-जमीर बेचकर अमीर बन जाना,


-जमीर बेचकर अमीर बन जाना,

इससे बेहतर है फकीर बन जाना---

जमीरियत इन्सान मे अब रह कहाँ गयी है

जर के लोभ मे सरे बाज़ार बिक गयी है

स्वहित सुखाय के आगे परहित अब बेकाम हो गये

स्वार्थ लोभ आज के दौर के   सर्वथा पहचान हो गये

आदमी का जीवन अब चार दिवारी के भीतर ही सिमट गया

चार दिवारी के पार भी दुनियाँ आदमी ये भूल गया

कदम दर कदम ही ईमान के सौदे हो रहे है 

जमीर को ताक पर रख बाप बेटे बेटा बाप को बेच रहे है

कलयुग का प्रकोप माँ की ममता भी सरे राह बिकती है

ऊंच नीच के फेर मे माँ भी औलादों मे बंटती है

जमीरियत अब गुजरे दौर की कहानी बन गयी

किस्से कहानियों की जबानी बन गयी

जमीर आत्मा पर चले गिनती ही रह गयी

नोचने खसोटने की ये इंसानी बस्ती बन गयी

ईमानदारी परमार्थ अब किताबी शब्द हो गये

हकीकत की दुनियाँ से कोंसो दूर हो गये

एक बाप थे मेरे जिन्होने आत्मा की आवाज को सुना

स्वार्थ स्वहित ठुकरा परमार्थ नैकियत ईमानदारी को चुना

आज भी हमने रहती दुनियाँ मे अन्दर की आवाज को जाना

जमीर बेचकर अमीर बन जाना,इससे बेहतर है फकीर बन जाना

संदीप सक्सेना

जबलपुर म प्र


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