वर्तनी के प्रति लापरवाही के कारण लोग 'सूचि' (सूई) के बदले 'सूची'(लिस्ट) और 'आदि' (इस प्रकार के अन्य का वाचक शब्द) के बदले 'आदी'(अभ्यस्त) लिखते हैं। विचारणीय है कि हिंदी भाषा की वैज्ञानिकता को देखते हुए, अगर हम ‘शब्द-मूल’ पर तनिक भी ध्यान दे दें, तो ये अशुद्धियाँ अपने-आप तिरोहित हो जाएँगी। आइए, इसे एक उदाहरण से समझते हैं:–
मुहावरे के अर्थ में ‘मति’(बुद्धि) मारी जाती है, ‘मती’(स्त्री) नहीं। इसी तरह, ‘श्रीमती’ को ‘श्रीमति’ और ‘पत्नी’ को ‘पत्नि’ लिखने की ग़लती आम है! वस्तुतः, श्रीमान् का स्त्रीलिंग रूप 'श्रीमती' है, जिसका अर्थ है– विवाहिता नारी अथवा घर की लक्ष्मी। श्री (लक्ष्मी/समृद्धि)+ मती (स्त्री)– 'श्रीमती'। कुछ लोग इसे ‘श्रीमति’ लिख देते हैं। 'मति'(मन् +क्तिन् =मति) शब्द का अर्थ है– ‘बुद्धि’। इस तरह, ‘श्रीमति’ का अर्थ हुआ– 'लक्ष्मी-बुद्धि'। स्पष्ट है कि व्यक्ति यह कहना नहीं चाह रहा होगा।
'मती' 'स्त्रीलिंग सूचक है। इस प्रकार ‘बुद्धिमती’ का अर्थ हुआ– ‘तीक्ष्ण बुद्धि वाली स्त्री या लड़की’, जो बुद्धिमान् का स्त्रीलिंग रूप है। कोई लड़की बुद्धिमान् नहीं होती वरन् बुद्धिमती होती है। इसी प्रकार, आयुष्मती का अर्थ हुआ– ‘अधिक आयु पाने वाली लड़की/स्त्री’, जो आयुष्मान् का स्त्रीलिंग रूप है। यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि ‘मती’ शब्द का एक अन्य अर्थ किसी प्रकार का मत अथवा राय रखने वाला भी है। जैसे आग्रह करनेवाले को 'आग्रही', हठ करने वाले को 'हठी', वैसे ही मत रखने वाले को 'मती' कह सकते हैं।
दम्पती : पति और पत्नी जब एक साथ हों, तो उनके लिए शब्द है– दम्पती(या दंपती), जिसे बहुधा लोग ग़लती से दंपति, दम्पत्ति, दंपत्ती इत्यादि लिख देते हैं।
विशेष : वस्तुतः, इ’ एवं ‘ई’ के अनुचित प्रयोग से प्रायः अर्थ-वैपरीत्य तथा अनिष्ट अर्थ की संप्राप्ति होती है। अतः, इस संदर्भ में सावधानी अपेक्षित है। अग्रलिखित शब्दों में दीर्घ ‘ई’ का प्रयोग करना चाहिए– मंत्री, शताब्दी, सूची, पक्षी, योगी इत्यादि; परन्तु इन शब्दों के जब युग्म बनते हैं, तो ह्रस्व ‘इ’ का रूप धारण कर लेते हैं, यथा : मंत्रिपरिषद, शताब्दिसमारोह, सूचिपत्र, पक्षिराज, योगिराज इत्यादि।
ज्ञातव्य है कि 'शताब्दी' शब्द में 'ई' की मात्रा है, जबकि समारोह के साथ यह ह्रस्व होकर 'शताब्दिसमारोह' हो जाता है। ठीक इसी तरह 'मंत्रिपरिषद्' से पृथक् होकर 'मंत्री' में 'ई' है और योगिराज से पृथक् होकर 'योगी' में भी 'ई' है; क्योंकि संधि में ये मंत्रिन् , योगिन् आदि रूप में हैं।
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