अरविन्द जैन
हमें यह समझना ही होगा कि व्यक्तिगत क्षमता सीमित होती है और कॉर्पोरेट क्षमता असीमित हो सकती है | स्थानीय पारमार्थिक संस्थाएं सीमित कार्य कर सकती हैं और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थान चमत्कारिक कार्य कर सकते हैं | दानी और लाभार्थी का सीधा संपर्क वहीँ संभव है जहाँ किसी छोटे उद्देश्य की प्राप्ति का कार्य हो और हम लोग कल्पना करें विश्वस्तरीय उद्देश्य प्राप्ति का | ये सब उसी प्रकार की बात है जैसे कोई बबूल बो कर आम प्राप्ति की कल्पना करे | पीढ़ियों से जैन समाज में दान के माध्यम से सामान्यतः सीधे लाभार्थी से संपर्क के माध्यम से दान की परम्परा रही है स्थानीय औषधालय स्थानीय विद्यालय ज्यादा से ज्यादा धर्मशाला और सबसे ज्यादा दान की महिमा है भव्य मन्दिर का निर्माण करवा देना | विश्विद्यालय या मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल या मेडिकल कॉलेज या शोध संस्थान की स्थापना के बारे में नही सोचा जाता | हमारे समाज की पहली आवश्यकता सोच में परवर्तन की तथा दीर्घकालिक दृष्टिकोण बनाने की है तभी हम सुरक्षित रहेंगे और युवाओं का पलायन रोक सकेंगे | उच्च रोजगार परक अवसर और उच्च जीवन शैली का आकर्षण ही आज के युवाओं का भविष्य है इनको जहाँ ये सब मिलेगा ये वहां का रुख करेंगे | हमारे समाज में चिंतकों और विचारकों का आभाव होता जा रहा है |
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