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✒मनस्विनी ✒
वह अल्हड़,
भोला बचपन मेरा
मन–कोटर में
टुकुर-टुकुर मुस्काए,
समय भले उसको
पीछे छोड़े,
पर बारंबार वही लौट आए।
जीवन–पथ की
कठिन - धूप में
अंकुर-सा प्रकाश जगाए,
थके कदमों को सहलाकर
राह नई फिर-फिर दिखलाए।
मन-अंतर में कोमल स्पंदन
जीने का सबब बन जाए
कभी थमा, स्वप्नों की पतंग
निर्मल सुख–सागर लाए।
उम्र भले बढ़ जाए
पर बचपन फिर-फिर
पलट के आए,
सूखे हृदय–तट
पर मधुर रसों का
शांत, सुकोमल
जल भर जाए।
अपने होने का मीठा अमृत
रसधारों में चुपके घुल जाए
थकी साँसों में
नव–प्राण बन
गुब्बारे-सा उजास भर
जीवन आनंदित कर जाए।
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