प्रवासी अनुभवों, द्वंद्व और सांस्कृतिक पुलों का संगम है काव्य संग्रह 'अनछुए स्पर्श'

प्रोफेसर (डॉ.) प्रकाश शंकरराव चिकुर्डेकर. 

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डॉ. सुनीता शर्मा एक बहुमुखी और प्रतिष्ठित हिंदी साहित्यकार हैं, जिन्होंने कविता, कहानी, लघुकथा, संस्मरण, हाइकु, क्षणिका, और सेदोका जैसी विविध विधाओं में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। दिल्ली में जन्मी और पली-बढ़ी डॉ. शर्मा ने डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। उनका शोध "कृष्णा सोबती: युगबोध एवं मूल्य संक्रमण" पर केंद्रित है, जो आधुनिक हिंदी साहित्य में मूल्य-बोध और सामाजिक परिवर्तन के अध्ययन में एक महत्वपूर्ण योगदान है।

उनकी प्रमुख प्रकाशित कृतियों में कविता संग्रह 'मैं गांधारी नहीं', 'अनछुए स्पर्श', 'चिर प्रतीक्षित', कहानी संग्रह 'जागृति', और साझा काव्य संग्रह 'मिट्टी की सुगंध', 'कविता के प्रमुख हस्ताक्षर', और 'गुल्लक किस्सों का' (सह-संपादक) शामिल हैं। उनकी कहानियाँ और कविताएँ विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं, जिनमें प्रवासी जीवन, नारी अस्मिता, सांस्कृतिक द्वंद्व, और पहचान के विषय प्रमुख हैं।

डॉ. शर्मा को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें 'इंडियन डायमंड डिग्निटी अवार्ड 2024', 'किस्सा कोताह लघुकथा सम्मान 2024', 'विश्व साहित्य शिखर सम्मान 2023', 'वैश्विक साहित्यकार सम्मान 2023', 'सुभद्रा कुमारी चौहान सम्मान 2023', और 'स्वयंसिद्धा अवार्ड 2022' प्रमुख हैं।

उनकी लेखनी में नारी चेतना, प्रवासी अनुभव, सामाजिक यथार्थ, और आत्मान्वेषण की गहरी समझ देखने को मिलती है। उनके साहित्य में भावनाओं की गहराई, भाषा की सहजता, और विषयगत विविधता विशेष रूप से उल्लेखनीय है।डॉ. सुनीता शर्मा हिंदी साहित्य के क्षेत्र में एक प्रेरणादायी व्यक्तित्व हैं, जिनके कार्य प्रवासी साहित्य के अध्ययन के लिए एक अमूल्य संदर्भ प्रदान करते हैं।

‘अनछुए स्पर्श’: प्रवासी साहित्य की अनूठी संवेदना

प्रवासी साहित्य वह साहित्यिक धारा है, जो अपने देश से दूर रहने वाले लेखकों द्वारा रचित होती है और इसमें उनकी जड़ों, पहचान, और नए परिवेश के साथ उनके संबंधों की झलक मिलती है। डॉ. सुनीता शर्मा का काव्य संग्रह 'अनछुए स्पर्श' प्रवासी साहित्य के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण योगदान है। इसमें प्रवासी अनुभवों, भावनात्मक द्वंद्व, और सांस्कृतिक पुलों का सुंदर संगम है l

 ‘अनछुए स्पर्श’ डॉ. शर्मा का एक ऐसा काव्य संग्रह है जो प्रवासी जीवन की अनकही कहानियों, अदृश्य पीड़ाओं और अंतर्द्वंद्वों को सजीव रूप में प्रस्तुत करता है। कुल मिलाकर 107 कविताओं का संग्रह और 187 पृष्ठों में बंधा यह संग्रह केवल कवयित्री के निजी अनुभवों की व्याख्या नहीं करता, बल्कि प्रवासी भारतीयों के सामूहिक मनोविज्ञान का स्वर भी है। कविता संग्रह का शीर्षक और मुख्य पृष्ठ इतना आकर्षक रोचक रंगी बिरंगी बना दिया है जो वास्तव शीर्षक के अनुरूप अपनी एक विशिष्ट पहचान बना देता है।

प्रेम: मौन की सबसे मुखर भाषा- संग्रह की पहली ही रचना "अच्छा लगता है..." इस ओर संकेत देती है कि प्रेम, जब अभिव्यक्त होता है, तो वह केवल जुबान नहीं बोलती — हर धड़कन, हर लहर, हर स्मृति में उतर जाता है।

इसी तरह, कविता “न जुड़कर भी” में गहरी भावात्मक छवि उभरती है:

"तुमने कहा था ऑंख भर कर देख लिया करो,

आजकल ऑंखें तो भर भर आती हैं,

तुम क्यों नजर नहीं आते..."

स्त्री-मन की अंतर्ध्वनियाँ

डॉ. सुनीता जी की कविताएँ किसी विशेष ‘फेमिनिस्ट’ आग्रह से प्रेरित नहीं हैं, बल्कि वे एक स्त्री की आत्म-स्वीकृति, द्वंद्व और आत्म-संवाद की कविता हैं। “आईना,” “दर्पण को,” “मेकअप बिना अधूरी औरत” जैसी कविताएँ स्त्री की आंतरिक जटिलताओं को बड़ी सहजता से उकेरती हैं:

"यूँ तो है वाकिफ वह सारी हकीकतों से,

पर उनके मन का तिमिर सच्चाई से उन्हें डराने लगा है..."

लगता है दर्पण को भी आईना दिखाने का वक्त आ गया है..!"

यह आज की स्त्री की पहचान है — जो आईनों से परे जाकर आत्मा को देखने का साहस रखती है।

डॉ. सुनीता शर्मा की कविताएं केवल भावों की प्रस्तुति नहीं हैं, वे आत्मा की पुकार हैं — एक स्त्री की वह मौन चीख जो समाज के मुखौटों में खो जाती है, पर रचनाओं में मुखर हो जाती है। "मैं अधूरी ही सुंदर..." से शुरू हुई यात्रा, केवल सौंदर्य की नहीं, अस्तित्व की पुनर्परिभाषा की यात्रा है।

प्रवासी अनुभव और हिंदी की भूमिका

डॉ. शर्मा एक प्रवासी साहित्यकार हैं — और उनके काव्य में 'दूरी' नहीं, बल्कि 'स्मृति की निकटता' अधिक उभरती है। उनकी कविताएँ इस बात का प्रमाण हैं कि भावनाएँ सीमाओं से परे होती हैं। वे हिंदी को न केवल अपने भाव की भाषा मानती हैं, बल्कि अपनी मातृभूमि की सांसों की भाषा भी।

"अनछुए स्पर्श" यह एक अंतरंग यात्रा है — स्त्रीत्व, प्रेम, प्रवास, और आत्मिक द्वंद्वों के बीच से गुजरती हुई। स्त्री के आत्मसंघर्ष, प्रेम, पहचान, अधूरेपन की सुंदरता, और सामाजिक दोहरापन — इन सबका अद्भुत समावेश"अनछुए स्पर्श” में है। यह संग्रह अपने पाठकों को केवल भावनाओं की यात्रा नहीं कराता, बल्कि उन्हें भीतर तक उजागर, विचलित और फिर सशक्त करता है।काव्य-संग्रह हिंदी साहित्य को संवेदना, गरिमा और गहराई से समृद्ध करता है। उनकी लेखनी प्रवासी जीवन की वास्तविकताओं, स्त्री की आत्मजागृति और प्रेम की शाश्वतता को सधे हुए स्वर में सामने लाती है।

1.पीड़ा का सौंदर्य बोध – 

कवयित्री दर्द को आत्मबोध और सृजन की प्रेरणा में रूपांतरित करती हैं। कवयित्री ने दर्द और पीड़ा को केवल शारीरिक या भावनात्मक अनुभव के रूप में नहीं प्रस्तुत किया है, बल्कि इसे जीवन की रचनात्मक प्रक्रिया का हिस्सा माना है।

उदाहरण:"अरे वह क्या!!!

तुम्हारे लिए भी कितना आसान है

इस दर्द को 'आदत' कह देना

और फिर उसे महसूसते हुए

चुपचाप जीते रहना..."

यह कविता प्रवासी जीवन के मानसिक संघर्ष और दर्द को दर्शाती है, जहाँ पीड़ा को झेलना और उसमें जीवन की राह तलाशना एक आम अनुभव बन जाता है।

3. अकेलापन और संवाद – 

प्रवासी जीवन के अकेलेपन और आंतरिक संवाद की झलक। प्रवासी जीवन में अकेलापन एक आम अनुभूति है, जिसे कवयित्री ने अपनी कविताओं में बहुत संवेदनशीलता से प्रस्तुत किया है।

उदाहरण:"कहाँ ढूँढूँ रूह को—सुकून?

जिंदगी ऐ किताब की..?

कलम दर्द कहीं

स्याही की तलवार...!"

यह पंक्तियाँ उस आंतरिक अकेलेपन को दर्शाती हैं, जहाँ व्यक्ति खुद से ही संवाद करता है और अपने अस्तित्व को समझने की कोशिश करता है।

  आशा और जीवन का उत्सव – 

विषाद के बीच उम्मीद की उजास। कवयित्री का दृष्टिकोण नकारात्मक नहीं है; वे जीवन की चुनौतियों के बावजूद आशा और संघर्ष की भावना को प्रकट करती हैं।

"फूल समझती हुई चली मैं...

अग्नि परीक्षा के अंगारों को

शीतल जल समझती हुई जली मैं..."

यह कविता स्पष्ट रूप से जीवन के संघर्षों में भी उम्मीद और सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखने की बात करती है। कवयित्री ने यह दिखाया है कि कठिनाइयाँ हमें मजबूत बनाती हैं।. आत्मनिर्भरता और नारी चेतना – 

 जड़ों से जुड़ाव –

 मातृभूमि की स्मृतियाँ उनकी कविताओं में बार-बार लौटती हैं। प्रवासी साहित्य का एक प्रमुख पहलू होता है अपनी मातृभूमि और संस्कृति के प्रति गहरे लगाव को बनाए रखना। 'अनछुए स्पर्श' में कवयित्री ने अपनी भारतीय जड़ों और भावनात्मक संबंधों को सजीव रूप से प्रस्तुत किया है।

उदाहरण: "विदेश की गलियों में

माँ की रसोई की खुशबू

अब भी ढूँढ लेती हूँ

हर अनजाने कोने में।"

यह पंक्तियाँ दर्शाती हैं कि भौगोलिक दूरी के बावजूद, अपनी मातृभूमि की यादें और संस्कार प्रवासी जीवन का अभिन्न हिस्सा बने रहते हैं।

डॉ. सुनीता शर्मा का काव्य संग्रह 'अनछुए स्पर्श' प्रवासी साहित्य के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण रचना है, जो न केवल व्यक्तिगत भावनाओं और अनुभवों को उजागर करता है, बल्कि व्यापक सांस्कृतिक, सामाजिक, और भाषाई संदर्भों में भी अपनी जगह बनाता है। संग्रह की कविताएँ प्रवासी जीवन के विविध पहलुओं—जैसे जड़ों से जुड़ाव, नई संस्कृति में अनुकूलन, आत्म-चिंतन, और पहचान की खोज—को गहराई से छूती हैं। यह संग्रह प्रवासी भारतीय साहित्य में न केवल एक व्यक्तिगत दस्तावेज है, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर हिंदी साहित्य की समृद्धि में भी योगदान करता है।

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‘अनछुए स्पर्श’ केवल एक काव्य-संग्रह नहीं, एक भाव-संग्रह है—जिसमें प्रवासी जीवन की संवेदनाएँ, संघर्ष, स्मृतियाँ, और सांस्कृतिक पुल एक साथ पिरोए गए हैं। डॉ. सुनीता शर्मा की यह रचना हिंदी प्रवासी साहित्य को समृद्ध करती है, और एक नई पीढ़ी के लिए संवेदना, साहस, और आत्म-पहचान का मार्गदर्शक बनती है।उनकी कविता का स्वर पाठक के भीतर तक उतरता है, वहाँ जहाँ भाषा समाप्त हो जाती है और अनछुए स्पर्श प्रारंभ होते हैं।

प्रकाशक: बुक्सक्लिनिक पब्लिशिंग,

बिलासपुर, छत्तीसगढ़, भारत, 495001 

संस्करण: प्रथम, वर्ष: 2022

आईएसबीएन: 978-93-5535-157-9 

कॉपीराइट © डॉ. सुनीता शर्मा 

शैली: कविता ₹: 220/-

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प्रोफेसर एवं हिंदी विभागाध्यक्ष, , वारणानगर-416113,


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