कच्ची हैं सब सड़कें



घासफूस के घर हैं कच्चे, 

कच्ची हैं  सब  सड़कें। 

पेड़-पौध खलिहान खेत में,

जनजीवन नित धड़कें॥

मध्य  मार्ग में  कुत्ते  खेलें, 

सड़क किनारे  बच्चे। 

लोग-लुगाई हिलमिल रहते, 

लगते  हैं  सब सच्चे॥


चुन्नू-मुन्नू दौड़ लगाते, 

टायर लेकर दर पर। 

मुनिया रानी छतरी लेकर, 

लौट रही है घर पर॥

लोग-बाग सब त्रस्त हुए हैं, 

सूरज चमके नभ में। 

हरियाली खेतों में छाई, 

पुष्प खिले सौरभ में॥


दादी-अम्मा जल भर लातीं,

झटपट चापाकल से।

बंटी लोटा लिए खड़ा है, 

स्नान करेगा जल से॥ 

पनिहारिन नित आतीं-जातीं, 

मटका उनके सर पर। 

पीने का पानी संग्रह कर, 

लातीं अपने  घर पर॥


कच्ची पगडण्डी पर चलकर,

अन्य  ग्राम  सब  जाते। 

अन्न उगाते खेतों में सब, 

फिर मिलजुल कर खाते॥ 

सीधा-सादा जीवन इनका, 

मीठी इनकी बोली। 

प्यार बाँटते रहते निशदिन, 

करते हँसी ठिठोली॥


कहीं ताड़ के पेड़ खड़े हैं, 

कहीं आम अरु महुआ।

कहीं कँटीली झाड़ी फैली, 

कहीं नीम अरु बहुआ॥

ताल-तलैया पनघट पंक्षी, 

है वीरान मड़ैया। 

गौशाला में पशु पालन है, 

ढोर मवेशी गैया॥


 डॉ अर्जुन गुप्ता 'गुंजन'

          प्रयागराज, उत्तर प्रदेश


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