काफिया-ई रदीफ-की तरह जब मिला प्यार से बंदगी की तरह जिंदगी हो गयी रोशनी की तरह हो रहे फैसले मेरे हक में मगर मुझको तंहा रखा तीरगी की तरह कब मुझे आपसे भी था कोई गिला मिल रहे हो कि अब अजनबी की तरह दिल हमारा समंदर सा है जानेमन आप आ जाइये इक नदी की तरह हो गयी ये खबर सबको अब तो सनम बढ़ रहा है नशा आशिकी की तरह नौजवां हो अगर प्यार खुल कर करो दोस्ती मत निभा दुश्मनी की तरह ठीक होता नहीं हर जगह टोकना दिल को लगता है ये तीर ही की तरह कब मुकम्मल हुई जिंदगी भर हँसी गम भी शामिल है इसमें खुशी की तरह डॉ.रामावतार सागर कोटा,राज.
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ग़जल
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