त्यौहार में बुजुर्ग


ईशा अपनी देवरानी ,जेठानी और  ननद को फोन पर बात कर रही थीं।ये सभी अलग अलग शहरों में रह रहे थे।सबके पति नौकरी पेशा थे।सभी किराए के फ्लैट में रहते थे।

ईशा ने अपनी देवरानी से फोन पर कहा रश्मि तुमको तो पता ही है आनेवाले दिनों में त्यौहारों का महीना आनेवाला है।बच्चों की भी छुट्टियां रहेगी तो वो घर पर ही रहेंगे ।हमारा छोटा सा घर है।मैं और मेरा पति त्यौहारों में व्यस्त रहेंगे ।पूजा पाठ भी करनी होगी ।बच्चों को मेला भी घुमाना होगा।ऐसे में मैं अपने सास ससुर का ख्याल कैसे रख पाऊंगी।मैं चाहती हूं एक डेढ़ महीने सास ससुर को तुम अपने यहाँ रख लेती ।

उसकी बात सुनते ही उसकी  देवरानी भड़क गई।आप क्या समझती हैं दीदी हमलोग यहां महल में रहते हैं।

और क्या हम लोगों के लिए त्यौहार नहीं है।दीदी माफ करना हमलोग सास ससुर को अपने यहां नहीं रख सकते । इतना कहकर उसने फोन काट दिया।

ईशा ने फिर अपनी जेठानी को फोन लगाया।जेठानी ने उसकी बात सुनते ही गुस्सा हो गई और खूब खरी खोटी सुनाई दी।बोली दुबारा इसके लिए मुझे फोन मत करना वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगी।

ईशा निराश होकर अपनी ननद को फोन करके वहीं बात दोहराई।उसकी ननद मंजरी ने सुनते ही दुखी होकर कहा_ भाभी मुझे आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी।

लोग बड़े बूढों के लिए तरसते है कि कस उनके  घर में उनके माता पिता या सास ससुर हो तो उनका मार्गदर्शन और आशीर्वाद मिले लेकिन आप त्यौहारों में मेरे मम्मी पापा को घर से बाहर भेजना चाहती हो।

सबसे बड़ी पूजा तो बड़े बुजुर्गों की सेवा करना है।उनके साथ हर त्यौहार हंसी खुशी मनाने में है।

तो तुम अपने मम्मी पापा को अपने पास क्यों नहीं बुला लेती और थोड़ा पुण्य कमा लेती ।ईशा ने नाराज होते हुए कहा।

मैं जरूर रख लेती भाभी लेकिन तुमको पता है मेरे ससुराल में मेरे अपने सास ससुर है और भरा पूरा परिवार है।घर ऐसा है कि अपने परिवार को ही रहने में दिक्कत होती है।

ऐसे में मैं अपने मम्मी पापा को अपने घर में कैसे बुला लूं।अगर बुला भी लूं तो क्या मेरे ससुराल वाले राजी होंगे?

मंजरी ने अपनी मजबूरी सुनाते हुए कहा।

लेकिन आपके तो अपने सास ससुर है ।वे आपके माता पिता के समान हैं।आप चाहे कितना भी पूजा पाठ कर लो लेकिन उनका तिरस्कार करके आपको पूजा पाठ का कोई पुण्य नहीं मिलने वाला है।

इतनी बात सुनाने से अच्छा है तुम साफ साफ मना क्यों नहीं कर देती ईशा ने चिढ़ते हुए कहा।

मैं मना नहीं कर रही हूं अपनी मजबूरी सुना रही हूं भाभी।मंजरी ने कहा।

लेकिन त्यौहारों में कुछ दिनों के लिए अपने मम्मी पापा से मिलने जरूर आएंगी।आपसे विनती है भाभी की आप त्यौहार मम्मी पापा के साथ मनाए।उनसे आपको कोई दिक्कत नहीं होगी बल्कि खुशी होगी।

तुम मुझे सलाह मत दे इतना कह कर ईशा ने खुद ही फोन काट दिया।

ईशा के दोनों बच्चे अपने दादा दादी के साथ ही ज्यादा समय बिताते थे।जब उन्हें पता चला उनकी मां उनके दादा दादी को घर से बाहर भेजना चाहती तो वे बड़े उदास हो गए।वे अपने दादा दादी से दूर नहीं होना चाहते थे।उन्होंने अपनी मां को बहुत समझाया लेकिन वो नहीं मानी।

तब बच्चों ने आपस में कुछ योजना बनाया और फोन से अपने मोहल्ले और दूसरे मोहल्ले के  तमाम दोस्तो से संपर्क किया।सबकी एक गुप्त मीटिंग हुई।सबने अपनी योजना के तहत सभी पूजा समितियों  दुर्गा पूजा ,दिवाली  और छठ पूजा समिति के सदस्यों से संपर्क कर अपनी योजना बताई

अगले ही दिन से सभी समिति वाले मोहल्ले के सभी घरों में गए और जिन घरों में बुजुर्ग थे उनकी सूची बनाने लगे।दो दिनों बाद सभी बुजुर्गों को पूजा पंडालों का जजमान बना दिया गया ।साथ ही सबके रहने की व्यवस्था पूजा पंडालों के पास ही कर दी गई।ईशा के सास ससुर को भी उनके मोहल्ले के पंडाल में जजमान बना दिया गया और भी पंडाल के पास  रहने चले गए।अब सबके दादा दादी जजमान बनकर पूजा पंडालों में चले गए तो बच्चे भी दिन भर उनके पास ही रहने लगे।

इससे ईशा बहुत चिंतित रहने लगी।बिना बच्चों के उसका मन भी नहीं लग रहा था।हद तो तब हो गई जब बच्चों ने मेला घूमने से भी मना कर दिया।

अंततः मजबूर होकर उनके माता पिता को भी पूजा पंडालों में जाकर अपने अपने घर के बुजुर्गो और बच्चों से मिलना पड़ता था।

घर बुजुर्गों और बच्चों बिना सुना सुना लगने लगा।

ईशा ने बहुत कोशिश किया कि अपने सास ससुर और बच्चों को घर ले आए लेकिन पूजा समितियों ने साफ मना कर दिया और कहा अब सभी बुजुर्ग छठ पूजा के बाद ही घर जा पाएंगे।

सभी त्यौहार और पूजा इन बुर्जुगों के मार्गदर्शन में ही होगा।

ऐसा पहली बार हो रहा था कि सारे बुजुर्ग पूजा पंडालों में जजमान बनकर पूजा करवा रहे थे और वहीं रह रहे थे।

पूजा समिति वाले बहुत खुश थे।दरअसल देवी देवताओं की पूजा के साथ मोहल्ले के बड़े बुजुर्गों की भी सेवा हो रही थी।

त्यौहार खत्म होने के बाद ईशा को अपनी गलती का एहसास हुआ।बड़ी मुश्किल से उसने अपने बच्चों और समिति वालो को समझा बुझाकर अपने सास ससुर को अपने घर ले पाई।

अब उसका घर भरा पूरा लग रहा था।सास ससुर और बच्चों के नहीं रहने से घर कैसा लग रहा था अब उसे समझ में आ रहा था।

मोहल्ले वालो पर भी ईश्वरीय कृपा का फल मिल रहा था।


 _ श्याम कुंवर भारती

बोकारो,झारखंड 


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