बदी की राह पर चलता, नहीं तुझको लगे क्या डर।
धर्म की आड़ में तुमने, उजाड़े हैं बहुत से घर।
छुपा कुछ भी नहीं उससे, खुला सबका वहाँ खाता।
सुनें भगवान रे सबकी, सितमगर तू सितम ना कर।
जगबीर कौशिक
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