विवाह पंचमी हिन्दू संस्कृति का एक अत्यंत पवित्र पर्व है, जो भगवान श्रीराम और माता सीता के दिव्य विवाह की स्मृति में मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। यह दिन अयोध्या, मिथिला और सम्पूर्ण भारतवर्ष में धर्म, मर्यादा, प्रेम और आदर्श दांपत्य के प्रतीक के रूप में विशेष भक्ति के साथ मनाया जाता है।
विवाह पंचमी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
१. आदर्श दांपत्य का प्रतीक
राम–सीता विवाह भारतीय संस्कृति में पति–पत्नी के बीच
समर्पण,सहयोग,समानता,करुणाऔर कर्तव्य–निष्ठा का सर्वोच्च उदाहरण माना जाता है।
विवाह पंचमी पर श्रद्धालु इन दिव्य आदर्शों को अपने जीवन में उतारने का संकल्प करते हैं।
२. जनकपुर और अयोध्या में विशेष उत्सव
जनकपुर (नेपाल) में जहाँ माता सीता का जन्म हुआ, वहाँ इस दिन विशाल वैवाहिक शोभायात्राएँ, नृत्य, संगीत और भजन–कीर्तन होते हैं।
अयोध्या में श्रीराम विवाह के मंगलगीत, गोपियों और स्त्रियों द्वारा गाए जाने वाले पारम्परिक विवाह गीत वातावरण को अद्भुत आध्यात्मिक आनंद से भर देते हैं।
माता सीता को प्राप्त करने के लिए आयोजित स्वयंवर में संसार के अनेक राजकुमार उपस्थित हुए, परंतु भगवान राम ने ही शिवजी का दिव्य धनुष उठाकर तोड़ने का अद्भुत सामर्थ्य दिखाया।
धनुष–भंग के साथ ही सभी देवताओं ने जयध्वनि की, और राजा जनक ने भरपूर श्रद्धा से अपनी पुत्री का हाथ श्रीराम को सौंपा। यह विवाह केवल दो दिव्य आत्माओं का मिलन ही नहीं, अपितु—
माना जाता है।
🌼 धर्म और मर्यादा का संगम
🌼 कर्तव्य और करुणा का संयोग
🌼 सीधा, सहज और संतुलित जीवन का पाथेय
रामचरितमानस में राम विवाह
राम विवाह का प्रसंग अत्यधिक रोचक और सारगर्भित ढंग से तुलसी दास जी ने किया है। दोहा संख्या 322 से यह आरम्भ होता है। छंद का विद्यार्थी होने के नाते यह बात यहाँ कहना आवश्यक समझता हूं कि बाबा तुलसीदास हिंदी छन्दों में सर्वोत्तम हैं। राम विवाह के विवरण में उन्होंने सर्वाधिक हरिगीतिका छंद का प्रयोग किया है। उदाहरण स्वरूप एक छंद उधृत है।
चलि ल्याइ सीतहि सखीं सादर सजि सुमंगल भामिनीं।
नवसप्त साजें सुंदरी सब मत्त कुंजर गामिनीं॥
कल गान सुनि मुनि ध्यान त्यागहिं काम कोकिल लाजहीं।
मंजीर नूपुर कलित कंकन ताल गति बर बाजहीं॥
सुंदर मंगल का साज सजकर (रनिवास की) स्त्रियाँ और सखियाँ आदर सहित सीताजी को लिवा चलीं। सभी सुंदरियाँ सोलहों श्रृंगार किए हुए मतवाले हाथियों की चाल से चलने वाली हैं। उनके मनोहर गान को सुनकर मुनि ध्यान छोड़ देते हैं और कामदेव की कोयलें भी लजा जाती हैं। पायजेब, पैंजनी और सुंदर कंकण ताल की गति पर बड़े सुंदर बज रहे हैं।
सोहति बनिता बृंद महुँ सहज सुहावनि सीय।
छबि ललना गन मध्य जनु सुषमा तिय कमनीय॥322॥
सहज ही सुंदरी सीताजी स्त्रियों के समूह में इस प्रकार शोभा पा रही हैं, मानो छबि रूपी ललनाओं के समूह के बीच साक्षात परम मनोहर शोभा रूपी स्त्री सुशोभित हो॥322॥
आचारु करि गुर गौरि गनपति मुदित बिप्र पुजावहीं।
सुर प्रगटि पूजा लेहिं देहिं असीस अति सुखु पावहीं॥
मधुपर्क मंगल द्रब्य जो जेहि समय मुनि मन महुँ चहें।
भरे कनक कोपर कलस सो तब लिएहिं परिचारक रहैं॥1॥
कुलाचार करके गुरुजी प्रसन्न होकर गौरीजी, गणेशजी और ब्राह्मणों की पूजा करा रहे हैं (अथवा ब्राह्मणों के द्वारा गौरी और गणेश की पूजा करवा रहे हैं)। देवता प्रकट होकर पूजा ग्रहण करते हैं, आशीर्वाद देते हैं और अत्यन्त सुख पा रहे हैं। मधुपर्क आदि जिस किसी भी मांगलिक पदार्थ की मुनि जिस समय भी मन में चाह मात्र करते हैं, सेवकगण उसी समय सोने की परातों में और कलशों में भरकर उन पदार्थों को लिए तैयार रहते हैं॥1॥
कुल रीति प्रीति समेत रबि कहि देत सबु सादर कियो।
एहि भाँति देव पुजाइ सीतहि सुभग सिंघासनु दियो॥
सिय राम अवलोकनि परसपर प्रेमु काहुँ न लखि परै।
मन बुद्धि बर बानी अगोचर प्रगट कबि कैसें करै॥2॥
स्वयं सूर्यदेव प्रेम सहित अपने कुल की सब रीतियाँ बता देते हैं और वे सब आदरपूर्वक की जा रही हैं। इस प्रकार देवताओं की पूजा कराके मुनियों ने सीताजी को सुंदर सिंहासन दिया। श्री सीताजी और श्री रामजी का आपस में एक-दूसरे को देखना तथा उनका परस्पर का प्रेम किसी को लख नहीं पड़ रहा है, जो बात श्रेष्ठ मन, बुद्धि और वाणी से भी परे है, उसे कवि क्यों कर प्रकट करे?॥2॥
आईये राम सीता विवाह के कुछ तथ्य को जानते हैं। मार्गशीर्ष शुक्ल की पंचमी के दिन राम और सीता का विवाह हुआ था, यह भी कहा जाता है कि श्रेष्ठ पण्डित और ज्योतिष के महा ज्ञानी मुनि वशिष्ठ ने कुंडली मिलाई थी और 36 में से 36 गुण मिले थे। परन्तु मांगलिक दोष के कारण सीता और राम का वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रह ऐसा माना जाता है।
इसी कारण भारत के कई स्थानों में इस दिन विवाह नहीं किए जाते हैं। नेपाल और मिथिलांचल में भी इस दिन विवाह नहीं किया जाता है।
है। परन्तु साथ ही साथ यह भी उदाहरण दिया जाता है जब किसी सुखी दम्पति को देखते हैं तो कहते है कि
"सीता राम की जोड़ी है"
कुछ भी हो राम विवाह सर्वाधिक चर्चित विवाह है और विवाह पंचमी भी उत्सव का दिन है।
आज के समय में जब रिश्तों में अविश्वास, अपेक्षा और दबाव जैसे संकट उभरते हैं, तब राम–सीता विवाह हमें याद दिलाता है कि—
दांपत्य केवल आकर्षण का संबंध नहीं, कर्तव्य और विश्वास का आधार है।
विवाह बंधन नहीं, बल्कि समर्पण से निर्मित साथीपन है।
आदर्श परिवार मर्यादा, संवाद और परस्पर सम्मान से ही बनता है।
राम–सीता का आदर्श हमें यह भी सिखाता है कि जीवन में कितनी ही विपत्तियाँ क्यों न आएँ,
धर्म, सत्य और धैर्य हमारे सबसे बड़े सहायक होते हैं।
विवाह पंचमी केवल एक पौराणिक स्मृति नहीं, बल्कि सौहार्द, प्रेम और मर्यादा का उज्ज्वल पर्व है।
इस दिन हम सभी को अपने भीतर सहनशीलता, कर्तव्य, करुणा और परस्पर सम्मान जैसे गुणों को जाग्रत करने का संकल्प लेना चाहिए, ताकि हमारा व्यक्तिगत जीवन भी उतना ही मंगलमय और पवित्र बन सके जितना कि श्रीराम–सीता का आदर्श दांपत्य।
सुरेश चौधरी “इंदु
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