मानवता के पथप्रदर्शक
भैण नानकी दा वीर, तन-मन दा फकीर —
ओ है जोगियां दा जोगी, ते है पीरां दा पीर।
या यूँ कहें —
“बाबा नानकशाह फ़कीर, हिन्दू का गुरु – मुसलमान का पीर।”
गुरु नानक देव का जीवन किसी धर्म-विशेष की सीमाओं में नहीं बंधा था। वे मानवता के पथप्रदर्शक थे — एक ऐसे युग में जब समाज जातिगत भेदभाव, आडंबरों और अंधविश्वासों में उलझा हुआ था, उन्होंने समानता, सत्य और प्रेम का दीप प्रज्वलित किया।
बालक नानक ने बचपन में ही कहा था — “मुझे सांसारिक पढ़ाई नहीं, परमात्मा की पढ़ाई अधिक आनन्दायिनी लगती है।”
उनकी यह वाणी किसी विद्रोह से नहीं, बल्कि आत्मज्ञान से उत्पन्न थी। उन्होंने कहा —
“मोह को जलाकर स्याही बनाओ, बुद्धि को कागज़, प्रेम की कलम बनाओ और चित्त को लेखक।”
यह शिक्षा आज भी बताती है कि सच्चा ज्ञान पुस्तकों में नहीं, अंतःकरण की पवित्रता में है।
गुरु नानक ने जीवन को उदासियों — यात्राओं — में रूपांतरित किया। वे चले, और चलते रहे — भारत से तिब्बत, अरब से श्रीलंका तक — हर स्थान पर एक ही संदेश दिया —
“एक ओंकार सतनाम।”
ईश्वर एक है, और वही सत्य है। उन्होंने बताया कि कर्म ही पूजा है, सच्ची कमाई ही प्रसाद है, और सेवा ही धर्म।
गुरु नानक के शब्द आज भी गूंजते हैं —
“ना कोई हिन्दू, ना मुसलमान — सब में एक ही नूर है।”
उनके दर्शन ने समाज को यह समझाया कि मानवता का आधार विभाजन नहीं, एकता है; श्रद्धा का माप मंदिर या मस्जिद नहीं, मन की निर्मलता है।
आज जब संसार भौतिकता और स्वार्थ की परिधियों में उलझा है, तब गुरु नानक का यह प्रकाश हमें स्मरण कराता है कि मनुष्य का सच्चा धर्म प्रेम है।
उनका दर्शन हमें यह सिखाता है कि जीवन का अर्थ है — सत्य की खोज, सेवा का संकल्प और करुणा का प्रसार।
गुरुनानक जयंती केवल उत्सव नहीं, आत्ममंथन का अवसर है। यह दिन हमें प्रेरित करता है कि हम भी अपने जीवन में वही प्रकाश जगाएँ जो पाँच शताब्दियों पूर्व नानक ने जगाया था — मानवता का, प्रेम का, और सत्य का
सतनाम वाहेगुरु
सुरेश चौधरी “इंदु”
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