मां है पूरी दुनिया मां केवल एक शब्द नहीं है उसमें समाहित पूरी दुनिया है । मां के बारे में क्या लिखूं मैं वह तो हमारे जीवन की लेखनी हैं। मां का कर्ज तो कोई नहीं चुका सकता स्वयं ईश्वर से भी बड़ा उसका दर्जा है । मां के बिना नहीं अस्तित्व किसी का वह तो खुद इस सृष्टि की रचयिता है मां अपने ही रक्त से सिंचित कर स्वयं पीड़ा सहन कर जन्म देती है। मां की ममता का कोई नहीं मॉल वह तो त्याग तपस्या की मूरत है । मां तो है अपने हर मर्ज की दवा हमारे आंसू अपनी आंखों में समा लेती है । मां की गोद में ही मिलता है सुकून उसका आंचल तो पूरा आसमान है। जब पूरी दुनिया साथ छोड़ दे तब वह हर मुश्किल में साथ खड़ी रहती है। कुर्बान कर दो अपना पूरा जीवन इस पर उसके क़दमों में ही तो जन्नत है। डॉ दीपिका राव व्याख्याता बांसवाड़ा राजस्थान |
मां है पूरी दुनिया
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