आज पितृ दिवस (फादर्स-डे) योग दिवस और सूर्य ग्रहण दिवस तीनों का संगम..ये संगम *क़लम-ए-कमल* की नज़र में..?? पिता है तो संतान के जीवन में खुशियों का सदा योग (जोड़/जुड़ना) रहेगा.. कभी जिंदगी में खुशियों का घटाव (कम/घटना) नहीं होगा.. पिता है तो संतान के जीवन रुपी सूर्य पर कभी ग्रहण नहीं लगेगा.. मतलब पिता है तो खुशियों का खजाना है..बिन पिता जीवन गमगीन एक तराना हैं.. जिनके पिता है वो आज उनका सम्मान करें.. जिनके उनसे जुदा हुए वो मन से उनका ध्यान करें..इस पावन दिवस पर मेरी एक रचना की चंद लाइनें जो मेरे दिल के बहुत क़रीब रहती हैं पेश है..! पिता से ही तो होती ये ज़िंदगी खुशगवार है..! बिन पिता ज़िंदगी में होती कब बहार है..! पिता है तो जिंदगी फूलों की सेज हैं..! वरना ये जिंदगी तो लगती डगर-ए-खार हैं..! पिता की सरपरस्ती की अलग ही शान हैं..! ये तो हर संतान की होते आन ओर बान हैं..! बड़ी से बड़ी खुशियां संतान के लिए जुटाते..! करते अपने जीवन की खुशियां ये कुर्बान है..! संतान के जीवनकाल की ये शीतल बयार है..! पिता से ही होती जिंदगी.. सुकून भरी नींद के ये सुहाने ख्व़ाब होते हैं..! हर कठिन सवाल के ये तो ज़वाब होते हैं..! इनके रहते संतान को कहां कोई ग़म होता..! जीवन की उम्मीदों के ये तो शवाब होते हैं..! पिता हैं तो जिंदगी लगती कब हमें बेजार है..! पिता से ही होती ज़िंदगी.. शवाब=यौवन, जवानी बेजार=अप्रसन्न,खिन्न कमल सिंह सोलंकी रतलाम मध्यप्रदेश |
ज़िंदगी खुशगवार है
Featured Post
महावीर तपोभूमि उज्जैन में द्वि-दिवसीय विशिष्ट विद्वत् सम्मेलन संपन्न
उज्जैन 27 नवम्बर 2022। महावीर तपोभूमि उज्जैन में ‘उज्जैन का जैन इतिहास’ विषय पर आचार्यश्री पुष्पदंत सागर जी के प्रखर शिष्य आचार्यश्री प्रज्ञ...

Popular
-
चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शांतिसागर जी महाराज की दीक्षा शताब्दी वर्ष पर विशेष चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शांतिसागर जी महाराज पर तिर्यंचोंकृत...
-
स्मित रेखा औ संधि पत्र 'आंसू से भीगे आंचल पर/ मन का सब कुछ रखना होगा/ तुझको अपनी स्मित रेखा से/ यह संधि पत्र लिखना होगा ' कामायनी ...
-
* नैतिक मूल्यों का बढ़ता अवमूल्यन* *डॉ ममता जैन पुणे* ईश्वर द्वारा रची गई सृष्टि की सर्वोत्तम कृति है मानव क्योंकि मानव एक बौद्धिक व ...
-
जाकर ढूंढो उन राहों को, जो हैं अब तक खोई, तू चल बटोही तू चल बटोही, कठिनाई से मत घबराना, पग पग पर बढ़ते ही जाना, तुझको इस नभ को छूना है, चा...
-
एक– देश ग़ुलामी जी रहा, हम पर है परहेज़। निजता सबकी है कहाँ, ख़बर सनसनीख़ेज़।। दो– लाखोँ जनता बूड़ती, नहीं किसी को होश। "त्राहिमाम्" हर ...
No comments:
Post a Comment