ख्वाहिशों की दूनियाँ


ख्वाहिशों की दुनियाँ मे ख्वाहिशें हज़ार है

ख्वाहिशों की इस बेकाबू चाहत से भौतिकता मे गर्म सारे बाज़ार है


मनुष्य ख्वाहिशों का जीता जागता पुलिंदा है

नहीं कुछ पास उसके पाने का अरमान हरदम जिन्दा है


ख्वाहिश ही कुछ कर गुजरने की मानव जीवन का एक साध्य है

ख्वाहिशों के खातिर ही जीवन से लड़ने को बाध्य है


हर ख्वाहिश जीवन की कभी पूरी होती नही कड़वा ये जीवन का यथार्थ है

अधुरे ख्वाहिशों मे भी सन्तोष जीवन मे होना भगवत भक्ति समान एक परमार्थ है


भौतिकतावादी दूनियाँ मे धन ही ख्वाहिशों का एकलौता सहारा बन गया है

पाप अनाचार विसंगति का जीता जागता नज़ारा बन गया है


संतोषी मन संतुष्ट तन ही ख्वाहिशों के पैबन्द का एकलौता पैमाना है

ख्वाहिशों की दूनियाँ मे बैराग्य ज़िंदगी का सही एक नज़राना है


संदीप सक्सेना 

जबलपुर म प्र

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