फँस गये हाय कहाँ , काँप रहे थरथर ।।कोई देखता है नूर , देखे कोई यहॉं हूर ,सब अपने में चूर , उड़ रहे लगा पर ।।किसी का जमीं पे पाँव , कोई ढूँढ़ रहे गाँव ,कोई को मिले न ठाँव , कोई खाली कोई भर ।।यह जग बना मेला , चल रहे रेला -पेला ,चूर्ण घूर्ण माटी ढेला , वक़्त कहे चलो घर ।।अंतस्थल भरा प्रेम , पावन भावन नेम ,रखना कुशल क्षेम , प्यारे मेरे दिलवर ।सपन साकार सब , संग रहो तुम तब ,पूरे होंगे आज अब , हाथ मेरे चल धर ।।नहीं अब कोई बाधा , जैसे प्रीत कान्हा राधा ,हमने भी ये है साधा , अपना भी बने घर ।प्रेरणा से ओतप्रोत , प्रीत रस बहे स्श्रोत ,शांति सुख का कपोत , किसी का नहीं है डर ।।माधुरी डड़सेना "मुदिता"
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उज्जैन 27 नवम्बर 2022। महावीर तपोभूमि उज्जैन में ‘उज्जैन का जैन इतिहास’ विषय पर आचार्यश्री पुष्पदंत सागर जी के प्रखर शिष्य आचार्यश्री प्रज्ञ...

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