सनातन दर्शन में धर्म ध्वज का महत्व


25 नवम्बर को अयोध्या में श्री राम मंदिर पर धर्म ध्वज फहराया जाएगा। क्या आपको पता है सनातन दर्शन में धर्म ध्वज का क्या महत्व है? आईये जानते हैं। 


वैदिक सनातन धर्म ध्वज

वेदों में ग्रन्थों में ध्वज का विस्तृत विवरण कई स्थानों में दिया गया है। आईये जानते हैं हमारे ध्वज की महत्ता :,


अस्माकमिन्द्र: समृतेषु ध्वजेष्वस्माकं या इषवस्ता जयन्तु।

अस्माकं वीरा उत्तरे भवन्त्वस्माँ उ देवा अवता हवेषु।। ऋग्वेद, 10-103-11, अथर्ववेद, 19-13-11

अर्थात्, हमारे ध्वज फहराते रहें, हमारे बाण विजय प्राप्त करें, हमारे वीर वरिष्ठ हों, देववीर युद्ध में हमारी विजय करवा दें। इस मंत्र में युद्ध के समय ध्वज लहराता रहना चाहिये।


उद्धर्षन्तां मघवन्वाजिनान्युद्वीराणां जयतामेतु घोष:।

पृथग्घोषा उलुलय: केतुमन्त उदीरताम्।। अथर्ववेद, 3.19.6

अर्थात्, हमारी सब सेनाएं उत्साहित हों, हमारे विजयी वीरों की घोषणाएं (आकाश में) गरजती रहें, अपने-अपने ध्वज लेकर आनेवाले विविध पथों की घोषणाओं का शब्द यहां निनादित होता रहे। 


अमी ये युधमायन्ति केतून्कृत्वानीकश:। वही, 6.103.3 अर्थात्, ये वीर अपनी सेना की टुकडिय़ों के साथ अपने ध्वज लेकर युद्ध में उपस्थित होते हैं।

अब प्रश्न यह उठता है कि अति प्राचीन युग में भारतीय-ध्वज का स्वरूप कैसा था ? ऋग्वेद में कहा गया है – अदृश्रमस्य केतवो वि रश्मयो जनाँ अनु। भ्राजन्तो अग्नयो यथा।। अथर्ववेद, 6.126.3 अर्थात्, उगनेवाली सूर्य की रश्मियां, तेजस्वी अग्नि की ज्वालाएं (फड़कने वाले) ध्वज के समान दिखाई दे रही हैं। इस मंत्र से यह निश्चित होता है कि वैदिक आर्यों के ध्वज का आकार अग्नि-ज्वाला के समान था।


वेदों में कई स्थानों पर अग्नि-ज्वाला के आकारवाले ध्वज का वर्ण भगवा स्पष्ट किया गया है 

"एता देवसेना: सूर्यकेतवः सचेतसः।

अमित्रान् नो जयतु स्वाहा ।।"

(अथर्ववेद ५.२१.१२), 

"अरुणैः केतुभिः सह "

(अथर्ववेद ११.१२.२)


उपरोक्त मन्त्रों में अरुण, अरुष, रुशत्, हरित, हरी, अग्नि, रजसो भानु, रजस् और सूर्य – ये नौ शब्द ध्वज का वर्ण निश्चित करते हैं। हरित और हरी – इन शब्दों से हल्दी के समान पीला रंग ज्ञात होता है। सूर्य शब्द सूर्य का रंग बता रहा है। यह रंग भी हल्दी के समान ही है। अरुण रंग यह उषाकाल के सदृश कुल लाल रंग के आकाश का रंग है। अरुष तथा रुशत् – ये शब्द भी भगवे रंग के ही निदर्शक हैं। रजस तथा रजसो भानु – ये शब्द सूर्य किरणों से चित्रित धूल का रंग बता रहे हैं। इन मन्त्रों में ध्वज को अग्नि ज्वाला, विद्युत, उगता हुआ सूर्य तथा चमकनेवाला खंग – ये उपमाएं दी हुई हैं। इसमें निर्णायक उपमाएं रजसो भानुं तथा अरुण: – ये हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि इन पदों में निदर्शित रंग भगवा ही है। इन नौ पदों से यद्यपि भगवे रंग की न्यूनाधिक छटाएं बताई गई हैं, तथापि पीला तथा लाल भरतमुनिकृत नाट्यशास्त्रम् में युद्ध में देवताओं द्वारा दानवों के पराजित होने पर इन्द्र के विजयोत्सव में मनाये गये ध्वज-महोत्सव का उल्लेख मिलता है। 

सूर्यमण्डलान्तर्गत सूर्यस्वरूप सर्वरूप अप्रतिरूप शिव अपनी ध्वजा

और पताका पर सूर्यका चिह्न धारण करते हैं।


*नमोऽस्त्वप्रतिरूपाय विरूपाय शिवाय च।

सूर्याय सूर्यमालाय सूर्यध्वजपताकिने।।*

(महाभारत - शान्तिपर्व २८४.८१)

त्रिकोण रक्तवर्ण के वस्त्रपर अङ्कित श्वेत वर्ण के सूर्य को वैदिक ध्वज माना गया है 


उपरोक्त मंत्रों से स्प्ष्ट है कि वैदिक सनातन ध्वज की संरचना में मुख्य उसका रंग है जो कि यज्ञ की पावन अग्नि , उगते हुए सूर्य और उत्साह एवं वीरता के प्रतीक भगवा है। इसके मध्य में श्वेत वर्णीय सूर्य है और सूर्य के मध्य सबका कल्याण हो ऐसी स्वस्ति कामना करता स्वस्तिक चिन्ह है। 

आजतक वैदिक सनातन धर्म ध्वज की वंदना किसी ने नहीं लिखी। आईये मेरी लिखी ध्वज वन्दना पढिये और नववर्ष पर न केवल ध्वजारोहण करें बल्कि इस वन्दना को गायें भी।


सनातन धर्म ध्वजा की वंदना


(पञ्चचामर)

नमामि धर्म ज्योति वर्तिका नमामि हे   ध्वजा

नमामि  मातृ  भूमि चण्ड सी प्रचण्ड की मृजा

विराट  धर्म  गान  की .बने  ध्वजा विशेष हो

न  शेष हो   विशेष हो  अशेष  वेश   देश हो


धरित्रि  की पवित्र  चारुता ध्वजा  विहारिणी

नमो  नमो  ध्वजा  सनातनी  प्रभा  प्रसारिणी

नमो  नमो   ध्वजा   उड़े  सनातनी   सनातनी

प्रबोध  बोध  शोध  हो प्रकल्प  कल्प बांधनी


रुके  नहीं   झुके  नहीं   सुकेशरी  सुभाषिणी

ऋचा प्रभात  वेद  सी  लिए  सुगीत  धारिणी

न  ताप  में   जले  गले  बढ़े  पयोधि  उर्मि सा

रगों    रगों   उमंग    सङ्ग  हे  नमामि धर्मिता


ध्वजा महान   आन बान शान  देश प्राण की

नमामि उच्च व्योम देखती निशान  ज्ञान  की

ध्वजा   निषिद्ध  द्वार  द्वार  तू   हमें  सँवारती

नमो   नमामि   पूजता   तुझे   उतार  आरती




(लावणी)

जयति  जयति  वैदिक  सिद्ध ध्वजा तेरी उतारूँ आरती

तेरी   उतारूँ  मैं   आरती,   ध्वज   लहर लहर  लहराए

उच्च  गगन में  भानु  की भांति, केसरिया व्योम सजाएं

भगवा   मन  है  भगवा  तन  है,  भगवा आदर्श  बनायें


लोहित  रोहित  मोहित  दर्शन अम्बर  क्षितिज  संवारता

ले  उदित भानु अनल शिखा का, प्रभास भगवा पुकारता

विश्वगुरु प्रगल्भ ज्ञान ज्योति, ऋषि मुनि प्रज्ञ जय भारती

जयति  जयति  वैदिक  सिद्ध ध्वजा, तेरी  उतारूँ आरती


रक्ताभ   व्योम   से   अरुणाई,  चक्षो  सूर्य  जायते कह

विश्व  अंतरात्मा. दृष्टा  रवि, ध्वज  शोभित  श्रेष्ठ अनुग्रह

आर्यभूमि   की   गौरव   गाथा, सर्वत्र   ध्वज   पखारती

जयति  जयति  वैदिक  सिद्ध ध्वजा, तेरी  उतारूँ आरती


लक्षित  व्योम  होम रक्षित नत, आदेशित स्वस्ति कामना

आदित्य  मध्य स्वस्तिक  मंडित, सर्वभौम  सा  महामना

विश्व   शांति  आरोग्य  साधना,  चिदाकाश  ब्रह्म  धारती

जयति  जयति  वैदिक  सिद्ध ध्वजा, तेरी  उतारूँ आरती


पावन   ऋचाएँ  कर   समाहित, पवन  वेग  सा  लहराए

सत्य सनातन संस्कृति दर्शन, जगत  को प्रथम दिखलाए

वैदिक  सत्य  धर्म  ध्वज वन्दन, अध्यात्म प्रज्ञा पखारती

जयति  जयति. वैदिक  सिद्ध  ध्वजा, तेरी  उतारूँ आरती

सुरेश चौधरी : 

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