वेदने! तुम्हारा मतवाला

 

इस विरह-वेदना के संबल ने,

                  दिए तृषा के हार मुझे!

व्यक्तित्व    गढ़ा   पीड़ा   ने,

         देकर अपना खूब दुलार मुझे!


कविताई ने कोमलता दी,

           हृद में भर दी अति भावुकता ।

मैं अचिर वस्तु पर क्या मरता?

            जब मिली वेदना की शुभता।


कल्याणमयी  इस पीड़ा का नित-नित वंदन, मुझको पाला ।

वेदने! तुम्हारा  मतवाला।।.....  (१)


जब जलन बढ़ी छलनाओं की,

          जब दुखों-दाह  की पीर चलीं।

 तब याम-योम सब भूल तुम्हीं,

            नयनों  से  लेकर  नीर  चलीं।


 सब छोड़ चले, तुम साथ रहीं,

             अब  छोड़  कहाँ  बैराती  हो?

 यह मधुर गृहस्थी मत तोड़ो,

                मैं  दीया  हूँ  तुम बाती  हो!


संसार दुलार हजार करे, मैं प्यार नहीं करने वाला।

 वेदने ! तुम्हारा मतवाला......(२)


ओ क्रूर नियति! कर दे विदीर्ण ,

            सुख स्वयं मुझे स्वीकार नहीं।

 आनंद महान महादुख में,

              इससे बढ़कर उपकार नहीं ।


जगती से तिल भर द्वेष नहीं, 

           सबका शत-शत आभारी हूँ।

युग-जीवन  की पीड़ाओं का,

                मैं सूत्रधार अधिकारी हूँ।


कविता प्याले में भरता हूँ, मैं अन्तर्ज्वाला की हाला।

वेदने! तुम्हारा मतवाला.....(३)

     ~ यतीश अकिञ्चन


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