काँपोगी जब ठण्ड से, आओगी तुम पास।
तभी दिसम्बर यह मुझे, लगता है प्रिय मास।।
रहे दिसम्बर में सजन, संगम सातों वार।
करना जीवन भर पिया, मम सोलह श्रृंगार।।
इक शेर
किसी अहसास से दामन जो मेरा भीग जाता है
पवन के वेग से उड़ता दिसम्बर ख़ूब भाता है
ग़ज़ल
दिसम्बर जा रहा है जनवरी गुलज़ार हो जाए
तमन्ना है सनम इक बार बस दीदार हो जाए
रखूँ कैसे क़दम मैं हमनवा के दिल के गुलशन में
अगर वो सौत के दिल का किराएदार हो जाए
समझती थी जिसे मैं बाग़बाँ माह-ए-मुहब्बत का
उसी के इश्क़ में दिल की कली कचनार हो जाए
बहाना गुनगुनी-सी धूप का करके चली आई
कभी तो सामने मेरे विसाल-ए- यार हो जाए
गुलाबी ठंड में भाने लगा सूरज ही रजनी को
क़मर को रश्क़ फिर कोई नहीं सरकार हो जाए
©रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका'
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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