कवि शब्द नहीं हो सकता
कि वह कोश में पड़ा रहे!
और निशब्द हो जाए!
कवि वह है
जो कारकों से मिले
और पद हो जाए!
मिलकर गदगद हो जाए!
कवि तंदुल है बासमती!
गंध तभी छोड़ता है
जब वाक्य को समर्पित होता है
खुद को भाव से जोड़ता है!
प्रिय कवि!
तुम शब्द नहीं हो
वाक्य हो!
कुछ कहो!
सोते सोते न कहो!
जागकर कहो!
अपनी कहन में खो जाओ!
हस्ताक्षर बनो
समय के वक्ष पर
और एक दिन
कहते कहते सो जाओ!
डॉ. अशोक बत्रा
गुरुग्राम
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