शून्य से शुरू हुआ जीवन                  शून्य सा होगा खत्म । गणित रुपी जीवन यह  जोड़ -घटाव सा चलता है। अनुभव व मेल-मिलाप से जुड़ते हैं  चलती सांसे घटाव- सी घटती है । रिश्तो के कोष्ठको में बंधा जीवन  प्रेम -प्यार का समीकरण है जीवन । तेरी मेरी करते रहते धन-दौलत का गुणा-भाग। दशमलव से गति जीवन का  सत्य यही है शून्य। श्रीमती प्रतिभा पंचोली  | 
शून्य से शुरू हुआ जीवन
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एक– देश ग़ुलामी जी रहा, हम पर है परहेज़। निजता सबकी है कहाँ, ख़बर सनसनीख़ेज़।। दो– लाखोँ जनता बूड़ती, नहीं किसी को होश। "त्राहिमाम्" हर ...
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