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"मांग रहे हो मान"
भाती मन को कब कहां,कंजूसन बकवास।
भारी मन से सुन रहे,निर्धन के आवास।।
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मीठे मीठे बोल अब,कैसे आए रास।
पत्र चुनावी घोषणा,सा प्रियतम आभास।।
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घोड़े अब मजबूर हैं,करने को उपवास।
चने गधों के भाग में,हरी भरी सब घास।।
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कुछ भी कोई भी कहे,नहीं करेंगे क्रोध।
क्रोध मिटाता बोध को,ऐसा होता बोध।।
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गाली मीठी भी बुरी,देना इसका पाप।
लेने वाला ले रहा,घटे मिटेंगे आप।।
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चुटकी भर सिंदूर सा,देकर कृष्णम ज्ञान
लेकर मेरी जान भी,मांग रहे हो मान।।
त्यागी अशोका कृष्णम्
कुरकावली,संभल,उत्तर प्रदेश

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