरी मां‌

मिरा आंचल कभी साया ,बनी बदली है मेरी मां।।


मैं फल हूं मां की मन्नत का, जो दुर्गा मां ने बख़्शा है।

मिटाऊं ज़ुल्म दुनियां से, सदा कहती है मेरी मां।‌


ज़मीं और आसमां से खुशनुमा रिश्ता बनाएं रख।

सबक इंसानियत का हर घड़ी, देती है मेरी मां।।


बहुत ढूंढा, बहुत देखा, बहुत जाॅचा बहुत परखा।

मिली कोई भी  शै वैसी नहीं, जैसी है मेरी मां।।


नहीं है पास लेकिन रूह में, मेरी समाई है।

मिरे रंग रूप में कहते हैं सब, दिखती है मेरी मां।।


तेरा सर गोद में रख कर, बलाएं तेरी लेती हूं।

"प्रीत" अंदर तेरी ममता उभर आई है मेरी मां।


डॉ प्रियंका सोनी "प्रीत"


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