जिनको हम
गर्भ में आने से
जन्म लेने से
बड़ा होने से
खुल के हंसने से
खेलने से
पढ़ने से
गाने से
नाचने से
मंच पर जाने से
बाहर निकलने से
घूमने-घुमाने से
मन कहा खाने से
फैसला करने से
क'रिअर चुनने से
रोकते हैं
टोकते हैं
मर्यादा थोपते हैं
पल्लू से दाबते हैं
बुर्के से ढांकते हैं
गहनों से लादते हैं
अंकुशों बाँधते हैं
आज़ादी छीनते हैं
धमकये रहते हैं
फब्तियों से बींधते हैं
ज़िना से रौंदते हैं
डरना सिखाते हैं
दबना सिखाते हैं
झुकना सिखाते हैं
सहना सिखाते हैं
फिर
इन्हीं बेटियों के
*मेडल जीतने पर *
ताली बजाते हुए.....
हम शर्मसार हैं
तुम्हारे गुनाहगार हैं
हमारी सोच छोटी है
नीयत खोटी है
क्या ये बातआपने सोची है???
सोची नहीं तो
अब सोचना होगा
क़ायदे बदलने होंगे,
ख़ुद को बदलना होगा
बेटियों को मान दें,
सम्मान दें,
समानता का अधिकार दें
खेलने दें,
पढ़ने दें,
आगे बढ़ने दें,
सुविधा-स्वतंत्रता दें,
फ़ैसले करने दें
बेटियाँ बोझ नहीं वरदान हैं
आपकी तरह ही वो भी इन्सान हैं।
#शैली
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