भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या- एक दृष्टि आदिकवि बाल्मिकी की रामायण से


स्कंदपुराण के अनुसार सरयू के तट पर दिव्यशोभा से युक्त दूसरी अमरावती के समान एक अयोध्या नगरी है इसप्रकार का उल्लेख आता है। वेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। अथर्ववेदमें रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना भगवान मनु ने की थी । यह पुरी सरयू के तट पर 12 योजन 144 किलोमीटर और 3 योजन 36 किलोमीटर चौड़ाई में बसी है । अयोध्या मूल रूप से हिंदू मंदिरों का शहर है। यहां आज भी हिंदू धर्म से जुड़े अवशेष देखे जा सकते हैं।

अयोध्या भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या जिले का एक नगर है। सरयू नदी के तट पर बसी अयोध्या एक प्राचीन और धार्मिक नगरी है ।  वैवस्वत मनु ने ही इसका नामकरण अयोध्या किया । 'अयोध्या' जिसका अर्थ है जिसे युद्ध से नहीं जीता जा सके। इसे कोशल जनपद भी कहा जाता है । पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अयोध्या में सूर्यवंशी, रघुवंशी राजाओं का राज हुआ करता था। जिन्हें कहीं-कहीं लोग 'अरख' (अर्क अर्थात् सूर्य) के नाम से भी जानते हैं जिसमें भगवान श्रीराम का जन्म हुआ। अयोध्या नगरी सप्त तीर्थों में से एक है।

 अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवंतिका ।

पुरी द्वारिका चैन सप्तैता मोक्षदायिका।।

 अर्थात अयोध्या सूर्यवंशी कौन राज्य मथुरा हरिद्वार काशी कांचीपुरम उज्जैन द्वारिका सप्त प्रियानगरी मोक्षदायिनी है।


जैन मत के अनुसार यहां 24 तीर्थंकरों में 5 तीर्थंकरों का जन्म अयोध्या में हुआ था।  जैन व वैदिक दोनों ही मान्यताओं के अनुसार भगवान रामचंद्र जी का जन्म अयोध्या में हुआ था ।यह पांचों तीर्थंकर और भगवान राम इक्ष्वाकु वंश के थे ।अजमेर के जैन मंदिर में पौराणिक अयोध्या का भव्य चित्र मिलता है । संगृहीत-विकिपीडिया

 आज संपूर्ण विश्व में अयोध्या नगरी भगवान श्री राम की जन्मभूमि के नाम से विख्यात है और बदलते युग के अनुसार रामभक्तों अथक प्रयासों से जो सुंदर श्रीराम मंदिर की परिकल्पना साकार होने जा रही है तो यह अत्यंत आवश्यक बन जाता है कि अयोध्या के ऐतिहासिक और रामायण में वर्णित उसके सौंदर्य उस नगरी के सामाजिक ,आर्थिक ,राजनीतिक स्थिति पर का अवश्य ही दृष्टिपात किया चाहिए।


भगवान श्रीराम की परब्रह्म बता उनके जीवन चरित्र को आदि कवि बाल्मीकि ने यादव गिरिय:स्थास्यन्ति तक सुनिश्चित कर दिया। भगवान श्रीराम को भारतवासी अपने हृदय में ईश्वर  के रूप में धारण करके अयोध्या नगरी को अत्यंत पूजनीय और मोक्षदायिनी मानते हैं।

आदिकवि वाल्मीकि द्वारा रचित आदिकाव्य रामायण से कुछ साक्ष्य अवतरित किए जा रहे हैं जिसमें विचारणीय बिन्दु यह बनता है कि महर्षि वाल्मीकि  राम के समकालीन थे वस्तुत: भगवतीसीता ने अपने पुत्रों को उनके के ही आश्रम में जन्म दिया और बाल्मीकिजी ने ही उन दोनों पुत्रों को श्री राम का चरित्र गायन करने की शिक्षा दी । जब वे राम के दरबार में सुनाने के लिए गए वहां यह आदिकाव्य सीता पुत्र लव और कुश भगवान राम को सुनाने लगे-

तथास्तु तौ रामवच: प्रचोदिता-

वगायतां मार्गविधान संपदा।

सचापि राम परिषदूत:शनै-

र्बुभषयासक्तमना बभूव।।बालकाण्ड चतुर्थ श्लोक ३६


 श्री राम की आज्ञा से प्रेरित हो वह दोनों भाई मार्ग विधान की रीति से रामायण का गान करने लगे सभा में बैठे हुए भगवान श्रीराम भी धीरे-धीरे उनका गांव सुनने में तन्मय हो गये।


उसी के उपरांत यह संपूर्ण कथानक प्रारंभ होता है और उसी के मध्य अयोध्या का वर्णन आता है।

बालकांड का पंचम षष्ट व सप्तम सर्ग संपूर्ण रुप से अयोध्यापुरी का वर्णन करते हैं  जिसमें अयोध्या को राजा दशरथ द्वारा सुरक्षित बताया गया है। इसका प्रथम श्लोक द्वितीय तृतीय श्लोक में ऐतिहासिक अवधारणा के विषय में कहा गया है।


सर्वा पूर्वमियं येषामासीत् कृतस्ना वसुंधरा।

प्रजापतिमुपादाय नृपाणां जयशालिनाम्।।१।।

येषां से सिरों नाम सागरो में खानित:।

षष्टिपुत्रसहस्त्राणि में यान्तं पर्यवारयन्।।२।।

इक्ष्वाकूणामिदं तेषां राज्ञां वंशे महात्मनाम्।

महदुत्पन्नमाख्यानम् रामायणमिति श्रुतम्।।३।।


यह सारी पृथ्वी पूर्वकाल में प्रजापति मनुष्य लेकर अब तक जिस वंश के विजय शाली नरेश ओं के अधिकार में रहे हैं जिन्होंने समुद्र को खुद वाया था जिन्हें यात्रा काल में 60000 पुत्र घेरकर चलते थे। वह महा प्रतापी राजा सगर जिनके कुल में उत्पन्न हुए हैं इन्हीं इक्ष्वाकु वंश महात्मा राजाओं की कुल परंपरा में रामायण नाम से प्रसिद्ध इस महान ऐतिहासिक काव्य अवतारणा हुई है।

महात्मना राम की अयोध्या नगरी के वर्णन को चार भागों में विभक्त करके उसकी सर्वांगीण अलौकिक स्थित को समझा जा सकता है।

अयोध्या का विस्तार वह स्थिति-

रामायण के पांचवें सर्ग में  इस शोभा शालिनी महापुरी को 12 योजन लंबा और 3 योजन चौड़ा कहां

 है । जहां से बाहर के जनपदों में जाने के लिए विशाल राजमार्ग था । वह दोनों तरफ से विविध प्रकार की वृक्ष वलियों से विभूषित होने के कारण वह मार्ग अन्य मार्गों से विभक्त जान पड़ता था।

'आयतादश च द्वे च योजनानि महापुरी।

श्रीमती त्रीणि विस्तीर्णा सुविभक्यमहापथा।।'

आगे आदि कवि ने इसी सर्ग में लिखा है जिसे रामपुत्र लव कुश के मुख से गायन  के द्वारा कहा गया कि वह पुरी के बड़े बड़े फाटक और द्वारों से सुशोभित थी। उसमें पृथक् पृथक् बाजारों की व्यवस्था थी। उस अयोध्या नगरी में इतना ही नहीं सभी प्रकार के यंत्र और तंत्र शास्त्र एकत्रित थे । वहां सभी कलाओं के शिल्पी भी निवास करते थे। इस नगरी के चारों तरफ खाईयां खुद ही रहती थी जिस में प्रवेश करना  अत्यंत कठिन था । महलों का निर्माण नाना प्रकार के रत्नों से हुआ था।


कपाटतोरणवतीं सुविभक्तान्तरापणाम्।

सर्वयन्त्रायुधवतीमुषिता सर्वशिल्पिभि:।।

दुर्गगंभीरपरिखां दुर्गामन्यैदुरासदम्।

अयोध्या की सांस्कृतिक पृष्टभूमि को देखें तो वह बहुत उन्नत और विश्व थी वहां दरबार में स्तुति पाठ करने वाले सूट और वंशावली का बखान करने वाले मागध बहुतायत में थे। बहुत सी नाटक मंडली थीं जिनमें महिलाएं नृत्य भ और अभिनय करती थीं।

सूतमागधसंबाधां श्रीमतीमतुलप्रभाम्।'

वधूनाटकसंघैश्च संयुक्तां सर्वत:पुरीम्'

अयोध्या की उस विश्व की सुंदरता नगरी में गंदगी मृदंग मीणा प्रणाम और वादों की मधुर ध्वनि से अत्यंत गूंजती रहती थी।

दुंदुभीभिर्मृदंगश्च वीणाभि:पणवैस्तथा।

नादितांभृशंत्यर्थं पृथिव्यां तामनुत्तमाम्।।


अयोध्या की धार्मिक संस्थिति- वह नागरिक मानसिक

अयोध्या नगरी में धर्म अर्थ काम का संपादन करने वाले सत्य प्रतिज्ञ नरेश समय-समय पर निवास करते रहे और उन्होंने इस नगरी का पालन पोषण ऐसे करते थे जैसे इंद्र अमरावती का करते थे।

तेन सत्याभिसंधेनत्रिवर्गमनुतिष्ठता।

पालिता सा पुरी श्रेष्ठा इन्द्रेणेवामरावती।।५।।षष्ठम सर्ग



 उस नगर में निवास करने वाले सभी मनुष्य प्रसन्न धर्मात्मा निर्गुणी सत्यवादी और अपने अपने धर्म में संतुष्ट रहने वाले थे ।वहां ऐसा कोई कुटुम नहीं था 

जिसके पास उत्कृष्ट उत्कृष्ट वस्तुओं के संग्रह का अभाव हो ।

तस्मिन् पुरंदरे दृष्टा धर्मात्मा नो बहुश्रुता:

नरस्तुष्टा धनै:स्वै:स्वैरलुब्धा: सत्यवादिन:।।६।।

नाल्पसंचनिय:कश्चिदासीत् तस्मिन् पुरोत्तमे।


कोई भी पुरुष का मिश्रण मूल रूप और नास्तिक नहीं था कोई व्यक्ति अमृत अपवित्र अन्य का भोजन नहीं करता था और ना ही कोई ऐसा था जो दान ना देता हूं सभी संपन्न से ऐसा वर्णन भी आता है अयोध्या में सभी अग्निहोत्री और यज्ञ करने वाले थे सम दम उत्तम गुणों से संपन्न 6 अंगों से सहित संपूर्ण वेदों के पारंगत श्रेष्ठ ब्राह्मण अयोध्या नगरी में रहते थे महर्षि कल परसों से अयोध्या नगरी सुशोभित थी। उस अयोध्या नगरी में कोई शूद्र चोर सदाचार वर्णसंकर नहीं था।

नानाहिताग्निर्यज्वा न क्षुद्रो वा न तस्कर:।

कश्चिदासीददयोधयायां नचावृतो न संकर:।।


अयोध्या की राजनीतिक आचार संहिता-

श् श्री राम के समय में राजा दशरथ ने राजनीतिक व्यवस्था बहुत सुंदर तरीके से सोनी और सुनियोजित की थी उनके आठ मंत्री होते थे वे सभी शुद्ध आचार विचार से युक्त राजकीय कार्यों में निरंतर लगे रहते थे

राजा दशरथ के मंत्री मंत्रणा को गुप्त रखने और राज्य के हित साधन में लगे रहते थे।


योद्धाओं के लिए कुछ निश्चित नियम थे जो युद्ध में सामने आएगा उसी से युद्ध किया जाएगा जो अपने समूह से बिछड़ कर असहाय हो गए हो जिनके आगे पीछे ना हो कोई जो शब्दभेदी बाण द्वारा बेचने योग्य हो अथवा युद्ध से हार कर भागे जा रही हूं ऐसे पुरुषों पर त्यौहार नहीं किया जाता था हालांकि उनके योद्धा लक्ष्य करने में समर्थ होते थे अस्त्र शस्त्रों के प्रयोग में कुशलता प्राप्त होते थे और जंगली पशुओं को मार डालने में समर्थ होते थे।

ये च बाणैर्न विध्यन्ति विविक्तमपरापरम्।

शब्दवेध्यं च विततं लघु सस्ता विशालता:।।

सिंहव्याघ्रवराहाणां मत्तानां नदत्तां वन्दे।

हंतारौ निशितै:शस्त्रैर्बलाद् बाहुबलैरपि।।


 विदेशों में वशिष्ठ और वामदेव थे जो मंत्रियों के समान ही राजकाज में अपनी राय देते थे शत्रु पक्ष के राजाओं की कोई भी बात उनसे छिपी नहीं रहती थी। कोष का संचय तथा चतुरंगनी सेना के संग्रह में सदैव लगे रहते थे योद्धाओं में शौर्य और उत्साह भरा रहता था । गुप्तचरों के द्वारा अपने और शत्रु राज्य के वृतांतों पर कड़ी निगरानी रखी जाती थी।


तेषामविदितं किंचित स्वेषु नास्तिक परेषु वा।

क्रियमाणं कृतं वापिस चारेणापि चिकीर्षितम्।।

 सातवां सर्ग ।।९।।

'अवेक्ष्यमाणश्चारेण प्रजा धर्मेण रक्षयन्।'


उपरोक्त सभी वर्णन वृक्षों के माध्यम से हम समझ सकते हैं कि श्री राम और उनके पिता राजा दशरथ के और तीनों लोगों की प्यारी अयोध्या नगरी अपने आप में बहुत सुगठित संचालित संपन्न और सदाचारी नागरिकों से परिपूर्ण थी और सदैव शत्रुओं का पराभव करने में समर्थ थी।

कुसुम शर्मा अदिति, जयपुर।


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