"मांग रहे हो मान"

 "


"मांग रहे हो मान"


भाती मन को कब कहां,कंजूसन बकवास।

भारी मन से सुन रहे,निर्धन के आवास।।

*

मीठे मीठे बोल अब,कैसे आए रास।

पत्र चुनावी घोषणा,सा प्रियतम आभास।।

*

घोड़े अब मजबूर हैं,करने को उपवास।

चने गधों के भाग में,हरी भरी सब घास।।

*

कुछ भी कोई भी कहे,नहीं करेंगे क्रोध।

क्रोध मिटाता बोध को,ऐसा होता बोध।।

*

गाली मीठी भी बुरी,देना इसका पाप।

लेने वाला ले रहा,घटे मिटेंगे आप।।

*

चुटकी भर सिंदूर सा,देकर कृष्णम ज्ञान 

लेकर मेरी जान भी,मांग रहे हो मान।।


त्यागी अशोका कृष्णम्

कुरकावली,संभल,उत्तर प्रदेश


No comments:

Post a Comment

Featured Post

महावीर तपोभूमि उज्जैन में द्वि-दिवसीय विशिष्ट विद्वत् सम्मेलन संपन्न

उज्जैन 27 नवम्बर 2022। महावीर तपोभूमि उज्जैन में ‘उज्जैन का जैन इतिहास’ विषय पर आचार्यश्री पुष्पदंत सागर जी के प्रखर शिष्य आचार्यश्री प्रज्ञ...

Popular