गौरैया

सबेरे रोज़ छत पर गीत तो गाती है गौरैया 

मगर जाने कहाँ फिर सारा दिन जाती है गौरैया 


हजारों पेड़ कटते जब कहीं बनता है हाई- वे 

सड़क के नाम से ही अब तो डर जाती है गौरैया 


शिकारी हर तरफ़ बैठे हैं ये भी जानती है वो  

मगर बच्चों को दाने खोजकर लाती है गौरैया 


हमारे पास तो घर है कि जिसमें एक हीटर है 

मगर इस ठण्ड से बचने कहाँ जाती है गौरैया 


अमूमन चैत्र के महिने में अपना घर सजाती है 

मगर कुछ जेठ के पहले ही शर्माती है गौरैया 


सुहूलत लाख हों लेकिन ग़ुलामी तो ग़ुलामी है 

किसी पिंजरे में देकर जान बतलाती है गौरैया 


@धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद'

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