- ज़हर


माना कि ज़हर है दुनियाँ अमृत समझ पीना आना चाहिये

कठिन है रास्ते तो क्या कोंसना नही चलना आना चाहिये

जीवन है इम्तिहान तो लेगा 

क्यों हताश होते हो 

मंजिल दूर है हालात मगरूर है

इस हालात पर भी दोस्तों अज़माना आना चाहिए 

क्यों कोंसे उसकी बनाई इस बगिया को 

हम भी तो उसकी इस बगिया के ही फूल है

हर फूल का भी एक ज़मीर है

हर फूल को सूखने से पहले महकना आना चाहिये

उम्मीद बहुत की औरों से ए दिल माद्दा है कि खुद को बनाना आना चाहिये

एक ही कश्ती के सवार हम मुसाफिर है

जाना बहुत दूर पर मंजिल काफिर है

ना जाने किस तूफान से  हमारा राफ्ता हो जाये

किस गली हमारी शाम हो जाये 

हर एक की फखत मजबूरी है

बिना चाह की एक अलग दूरी है 

दर्द कोई किसी का ले सकता नही तो फिर क्यों ये गिले है

फर्ज ईमान के साये मे एक ही मिट्टी मे पले है

मत कर किसी से गिला ना मालूम उसके दामन के कितने छेद ना सिले है 

जिन्दगी सितारों का एक वृहद आकाश है 

बस चमकते रहो ओर चमकाना आना चाहिये

रंज-ओ-गम से दूर एक दुनिया बनाना चाहिए ।

संदीप सक्सेना 

जबलपुर म प्र


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