क्या जीवन जीने का भी कोई नियम है,
या फिर बस, ये कुछ संयोग और बहुत सारा भ्रम है।
क्यों ये बांटा है मुल्क और समाज के दायरों में,
सबकी अलग अलग खुशी अलग गम हैं।
सब इतने अलग और अनोखे हैं,
क्या ये नियम तो बस धोखे हैं
इनसे ना नापें अपनी सफ़लता, असफ़लता नापें...
बस हौसला रखें खुद पे ,
न देखें अपने और पराए
सिर्फ नियम नहीं खुद को बनाएं..
प्रगति का रास्ता बने और बनाते जाएं...
करते जाएं कुछ नया
जिससे हो हमारी पहचान इन नियमों से अलग ।
साधना

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